आपकी
भी शादी की उम्र ढल रही है और शादी की बात नहीं बन पा रही है…….
आजकल
अधिकतर लड़कियों की पढ़ाई या अन्य किसी कारण से अक्सर शादी में देरी हो जाती है।
किसी को अपने हिसाब का पढ़ा- लिखा लड़का नहीं मिलता तो कहीं किसी और कारण से बात
नहीं बन पाती। यदि आपकी भी शादी की उम्र ढल रही है और शादी की बात नहीं बन पा रही
है तो नीचे लिखे इन उपायों को जरुर अपनाएं।
विवाह
योग्य युवती जब किसी अन्य युवती के विवाह में जाएं तो उससे अपने हाथों में थोड़ी
मेहंदी लगवा ले। ऐसा करने से उसका विवाह शीघ्र ही हो जाएगा।
जब
लड़के वाले विवाह की बात करने घर आए तो युवती खुले बालों से, लाल
वस्त्र धारण कर, हंसते हुए उन्हें कोई मीठी वस्तु खिलाकर विदा
करें। विवाह की बात अवश्य ही पक्की होगी।
विवाह
की इच्छा रखने वाली युवती एक सफेद खरगोश पाले और उसे अपने हाथ से ही प्रतिदिन भोजन
करवाएं।
इन
उपायों को करने से शीघ्र ही विवाह की इच्छा रखने वाली युवतियों का विवाह हो जाता
है।
विवाह मुहूर्त में जरूरी है त्रीबल-शुद्धी: –
विवाह मुहूर्त के
लिए मुहूर्त शास्त्रों में शुभ नक्षत्रों और तिथियों का विस्तार से विवेचन किया
गया है। उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़,
उत्तराभाद्रपद,रोहिणी, मघा, मृगशिरा, मूल, हस्त, अनुराधा, स्वाति और रेवती नक्षत्र में, 2, 3, 5, 6, 7, 10,
11, 12, 13, 15 तिथि तथा शुभ वार में
तथा मिथुन, मेष, वृष, मकर, कुंभ और वृश्चिक के सूर्य
में विवाह शुभ होते हैं। मिथुन का सूर्य होने पर आषाढ़ के तृतीयांश में, मकर का सूर्य होने पर चंद्र पौष माह में,
वृश्चिक का सूर्य होने पर कार्तिक में और मेष
का सूर्य होने पर चंद्र चैत्र में भी विवाह शुभ होते हैं। जन्म लग्न से अथवा जन्म
राशि से अष्टम लग्न तथा अष्टम राशि में विवाह शुभ नहीं होते हैं। विवाह लग्न से
द्वितीय स्थान पर वक्री पाप ग्रह तथा द्वादश भाव में मार्गी पाप ग्रह हो तो कर्तरी
दोष होता है, जो विवाह के लिए
निषिद्ध है। इन शास्त्रीय निर्देशों का सभी पालन करते हैं, लेकिन विवाह मुहूर्त में वर और वधु की त्रिबल शुद्धि का
विचार करके ही दिन एवं लग्न निश्चित किया जाता है।
कहा भी गया है—
स्त्रीणां
गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्।
तयोश्चन्द्रबलं
श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्।।
अत: स्त्री को
गुरु एवं चंद्रबल तथा पुरुष को सूर्य एवं चंद्रबल का विचार करके ही विवाह संपन्न
कराने चाहिए। सूर्य, चंद्र एवं गुरु
के प्राय: जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश
होने पर विवाह श्रेष्ठ नहीं माना जाता। सूर्य जन्मराशि में द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं नवम राशि में होने पर पूजा विधान से शुभफल प्रदाता होता है। गुरु
द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम एवं एकादश शुभ होता है तथा जन्म का तृतीय, षष्ठ व दशम पूजा से शुभ हो जाता है। विवाह के बाद गृहस्थ
जीवन के संचालन के लिए तीन बल जरूरी हैं— देह, धन और बुद्धि बल। देह तथा
धन बल का संबंध पुरुष से होता है, लेकिन इन बलों को
बुद्धि ही नियंत्रित करती है। बुद्धि बल का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि इसके संवर्धन में गुरु की भूमिका खास
होती है। यदि गृहलक्ष्मी का बुद्धि बल श्रेष्ठ है तो गृहस्थी सुखद होती है,
इसलिए कन्या के गुरु बल पर विचार किया जाता है।
चंद्रमा मन का स्वामी है और पति-पत्नी की मन:स्थिति श्रेष्ठ हो तो सुख मिलता है,
इसीलिए दोनों का चंद्र बल देखा जाता है। सूर्य
को नवग्रहों का बल माना गया है। सूर्य एक माह में राशि परिवर्तन करता है, चंद्रमा 2.25 दिन में, लेकिन गुरु एक
वर्ष तक एक ही राशि में रहता है। यदि कन्या में गुरु चतुर्थ, अष्टम या द्वादश हो जाता है तो विवाह में एक
वर्ष का व्यवधान आ जाता है।
चंद्र एवं सूर्य
तो कुछ दिनों या महीने में राशि परिवर्तन के साथ शुद्ध हो जाते हैं, लेकिन गुरु का काल लंबा होता है। सूर्य,
चंद्र एवं गुरु के लिए ज्योतिषशास्त्र के
मुहूर्त ग्रंथों में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनमें इनकी विशेष स्थिति में यह दोष नहीं लगता। गुरु-कन्या
की जन्मराशि से गुरु चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश
स्थान पर हो और यदि अपनी उच्च राशि कर्क में, अपने मित्र के घर मेष तथा वृश्चिक राशि में, किसी भी राशि में होकर धनु या मीन के नवमांश
में, वर्गोत्तम नवमांश में,
जिस राशि में बैठा हो उसी के नवमांश में अथवा
अपने उच्च कर्क राशि के नवमांश में हो तो शुभ फल देता है।
सिंह राशि भी गुरु की मित्र राशि है, लेकिन
सिंहस्थ गुरु वर्जित होने से मित्र राशि में गणना नहीं की गई है। भारत की जलवायु
में प्राय: 12 वर्ष से 14 वर्ष के बीच कन्या रजस्वला होती है। अत: बारह वर्ष के
बाद या रजस्वला होने के बाद गुरु के कारण विवाह मुहूर्त प्रभावित नहीं होता है.
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