क्या हैं यंत्र मंत्र और
तंत्र...
मंत्र: मंत्र एक सिद्धांत को कहते
हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की
आवश्यकता होती है। मंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में तांत्रिक
को मदद करता है। मंत्र द्वारा ही यह पता चलता है की कौन से तंत्र को किस यन्त्र
में समिलित कर के लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है।
मंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा
प्रयोग सफल होता है। जैसे क्रिंग ह्रंग स्वाहा एक सिद्ध मंत्र है।
मंत्र मन तथा त्र शब्दों से मिल
कर बना है। मंत्र में मन का अर्थ है मनन करना अथवा ध्यानस्त होना तथा त्र का अर्थ
है रक्षा। इस प्रकार मंत्र का अर्थ है ऐसा मनन
करना जो मनन करने वाले की रक्षा कर सके। अर्थात मन्त्र के उच्चारण या मनन से
मनुष्य की रक्षा होती है।
तंत्र: श्रृष्टि में इश्वर ने हरेक
समस्या का समाधान स्वयम दिया हुआ है। ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान
इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए
रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं। इस समाहार से
बनने वाली उस औषधि या वस्तु से प्राणियों का कल्याण होता है।
तंत्र तन तथा त्र शब्दों से मिल
कर बना है। जो वस्तु इस तन की रक्षा करे उसे ही तंत्र कहते हैं।
यन्त्र: मंत्र और तंत्र को यदि सही
से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के
रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को
आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस
पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक
ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के
कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। आसन, तलिस्मान, ताबीज
इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार को आकृति को भी यन्त्र मन गया है। जैसे
श्री यन्त्र, काली यन्त्र, महा मृतुन्जय यन्त्र इत्यादि।
यन्त्र शब्द यं तथा त्र के मिलाप से
बना है। यं को पुर्व में यम यानी काल कहा
जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है।क्यों शिव को कहते हैं रुद्र ?
रुद्र का शाब्दिक अर्थ होता है
- रुत् यानी दु:खों का अंत करने वाला। यही वजह है कि शिव
को दु:खों को नाश करने वाले देवता के रुप में भी पूजा जाता है।
व्यावहारिक जीवन में कोई दु:खों को
तभी भोगता है,
जब तन, मन या कर्म किसी न किसी रूप
में अपवित्र होते हैं। शिव के रुद्र रूप की आराधना का महत्व यही है कि इससे
व्यक्ति का चित्त पवित्र रहता है और वह ऐसे कर्म और विचारों से दूर होता है, जो मन
में बुरे भाव पैदा करे।
शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह
अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाश करते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम
से जाने जाते हैं। जानिए ग्यारह रूद्र रूप व शक्तियों से जुड़ी बातें -
शम्भू - शास्त्रों के मुताबिक यह
रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है। इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन
और संहार करते हैं।
पिनाकी - ज्ञान शक्ति रुपी चारों
वेदों के के स्वरुप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं।
गिरीश - कैलाशवासी होने से रुद्र का
तीसरा रुप गिरीश कहलाता है। इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं।
स्थाणु - समाधि, तप और
आत्मलीन होने से रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाता है। इस रुप में पार्वती रूप
शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है।
भर्ग - भगवान रुद्र का यह रुप बहुत
तेजोमयी है। इस रुप में रुद्र हर भय और पीड़ा का नाश करने वाले होते हैं।
भव - रुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग
बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है।
सदाशिव - रुद्र का यह स्वरुप निराकार
ब्रह्म का साकार रूप माना जाता है, जो सभी वैभव, सुख
और आनंद देने वाला माना जाता है।
शिव - यह रुद्र रूप अंतहीन सुख देने
वाला यानी कल्याण करने वाला माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधना
महत्वपूर्ण मानी जाती है।
हर - इस रुप में नाग धारण करने वाले
रुद्र शारीरिक,
मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल
पर इन का नियंत्रण होता है।
शर्व - काल को भी काबू में रखने वाला
यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है।
कपाली - कपाल रखने के कारण रुद्र का
यह रूप कपाली कहलाता है। इस रूप में ही दक्ष का दंभ नष्ट किया। किंतु प्राणीमात्र
के लिए रुद्र का यही रूप समस्त सुख देने वाला माना जाता है।
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