कुल 9 तरह की विद्याओं में से हनुमानजी को उनके
गुरु ने 5 तरह की विद्याएं तो सिखा दीं, लेकिन बची 4 तरह की विद्याएं और ज्ञान ऐसे थे, जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा
सकते थे। हनुमानजी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वे मानने को
राजी नहीं थे। इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वे धर्म के अनुशासन के कारण
किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखा सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्यदेव
ने हनुमानजी को विवाह की सलाह दी।
अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमानजी ने
विवाह करने की सोची। लेकिन हनुमानजी के लिए वधू कौन हो और कहां से वह मिलेगी? इसे लेकर सभी सोच में पड़ गए। ऐसे में
सूर्यदेव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमानजी के साथ शादी
के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद हनुमानजी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा
के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई। इस तरह हनुमानजी भले ही शादी के बंधन में बंध गए
हो, लेकिन शारीरिक
रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।एक वेबसाइट का दावा है कि प्रत्येक 41 साल
बाद हनुमानजी श्रीलंका के जंगलों में प्राचीनकाल से रह रहे आदिवासियों से मिलने के
लिए आते हैं। वेबसाइट के मुताबिक श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऐसे कबीलाई लोगों का
पता चला है जिनसे मिलने हनुमानजी आते हैं।
इन कबीलाई लोगों पर अध्ययन करने वाले
आध्यात्मिक संगठन 'सेतु' के अनुसार पिछले साल ही हनुमानजी इन
कबीलाई लोगों से मिलने आए थे। अब हनुमानजी 41 साल बाद आएंगे। इन कबीलाई या आदिवासी
समूह के लोगों को 'मातंग' नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि
कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मातंग ऋषि का आश्रम है, जहां हनुमानजी का जन्म हुआ था।
वेबसाइट सेतु एशिया ने दावा किया है कि 27 मई
2014 को हनुमानजी श्रीलंका में मातंग के साथ थे। सेतु के अनुसार कबीले का इतिहास
रामायणकाल से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान राम के स्वर्ग चले जाने के बाद
हनुमानजी दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए थे और फिर समुद्र पार कर श्रीलंका के
जंगलों में रहने लगे। जब तक पवनपुत्र हनुमान श्रीलंका के जंगलों में रहे, वहां के कबीलाई लोगों ने उनकी बहुत
सेवा की।
जब हनुमानजी वहां से जाने लगे तब उन्होंने वादा
किया कि वे हर 41 साल बाद आकर वहां के कबीले की पीढ़ियों को ब्रह्मज्ञान देंगे।
कबीले का मुखिया हनुमानजी के साथ की बातचीत को एक लॉग बुक में दर्ज कराता है। 'सेतु' नामक संगठन इस लॉग बुक का अध्ययन कर उसका खुलासा करने का दावा करता
है।हनुमान दर्शन और कृपा : हनुमानजी बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं।
उनकी कृपा आप पर निरंतर बनी रहे इसके लिए पहली शर्त यह है कि आप मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें अर्थात कभी
भी झूठ न बोलें, किसी
भी प्रकार का नशा न करें, मांस
न खाएं और अपने परिवार के सदस्यों से प्रेमपूर्ण संबंध बनाए रखें। इसके अलावा
प्रतिदिन श्रीहनुमान चालीसा या श्रीहनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करें।
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी को चोला
चढ़ाएं। इस तरह ये कार्य करते हुए नीचे लिखे उपाय करें...
हनुमान जयंती या महीने के किसी भी मंगलवार के
दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। 1 लोटा जल लेकर हनुमानजी के मंदिर में
जाएं और उस जल से हनुमानजी की मूर्ति को स्नान कराएं।
पहले दिन एक दाना साबुत उड़द का हनुमानजी के
सिर पर रखकर 11 परिक्रमा करें और मन ही मन अपनी मनोकामना हनुमानजी को कहें, फिर वह उड़द का दाना लेकर घर लौट आएं
तथा उसे अलग रख दें।
दूसरे दिन से 1-1 उड़द का दाना रोज बढ़ाते रहें
तथा लगातार यही प्रक्रिया करते रहें। 41 दिन 41 दाने रखने के बाद 42वें दिन से 1-1
दाना कम करते रहें। जैसे 42वें दिन 40, 43वें दिन 39 और 81वें दिन 1 दाना। 81वें दिन का यह अनुष्ठान पूर्ण
होने पर उसी दिन, रात
में श्रीहनुमानजी स्वप्न में दर्शन देकर साधक को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते
हैं। इस पूरी विधि के दौरान जितने भी उड़द के दाने आपने हनुमानजी को चढ़ाए हैं, उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
जय बजरंग बली.....मैं यहाँ "सेतु हनुमान बोधि" का खुलासा कर रहा हूँ, ताकि आप भी उनकी बातों में न आएं |
जवाब देंहटाएं"सेतु हनुमान बोधि " नाम की एक संस्था श्री लंका में है और उन्होंने इस बात का दावा किया है और प्रचार किया है कि २०१४ में हनुमान जी लोगों से मिलने आए थे | हनुमान जी मतंग लोगों के बीच थे और उनका लीडर उस मुलाक़ात को एक रजिस्टर में दर्ज किए हुए है, जो उनकी सिंघली भाषा में है जिसका अनुवाद करने में समय लग रहा है | जैसे जैसे वे इसका अनुवाद करते जाएंगे वे उसे भेजते जाएंगे | वे इस मुलाक़ात के २१ चैप्टर भी छाप चुके हैं, तथा हर बार वो अर्पणम मांगते है जो 250/- रूपये से लेकर 5000/- तक का है |
मैं अभी हाल ही में श्रीलंका जा कर आया हूँ और मुझे वंहा ऐसी कोई संस्था नहीं दिखी | उन्होंने अपना इंटरनेट पर पता मन्दारम नुवारा का दिया हुआ है | जब हम वहाँ गए तो वो एक छोटा सा सुंदर सा गाँव है लेकिन वहाँ मतंग नाम के कोई आदिवासी नहीं है | हमें वहाँ बहुत ढूँढने पर एक पहाड़ जो करीब ३ किलोमीटर ऊपर था, वहाँ तमिल लोग मिले जो आम लोगों से कटे हुए है |
ये लोग हनुमान जी के अनन्य भक्त हैं | मगर इन्होंने भी हनुमान जी को २०१४ में नहीं देखा | उन्होंने हनुमान जी को कभी देखा ही नहीं है | हालांकि उनका ये मानना है कि हनुमान जी आज भी जीवित है क्यों कि उनके पाँव के निशान कभी कभी जंगल में देखने को मिल जाते हैं | मगर “सेतु हनुमान बोधि” नाम की कोई संस्था के बारे में वे नहीं जानते और ना ही उनके बारे में सुना है |
“सेतु हनुमान बोधि” वालों से इंटरनेट पर ई –मेल करके मैंने उनका फोन नम्बर लेने का प्रयास किया मगर उन्होंने अपना कोई फोन नम्बर नहीं दिया और कहा कि उनका आफिस कोलम्बो में है लेकिन कोलम्बो का कोई पता उन्होंने नहीं दिया है और ना मेरी ई-मेल में दिया है | उन्होंने जब कोई फोन नम्बर नहीं दिया और कोलम्बो का कोई पता नहीं दिया तब मुझे उनके होने पर शक हुआ, और ये शक स्पष्ट हो गया कि “सेतु हनुमान बोधि” नाम की कोई संस्था है |
मैं लगातार उन्हें प्रत्येक चेप्टर के 251/- रूपये भेज रहा हूँ लेकिन अब रोक दिया है |
मेरा आप सभी लोगों से यह अनुरोध है कि उनके इस बहकावे में ना आएं कि २०१४ में हनुमान जी लोगों से आकर मिले थे और ४१ वर्षों के बाद वे फिर से आएँगे |
के.बी.व्यास