हर मनुष्य को अपार धन की प्राप्ति हेतु
श्रीगणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे
'संकटनाशन गणेश स्तोत्र' का पाठ 11
बार करना चाहिए।
आपके लिए
प्रस्तुत है श्री गणेश का लोकप्रिय संकटनाशन स्तोत्र :
प्रणम्यं शिरसा
देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं
वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं
च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
नवमं भालचन्द्रं
च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि
नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते
विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते
गतिम् ।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो
ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
॥ इति
श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
प्रतिवर्ष होली के दूसरे दिन से ही गणगौर का
त्योहार आरंभ हो जाता है, जो
पूरे अठारह दिन तक लगातार चलता रहता है। बड़े सवेरे ही होली की राख को गाती-बजाती
महिलाएं अपने घर लाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाती हैं, शंकर और पार्वती बनाकर सोलह दिन बराबर
उनकी पूजा करती हैं।
दीवार
पर सोलह बिंदिया कुंकुम की, सोलह
बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की प्रतिदिन लगाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की
वस्तुएं हैं। सुहाग की प्रतीक हैं। शंकर को पूजती हुई कुंआरी कन्याएं प्रार्थना
करती हैं कि उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो। शंकर और पार्वती को आदर्श दंपत्ति माना
गया है। दोनों के बीच अटूट प्रेम है।
शंकरजी
के जीवन और मन में कभी दूसरी स्त्री का ध्यान नहीं आया। सभी विवाहित महिलाएं भी
अपने जीवन में पति का अखंड प्रेम चाहती हैं। किसी और की साझेदारी की वे कल्पना तक
करना पसंद नहीं करतीं।
कन्याएं भी एक समूह में सजधज कर दूब और फूल
लेकर गीत गाती हुई बाग-बगीचे में जाती हैं। घर-मोहल्लों से गीतों की आवाज से सारा
वातावरण गूंज उठता है। कन्याएं कलश को सिर पर रखकर घर से निकलती हैं तथा किसी
मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं। मिट्टी की पिंडियों की
पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोलह कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी
दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं।
एक
बुजुर्ग औरत फिर पांच कहानी सुनाती है। यह होती हैं शंकर-पार्वती के प्रेम की, दाम्पत्य जीवन की मधुर झलकियों की।
उनके आपस की चुहलबाजी की सरस, सुंदर
साथ ही शिक्षाप्रद छोटी-छोटी कहानियां और चुटकुले। गणगौर के त्योहार को उमंग, उत्साह और जोश से मनाया जाता है।
महिलाएं गहनों-कपड़ों से सजी-धजी रहती हैं।
नाचना
और गाना तो इस त्योहार का मुख्य अंग है ही। घरों के आंगन में, सालेड़ा आदि नाच की धूम मची रहती है।
परदेश गए हुए इस त्योहार पर घर लौट आते हैं। जो नहीं आते हैं उनकी बड़ी आतुरता से
प्रतीक्षा की जाती है। आशा रहती है कि गणगौर की रात को जरूर आएंगे। झुंझलाहट, आह्लाद और आशा भरी प्रतीक्षा की मीठी
पीड़ा को व्यक्त करने का साधन नारी के पास केवल उनके गीत हैं। यह गीत उनकी मानसिक
दशा के बोलते चित्र हैं।
चैत्र शुक्ल तीज को गणगौर की प्रतिमा एक चौकी
पर रख दी जाती है। यह प्रतिमा लकड़ी की बनी होती है। उसे जेवर और वस्त्र पहनाए जाते
हैं। फिर उस प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है।
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