मित्रो लाल किताव वास्तव मे दुख दुर करने की कुंजी है अ
का नाम बता दो बचाव हो जाएगा। केवल उन नामों के पीछे अमृत या मणि या
यन्त्र या तन्त्र लाल लिखना बहुत जरूरी होता है। ये अमृत आदि शब्द इतने
अधिक आकर्षक होते हैं कि किसी परेशान व्यक्ति को फाँसने में बड़ा सहयोग
मिलता है क्योंकि इन नामों के प्रति हमारे समाज में असीम आस्था होती है।
संसार में लोगों को जितने प्रकार की आवश्यकता होती है उन सारी बातों के आगे
अमृत या मणि या यन्त्र तन्त्र लिखना बहुत होता है। जैसे -कब्ज दूर
करने करने के लिए कब्ज निरोधक मणि अथवा कब्ज हर यन्त्र या कब्ज हर अमृत
।इसी प्रकार यदि आप कुंडलियों के धंधे में कूदना चाहते हैं तो कंप्यूटर से
कुंडली बनाकर उसके आगे भी अमृत मणि या यन्त्र लिख सकते हैं ।
व कुछ ज्योतिषी भाई लोगो ने किताबें लिखी या लिखाई हैं अथवा अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई हैं जैसे लाल किताब ऐको घ्यान मे रखकर लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब बनाकर रख ली है । इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ओर लोगो पर प्रभाव भी ङल जाता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बकवास करो जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों
जैसे -गुलाबी किताब अमृत ,हरी किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र आदि या लाल किताव मंथन नामों से वही दो सो रूपए वाली कंप्यूटर कुंडली पाँच हजार रूपए में आराम से बिक जाती है अव ईस से वङिया घन्घा हो भी नही सकता
अव तो अब लगने लगा है कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे। क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब ज्योतिषशास्त्र को गाली देते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है वो जिस के चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी कुछ लोगों ने Tv के माघ्य से भी ईस तरह का प्रचार किया अने ही लोग खङे किये जाते है जो तारीफो के पुल वाघते है अपने ही लोगो से फोन करवाऐ जाते है ओर भोले भाले लोग वो सव असली समझ कर फंस जाते है अव तो ज्योतिषीयो ने चोले भी पहन लिऐ ओर वावा गिरी भी करने लग गऐ है tv पर ही आखे वन्द करके फोन पर वता रहे होते है यह कैसी वचकानी हरकते है खैर हम तो कुछ नही वोलेगे वोलेगे तो कहोगे के वोलते है
व कुछ ज्योतिषी भाई लोगो ने किताबें लिखी या लिखाई हैं अथवा अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई हैं जैसे लाल किताब ऐको घ्यान मे रखकर लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब बनाकर रख ली है । इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ओर लोगो पर प्रभाव भी ङल जाता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बकवास करो जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों
जैसे -गुलाबी किताब अमृत ,हरी किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र आदि या लाल किताव मंथन नामों से वही दो सो रूपए वाली कंप्यूटर कुंडली पाँच हजार रूपए में आराम से बिक जाती है अव ईस से वङिया घन्घा हो भी नही सकता
अव तो अब लगने लगा है कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे। क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब ज्योतिषशास्त्र को गाली देते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है वो जिस के चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी कुछ लोगों ने Tv के माघ्य से भी ईस तरह का प्रचार किया अने ही लोग खङे किये जाते है जो तारीफो के पुल वाघते है अपने ही लोगो से फोन करवाऐ जाते है ओर भोले भाले लोग वो सव असली समझ कर फंस जाते है अव तो ज्योतिषीयो ने चोले भी पहन लिऐ ओर वावा गिरी भी करने लग गऐ है tv पर ही आखे वन्द करके फोन पर वता रहे होते है यह कैसी वचकानी हरकते है खैर हम तो कुछ नही वोलेगे वोलेगे तो कहोगे के वोलते है
//,तिथियों
की जानकारी ,
दिशाशूल में हमे पता हैं की ग्रह की अनुकूल
दिशा में यात्रा करना मतलब उनके बहाब के साथ चलना और उनके विरोध चलना कष्ट को
बुलाना हैं यही बात तिथियों पे लागू होती हैं जिस तिथि के काम हो उसी के स्वरूप के
अनुकूल हो जाए तो कार्य में सिद्धि प्राप्त होती हैं तिथियां ,30 होती हैं 15 शुक्ल पक्ष की और 15 कृष्ण पक्ष की होती हैं परंतु 30 तिथियों को 5 -5 के 6 समूहों में बांटा गया हैं प्रत्येक तिथियो के नाम
यह हैं
1= शुक्ल पक्ष की पहली , नन्दा
2=दूसरी , भद्रा
3=तीसरी ,जया
4=चौथी ,रिक्ता
5= पांचवी ,पूर्णा
,
अब इन तिथियों के नाम स्वामी ग्रह के आधार
पर रखे गए हैं उनके विषय में ,
नन्दा = पहली तिथि इसका स्वामी शुक्र हैं जो
हर प्रकार के विलास , और शुभ कार्य में
सम्बद हैं
भद्रा = दूसरी तिथि इसका स्वामी बुध हैं
बुद्ध आप जानते ही हैं कि विष्णु स्वरूप हैं जो भद्र और कल्याणकारी हैं और शुभ
कर्मो की तिथि हैं
जया = तीसरी तिथि ज्या का मतलब जय दिलाने
वाली मतलब युद्ध , आदि में जीत दिलाने
वाली इसका स्वामी मंगल हैं और मंगल तो क्षेत्रीय ग्रह हैं सेना का मुखिया हैं
रिक्ता=चुतर्थ तिथि ,रिक्ता का मतलब खाली , क्रोधी , धन रहित , आभाव , इस तिथि का स्वामी शनि हैं इसमें सभी गुण शनि के हैं सूर्य से दूर होने से
रश्मियों की कमी हैं इसमें सभी गुण शनि के हैं
पूर्णा
= पाँचवी तिथि , पूर्णा
का मतलब हैं पूर्ण ,सम्पन , धनी आदि आदि इस तिथि का स्वामी गुरु हैं जो की धनकारक
ही हैं यह गुरु ग्रह हर विद्या में पूर्ण ग्रह हैं अब #मुहर्त आदि में जैसे किसी फिल्म की शूटिंग पे जाना
हैं तो किसी सिनेमा की नीव रखनी या पिकनिक पे जाना हैं तो शुक्रवार और नन्दा तिथि
से अच्छा कुछ और नहीं होगा , कोई
शुभ कार्य करना हैं यज्ञ करना हैं किसी गरीब को खाना खिलाना हैं तो बुधवार और
भद्रा तिथि से अच्छा कुछ नहीं होगा , किसी शत्रु विरोध में किसी सेना को रिपोर्ट करनी हैं जय मतलब विजय चाहिए
मुकदमे आदि में अपील करनी हैं कोई क्रूर कर्म करना हैं तो मंगलवार और जया तिथि से
अच्छा कुछ नहीं होगा , रिक्ता
तो खाली ही हैं इसमें कोई शुभ कार्य नहीं करने चाहिए ,पूर्णा मतलब गुरु की तिथि विद्या , शुभ कर्म धन लाभ के तो पूर्णा से अच्छी कोई तिथि और
गुरूवार हो तो सबसे अच्छा , इस
तरह् हमे तिथियों के विषय में देखना चाहिए मुहर्त आदि में सबसे पहले चन्द्रमा
सूर्य से दूर हो बलबान हो सूर्य से जितना चन्द्रमा पास हो उन समय में कोई शुभ
कार्य नहीं करने चाहिए चन्द्रमा को बलबान और फिर कोई अच्छी तिथि नन्दा आदि चुन कर
शुभ कार्य करे
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