मंगलवार, 16 अगस्त 2016

विद्वत्ता का घमंड

विद्वत्ता का घमंड

महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था, शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था, अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया,
उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा, उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं, एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए,
गर्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई, थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी, पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले, झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था,
कालिदास ने सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए, उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली. बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी,
कालिदास उसके पास जाकर बोले- बालिके ! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे, बच्ची ने पूछा- आप कौन हैं ? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए, कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता ?
फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले- बालिके अभी तुम छोटी हो, इसलिए मुझे नहीं जानती, घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो, वह मुझे देखते ही पहचान लेगा, मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर-दूर तक, मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं,
कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली-आप असत्य कह रहे हैं, संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं, अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं ?
थोङा सोचकर कालिदास बोले- मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो, मेरा गला सूख रहा है. बालिका बोली- दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’; भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें, देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है,
कलिदास चकित रह गए. लड़की का तर्क अकाट्य था, बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे, बालिका ने पुनः पूछा- सत्य बताएं, कौन हैं आप ? वह चलने की तैयारी में थी,
कालिदास थोड़ा नम्र होकर बोले-बालिके ! मैं बटोही हूं, मुस्कुराते हुए बच्ची बोली- आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं, संसार में दो ही बटोही हैं, उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं ? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी,
बच्ची बोली- आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते ? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है, बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं, आप तो थक गए हैं. भूख प्यास से बेदम हैं, आप कैसे बटोही हो सकते हैं ?
इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई, अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए, इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए, प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी, दिमाग़ चकरा रहा था, उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा, तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली
उसके हाथ में खाली मटका था, वह कुएं से पानी भरने लगी, अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा,
स्त्री बोली- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं, अपना परिचय दो, मैं अवश्य पानी पिला दूंगी कालिदास ने कहा- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें, स्त्री बोली- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं पहला धन और दूसरा यौवन, इन्हें जाने में समय नहीं लगता सत्य बताओ कौन हो तुम ?
अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले- मैं सहनशील हूं अब आप पानी पिला दें स्त्री ने कहा- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं, पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है
दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं. तुम सहनशील नहीं. सच बताओ तुम कौन हो ? कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले- मैं हठी हूं
स्त्री बोली- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं. सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा- फिर तो मैं मूर्ख ही हूं
नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो, मूर्ख दो ही हैं पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है
कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे, वृद्धा ने कहा- उठो वत्स ! आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए
माता ने कहा- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार!!
तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े

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