सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

वास्तुदोष

                          धन की चाह हर व्यक्ति को रहती है। इस दुनिया में धन के बिना इंसान जीवित भी नहीं रह सकता। जब हमारी जिंदगी में धन इतना महत्वपूर्ण स्थान रखता है तो इस की फिजूलखर्ची से बचने के लिए आप इन उपायों को आजमा सकते हैं।

धन प्राप्ति के शुभकारी उपाय

सुख-समृद्धि एवं उन्नति के लिए किसी भी मास के पहले गुरूवार के दिन कच्चे सूत को केसर से रंगकर अपने घर की बाहरी दरवाजे पर बांधे।
एक पात्र में जल लेकर उसमें पुष्प कुमकुम एवं चावल डालकर बरगद की जड़ में डाल दें घर में सुख समृद्धि बढ़गी।
धन वृद्धि के लिए स्फटिक श्रीयंत्र को पूजा स्थान पर रखकर उसकी पूजा करें फिर उसे लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें इससे धन वृद्धि होती है।
धन बर्बादी को रोकने का उपाय
यदि पति अत्यधिक मदिरा पीने से धन की बर्बादी हो रही है तो पत्नि को वह मदिरा की बोतल पति के ऊपर से 21 बार उताकर संध्या समय भैरव मन्दिर में अर्पित करें दूसरे दिन बोतल को पति के ऊपर उतारकर संध्या समय पीपल वृक्ष पर रखकर लौट आए इस क्रिया की भनक पति को नहीं लगना चाहिए। इस उपाय से पति के पीने की लत छूट जाएगी और धन बर्बाद होने से बचेगा।
धन हानि से मुक्ति का उपाय
यदि बार-बार धन हानि हो रही हो तो गुरूवार को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़क कर गुलाल पर घी का दो मुख वाला दीपक जलाएं दीपक जलाते समय यह प्रार्थना करें कि भविष्य में घर में कभी भी धन हानि न हो जब दीपक जलना बन्द हो जाए तो दीपक को बहते जल में प्रवाहित कर दें।
आधुनिक युग में धन की आवश्यकता सभी लोगों के लिए है। सभी व्यक्ति धन कमाने के लिए मेहनत करते हैं। पर मेहनत करने पर भी आपके पास धन स्थिर नहीं हो पा रहा हो, तो इसके पीछे वास्तुदोष भी हो सकता है। जिसे आप इन आसान से उपायों को आजमाकर स्थिर कर सकते हैं।

घर में अधिक कबाड़ एकत्रित न होने दें।
शाम के समय घर की लाइट जरूर जलाएं। इस समय घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है।
घर में सूखे फूल न रखें, इससे घर में मृत्यु और नकारात्मक ऊर्जा आएगी और घर की सुख-प्रगति में बाधा आती है ताजे फूल ही रखें।

अगर घर के किसी हिस्से में वास्तु दोष हो तो उस दिशा में समुद्री नमक या स्फटिक पत्थर रखें और नमक का पोंछा लगाएं।
उत्तर-पूर्व में सीढियां हों तो उत्तर की दीवार पर आईना लगाएं।
शयन कक्ष में बैठकर खाना न खाएं, इससे नकारात्मक ऊर्जा आती है।
टॉयलेट पूर्व में हो, तो अगर संभव हो तो हटा दें अगर नहीं तो सीट के ऊपर एक सेल्फ लगाएं और उसके ऊपर एक बाउल में समुद्री नमक रखें।
घर के मुख्य द्वार पर पीले रंग की लाइट लगाएं।
मुख्य द्वार दक्षिण-पश्‍िचम में हो, तो हर कार्य में देरी होती है अतः मुख्य द्वार पर एक ताम्बे का स्वस्तिक लगाएं।
खाना-पीना उत्तर की ओर मुख करके खाएं, इससे सकारात्मक ऊर्जा आएगी।
जो व्यक्ति श्रेष्ठ धन की इच्छा रखते हैं वे रात्रि में सत्ताइस हकीक पत्थर लेकर उसके ऊपर लक्ष्मीजी का चित्र स्थापित करें, तो निश्चय ही उसके घर में अधिक उन्नति होगी।
ध्यान रखें कि आपके घर के किसी भी नल से पानी बहना या टपकना नहीं चाहिए। पानी के बहने या टपकने से आपकी जेब हल्की हो सकती है।
किसी भी शुक्रवार को रात्रि में पूजा उपासना करने के पश्चात एक सौ आठ बार ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। धन से जुड़ी हर समस्या हल हो जाएगी।
अगर आपका व्यवसाय होटल या भोजन सामग्री के साथ जुड़ा हुआ है तो वहां के प्रवेश द्वार का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
घर का कीमती समान और तिजोरी ऐसी अलमारी में रखे जो सदा पश्चिम या दक्षिण की दीवार की तरफ लगी होनी चाहिए ताकि उसके दरवाजे पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ खुलें।दरिद्रता को नीतिकारों ने मृत्यु माना है। जीवन बिना धन के नहीं चल सकता। 

रविवार, 26 अक्टूबर 2014

शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी

शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है ?
क्या है इसमें वैज्ञानिक पक्ष ?



भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है क्योंकि उनका अपना चरित्र अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि शिवजी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल नहीं खाता, क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं के स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं। वे अकेले ही ऐसे देवता हैं जो लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है। इसीलिए शिव भक्त सावन के महीने में शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उन पर दूध की धार अर्पित करते हैं।
पुराणों में भी कहा गया है कि इससे पाप क्षीण होते हैं। लेकिन सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। शिव ऐसे देव हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल भी पी सकते हैं। इसीलिए सावन में शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई है क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैस घास के साथ कई ऐसे कीड़े-मकोड़ो को भी खा जाती है। जो दूध को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक बना देती है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।
आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ?ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !और उस समय पशु क्या खाते हैं ?
सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में दूध नहीं पीना चाहिए.इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे !

समुद्रशास्त्र में शरीर पर मौजूद तिल

समुद्रशास्त्र में शरीर पर मौजूद तिलों का बड़ा महत्व बताया गया है। लाल तिल शरीर के जिस भी अंग पर होता है वह शुभ फलदायक होता है। लेकिन काला तिल शुभ भी होता है और अशुभ भी। मस्सों का भी तिल के समान भी फल होता है। अगर आपके शरीर पर भी तिल या मस्सा है तो देखिए आपके शरीर पर मौजूद तिल का क्या मतलब है।

समुद्रशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति के ललाट के मध्य भाग में तिल होता है वह बहुत ही भाग्यवान होते हैं। यह जिन क्षेत्रों में प्रयास करते हैं उनमें भाग्य इन्हें सहयोग करता है और जीवन में सफल होते हैं।
जिस स्त्री अथवा पुरुष के होठों के ऊपर दाएं तिल का निशान होता है उनका अपने जीवनसाथी के साथ प्रेमपूर्ण रिश्ता रहता है। इनके बीच बेहतर संबंध बना रहता है। इसके विपरीत होंठ के बाएं ओर तिल का निशान होने पर जीवनसाथी के साथ मतभेद बना रहता है। इनके बीच तालमेल की कमी रहती है।
जिस व्यक्ति माथे पर दाएं अथवा बाईं ओर तिल का निशान होता है वह धन तो खूब कमाते हैं लेकिन भोग विलास की चीजों में धन को खर्च कर देते हैं। इसलिए कई बार इन्हें आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
जिस व्यक्ति की छाती पर बायीं ओर तिल या मस्से का निशान होता वह उनकी शादी अधिक उम्र में होने की संभावना रहती है। ऐसे व्यक्ति कामुक होते हैं। इन्हें हृदय रोग की भी आशंका रहती है।
समुद्रशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की छाती पर दायीं ओर तिल का निशान होता है वह धनवान होते हैं और इनका जीवनसाथी भी सुंदर एवं योग्य होता है।
जिस व्यक्ति के निचले होठों पर तिल का निशान होता है वह खाने-पीने के शौकीन होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने क्षेत्र में विशेष सफलता एवं प्रसिद्घि प्राप्त करते हैं। समुद्रशास्त्र के अनुसार ऐसे व्यक्ति में काम भावना अधिक होती है यह विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित रहते हैं
समुद्रशास्त्र में बताया गया है कि हथेली पर अंगूठे के नीचे का भाग शुक्र पर्वत कहलता है। जिनकी हथेली में यहां पर तिल होता है वह कामुक होते हैं। इन्हें गुप्त रोग होने की संभावना रहती है। जबकि अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कितना भी अच्छा काम क्यों न करे उसे यश नहीं मिलता है।
जिस व्यक्ति के पेट पर तिल का निशान होता है वह भोजन प्रिय होते हैं। तिल अगर नाभि के बायीं ओर हो तो व्यक्ति को उदर रोग की परेशानी होती है। जिनके नाभि के नीच तिल का निशान होता है उन्हें यौन रोग की संभावना रहती है।

बहुत से हस्त रेखा पढ़ने वाले लोग बताते हैं हथेली के अंदर तिल का होना शुभ है। और मुट्ठी बंद करने पर तिल अगर दिखाई दे तो ठीक नहीं होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। हथेली में जिस स्थान पर तिल होता वहां के ग्रहों के शुभ प्रभाव को कम कर देता है। जैसे किसी व्यक्ति के अनामिका उंगली के नीचे तिल हो तो व्यक्ति की रुचि पढ़ने लिखने में कम होती है। ऐसे व्यक्ति को किसी भी काम में सफलता पाने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता है।

जिन लोगों के कंठ पर तिल का निशान होता है वह उनकी आवाज अच्छी होती है। ऐसे व्यक्ति अपनी आवाज का व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकते हैं। संगीत और गायन के यह शौकीन होते हैं। गले की पीछे तिल होने पर व्यक्ति को रीढ़ में तकलीफ हो सकती है।

।।श्री सूक्त।।

                                   ।।श्री सूक्त।।

ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।१॥
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।२॥
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।३॥
कां सोऽस्मितां हिरण्य-प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।४॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।५॥
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु यान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६॥
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।७॥
क्षुत्-पिपासाऽमलां ज्येष्ठां, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।८॥
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
 ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।।९॥
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।१०॥
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।११॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।१२॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१३॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१४॥
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।१५॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।

श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।१६॥

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

पांच दिनी पर्व-धनतेरस-रूप चौदस-दीपावली-गोवर्धन पूजा -भाईदूज

पांच दिनी पर्व पर इस बार किसी तरह का संशय और मतभेद नहीं है। पर्व की शुरूआत 21 अक्टूबर धनतेरस के साथ होगी। इस दिन की गई खरीदी चल-अचल संपति स्थायी फल प्रदान करेगी।


  दिनांक 22 को नरक चतुर्दशी के दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा।

इस बार पांच दिनों में किसी भी दिन तिथियों की किसी तरह की घट बड़ नहीं है ना ही समावेश है। इसलिए पांच दिन सभी पर्व निर्धारित समयनुसार मनाए जाएंगे।

शुभ खरीदी का दिन धनतेरस


21 अक्टूबर मंगलवार को धनतेरस होगी। त्रयोदशी 20 को रात 11.21 पर लगेगी जो 21 को रात 1 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इस दिन धनवंतरी पूजन के साथ स्वर्ण, चांदी, गहने, बर्तन आदि की खरीदी शुभ मानी जाती है। यह स्थायी फल प्रदान करती है।

रूप चौदस के दिन सर्वार्थसिद्धि योग


22 अक्टूबर बुधवार को रूप चौदस होगी। चतुर्दशी तिथि 21 अक्टूबर की रात 1.13 से 22 अक्टूबर को रात 2.34 बजे तक रहेगी। इस दिन सुर्योदय से सिद्धि दायक सर्वार्थसिद्धि योग शाम 5.50 तक रहेगा। इस दिन रूप निखारने के लिए उबटन लगाकर सुर्योदय से पहले स्‍नान के साथ ही यम के पूजन से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।

लक्ष्मी-कुबेर के पूजन का दिन दीपावली



दीपावली 23 अक्टूबर गुरुवार को होगी। इस दिन कार्तिक अमावस्या 22 अक्टूबर की रात 2.35 से 23 को रात 3.26 तक रहेगी। इस दिन सुख-समृद्धि के लिए घर-घर में लक्ष्‍मी पूजन किया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी जी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थी।

प्रकृति की उपासना का दिन गोवर्धन पूजा


दीपावली के अगले दिन प्रकृति की उपासना का दिन गोवर्धन पूजा होगी। इस कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 23 अक्टूबर की रात 3.27 से 24 अक्टूबर को रात 3.47 तक रहेगी। इस दिन मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन होगा। साथ ही गाय की पुजा भी की जाएगी।

भाई-बहन के स्‍नेह का पर्व भाईदूज



कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन 25 अक्टूबर को भाई-बहन के स्‍नेह का पर्व भाई-दूज होगा। दूज 24 अक्टूबर की रात 3.48 से 25 अक्टूबर की रात 3.49 तक रहेगी। इस दिन बहन भाईयों के माथे पर तिलक कर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है।

विशेष दिवाली मंत्र : राशि अनुसार

                           विशेष दिवाली मंत्र : राशि अनुसार कैसे करें  देवी लक्ष्मी को प्रसन्न


मेष : यह दिवाली आपके लिए अति शुभ है। इस शुभता को बढ़ाने के लिए दीपावली के दिन पीले आसन पर बैठकर 'ॐ पीताम्बरायै नमः' इस मंत्र की 57 माला जप करें।
 वृषभ : इस दिवाली में उत्तम फल मिलेंगे। सभी ओर से सफलता मिलेगी। प्रतिकूलता के नाश लिए दिवाली को 'ॐ दुं दुर्गायै नमः' मंत्र की 51 माला जप करें।
मिथुन : दिवाली आपके लिए चमकदार भविष्य का संकेत दे रही है। थोड़ी बहुत मानसिक अशांति हो सकती है। इस मंत्र की 55 माला जप करने से शांति मिलेगी- 'ॐ पुष्टयै नमः।'
 कर्क : इस दिवाली प्रसन्नता दस्तक दे रही है। लेकिन सेहत के सितारे निराश करने वाले हैं।  उत्तम सेहत के लिए इस मंत्र की 51 माला जप करें-'ॐ श्रद्धायै नमः।'

सिंह : यह दिवाली ढेर सारी खुशखबरी के साथ आपको चौंकाने आ रही है। मन पर संयम रखना जरूरी है। वाणी पर संयम उससे भी अधिक जरूरी है। इस मंत्र की 51 माला जप जरूर करें -'ॐ मेघायै नमः।'
 कन्या : इस दिवाली पर आपकी हर मनोकामना पूरी होने के शुभ योग है। लेकिन सोचसमझ कर खर्च ना किया तो आर्थिक स्थिति बीच में धोखा दे सकती है। अत: इस माला का जाप अवश्य करें-'ॐ श्रियै नमः।'


 तुला : दिवाली 2014 आपकी राशि के लिए मध्यम शुभ है लेकिन आपके अच्छे कर्म और दान धर्म की प्रवृत्ति इस अति शुभता में बदल सकती है। इस मंत्र की 55 माला जप करें- ॐ श्री राजलक्ष्म्यै नमः।'
 वृश्चिक : यह दिवाली आपके जीवन में कई नए अनुभव लेकर आ रही है। नई-नई खुशियां, नई-नई सफलताएं आपको आश्चर्य में डाल देगी। वाणी आपकी अनियंत्रित ना रहे इसलिए -'ॐ सरस्वत्यै नमः का दिवाली के दिन 108 बार जप करें।
 धनु : दिवाली इस बार नई चुनौतियां ला रही है। लेकिन आपका पराक्रम इसे जीत लेगा। जमीन-जायदाद-मकान-शेयर हर क्षेत्र में एक विशेष खुशी मिलेगी। इस मंत्र की 51 माला का जप दिवाली को अनुकूल बनाएगा-'ॐ लक्ष्म्यै नमः।'
 मकर : यश,सुख, समृद्धि, वैभव, कीर्ति, खुशी, सफलता इस दिवाली इतनी सारी शुभता आपसे मिलने आ रही हैं। इस मंत्र से आपकी उपलब्धि और अधिक बढ़ेगी-'ॐ श्रीमात्रे नमः।'
 कुंभ : यह दिवाली आपके जीवन के हर संकट को हरने आ रही है। आपका वर्चस्व बढ़ेगा। नई उपलब्धियां कदम चूमेगी। इस मंत्र की 55 माला का जप दिवाली की जगमग को और अधिक बढ़ाएगा-'ॐ योगलक्ष्म्यै नमः।

 मीन : आपके जीवन की सबसे शुभ दिवाली यही है। मामूली कष्टों को नजरअंदाज कर दें तो यह दिवाली आपको मनवांछित खुशियां देगी। पैसे की कमी नहीं रहेगी। प्रतिकूलता से बचने के लिए 51 माला जप करें - ॐ महाकाल्यै नमः।'

. लक्ष्मी पूजन- प्रारंभ

दीपावली के 5 अत्यंत सरल और अचूक प्रयोग- दीपावली की रात्रि में समस्त असुरिय शक्ति मदहोश रहती है। इसलिए इस दिन किसी प्रकार की साधना की जाए तो वह सफल होती है। इस दिन विघ्न पैदा करने वाली ताकतें निष्प्रभावी रहती हैं। हम यहां कुछ ऐसे प्रयोग बता रहे हैं जिससे आपको फल अधिक मिलें व प्रयास कम हों। आप कोई भी एक या सब प्रयोग कर सकते हैं।

1. दीपावली के दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक अखंड दीपक जलाएं।
 2. कमल गट्टे की माला से रात्रि को ॐ कमलायै नमः इस मंत्र की 41 माला जप करें।
 3. दीपावली के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करके रात्रि में महालक्ष्मी स्रोत, विष्णु सहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें।
 4. लक्ष्मी पूजन करके तिजोरी में 5 कमल गट्टे, 1 खड़ी हल्दी, थोड़ा-सा खड़ा धनिया, खड़ी सुपारी, एक सिक्का रखें जो वर्ष पर्यंत तक रहे।
 5. दीपावली की रात्रि उपरांत सूर्योदय के पूर्व घर की झाडू लगाकर घर के बाहर सारा कचरा डालकर के दरिद्रता को बाहर करें। यह कार्य अंधेरे में गुप्त रूप से करें।माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है। प्रकाश के लिए गाय का घी, मूँगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, विल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
                                       चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।

दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
 मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएँ। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियाँ बनाएँ। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियाँ बनाएँ। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएँ।
 इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
 इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
 चौकी
 (1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएँ, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियाँ, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
 पूजा की संक्षिप्त विधि
 सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
 ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और माँ पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
 ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
 अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
 ॐ केशवाय नमः
 और फिर एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
 ॐ नारायणाय नमः
 फिर एक तीसरी बूँद पानी की मुँह में छोड़िए और बोलिए-
 ॐ वासुदेवाय नमः
 फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

 आचमन आदि के बाद आँखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी साँस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।

                                                                                       संकल्प - 

आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूँ जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए।
 हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए।

 सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बँधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए।