<<<< स्वस्थ रहना है तो इन 20 बातों को अनदेखा न करें>>>>>>>>>>>>
1. आजकल बढ़ रहे चर्म रोगों और पेट के रोगों का
सबसे बड़ा कारण दूधयुक्त चाय और इसके साथ लिया जाने वाला नमकीन है.
2. कसी हुई टाई बाँधने से आँखों की रोशनी पर
नकारात्मक प्रभाव होता है
3. अधिक झुक कर पढने से फेफड़े,रीढ़,और आँख की रौशनी
पर बुरा असर होता है
4. अत्यधिक फ्रीज किये हुए ठन्डे पदार्थों के
सेवन से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है.
5. भोजन के पश्चात स्नान स्नान करने से पाचन
शक्ति मंद हो जाती है इसी प्रकार भोजन के तुरंत बाद मैथुन, बहुत ज्यादा
परिश्रम करना एवं सो जाना पाचनशक्ति को नष्ट करता है.
6. पेट बाहर निकलने का सबसे बड़ा कारण खड़े होकर
या कुर्सी मेज पर बैठ कर खाना और तुरंत बाद पानी पीना है. भोजन सदैव जमीन पर बैठ
कर करें. ऐसा करने से आवश्यकता से अधिक खा नहीं पाएंगे. भोजन करने के बाद पानी
पीना कई गंभीर रोगों को आमंत्रण देना है.
7. भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल, लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त
में कटु, तिक्त, कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के
पदार्थों का सेवन करना चाहिए
8. भोजन के बाद हाथ धोकर गीले हाथ आँखों पर
लगायें. यह आँखों को गर्मी से बचाएगा.
9. नहाने के कुछ पहले एक गिलास सादा पानी
पियें. यह हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से बहुत हद तक दूर रखेगा.
10. नहाने की शुरुवात सर से करें. बाल न धोने
हो तो मुह पहले धोये. पैरों पर पहले पानी डालने से गर्मी का प्रवाह ऊपर की ओर होता
है और आँख मस्तिष्क आदि संवेदन शील अंगो को क्षति होती है.
11. नहाने के पहले सोने से पहले एवं भोजन कर
चुकने के पश्चात मूत्र त्याग अवश्य कर्रें. यह अनावश्यक गर्मी, कब्ज और पथरी से
बचा सकता है.
12. कभी भी एक बार में पूर्ण रूप से मूत्रत्याग
न करें बल्कि रूक रुक कर करें. यह नियम स्त्री पुरुष दोनों के लिए है ऐसा करके
प्रजनन अंगों से सम्बंधित शिथिलता से आसानी से बचा जा सकता है. (कीगल एक्सरसाइज)
13. खड़े होकर मूत्र त्याग से रीढ़ की हड्डी के
रोग होने की सम्भावना रहती है. इसी प्रकार खड़े होकर पानी पीने से जोड़ों के रोग
ऑर्थरिटिस आदि हो जाते हैं.
14. फल, दूध से बनी मिठाई, तैलीय पदार्थ
खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए. ठंडा पानी तो कदापि नहीं.
15. अधिक रात्रि तक जागने से प्रतिरोधक क्षमता
कम होने लगती है .
16. जब भी कुल्ला करें आँखों को अवश्य धोएं.
अन्यथा मुह में पानी भरने पर बाहर निकलने वाली गर्मी आँखों को नुकसान पहुचायेगी.
17. सिगरेट तम्बाकू आदि नशीले पदार्थों का सेवन
करने से प्रत्येक बार मस्तिष्क की हजारों कोशिकाएं नष्ट हो जाती है इनका
पुनर्निर्माण कभी नहीं होता.
18. मल मूत्र शुक्र खांसी छींक अपानवायु जम्हाई
वमन क्षुधा तृषा आंसू आदि कुल 13 अधारणीय वेग बताये गए हं इनको कभी भी न रोकें.
इनको रोंकना गंभीर रोगों के कारण बन सकते हैं .
19. प्रतिदिन उषापान करने कई बीमारियाँ नहीं हो
पाती और डॉक्टर को दिया जाने वाला बहुत सा धन बच जाता है.उषापान दिनचर्या का
अभिन्न अंग बनायें.
20. रात्रि शयन से पूर्व परमात्मा को धन्यवाद
अवश्य दें. चाहे आपका दिन कैसा भी बीता हो. दिन भर जो भी कार्य किये हों उनकी
समीक्षा करते हुए अगले दिन की कार्य योजना बनायें अब गहरी एवं लम्बी सहज श्वास
लेकर शरीर को एवं मन को शिथिल करने का प्रयास करे. अपने सब तनाव, चिन्ता, विचार आदि
परमपिता परमात्मा को सौंपकर निश्चिंत भाव से निद्रा की शरण में जाएँ.-------------------------------------------
शास्त्रों में सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय तक
का समय दिवस कहलाता है। एक दिवस को पहरों में अवरूद्ध किया गया है। दिन और रात के
बराबर होने पर एक पहर लगभग तीन घण्टे का कहा जाता है। इसी के अनुसार चार पहर दिन
के और चार पहर रात के कहे गए हैं। सूर्य उदय से पहला प्रहर देव उपासना को समर्पित
है इसके अतिरिक्त दिन का दूसरा, चौथा और पांचवां प्रहर शास्त्रों में देव दर्शन, भोजन बनाने के
लिए और शुभ कामों के लिए निर्धारित किया गया है। शास्त्रों में पांचवें और छठे
प्रहर को रात्रि कहा जाता है। जिसका संबंध कामदेव की पत्नी रती से है। शब्द रात्री
रती से ही उत्पन्न हुआ है। रात के समय कुछ ऐसे काम होते हैं जिन्हें करने से
व्यक्ति के जीवन में सुख-सुविधाएं और धन का अर्जन होता है।
* रात के समय घर की दक्षिण और पश्चिम दिशा में
दीपक करने से पितरों का मार्ग प्रशस्त होता है।
* देव स्थान पर दीपक करने से लक्ष्मी का आगमन
घर में होता है।
* शयन कक्ष में कपूर जलाने से सकारात्मक ऊर्जा
प्रवेश करती है जिससे पति-पत्नी में प्रेम संबंध प्रगाड़ होते हैं।
* गुगल धूप जलाने से घर में भूत-प्रेत पलायन
करते हैं।
* पैर धो कर सोना चाहिए।
* बिस्तर साफ करके सोना चाहिए।
* सोते समय पांव उत्तर दिशा में होने चाहिए।
* माता-पिता के सोने के बाद सोना चाहिए।
* माता-पिता के चरण स्पर्श करके सोना चाहिए।
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