बड़ा सातवां रहस्य... पहली हनुमान स्तुति : हनुमानजी की
प्रार्थना में तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान
बहुक आदि अनेक स्तोत्र लिखे, लेकिन
हनुमानजी की पहली स्तुति किसने की थी? तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा
में स्तुति लिखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं सबसे पहले हनुमानजी की स्तुति किसने
की थी?
जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने
अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया,
क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन
इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि
विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद
तो यह कि उनके घर के ऊपर 'राम' नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने
उनके भवन को नहीं जलाया।
विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने
श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे
पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर
शरणागति देने की वकालत की। इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के
सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण
देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है।
इस पर श्री हनुमानजी ने कहा कि तुम लोग विभीषण को
ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं क्यों और क्या चाहता हूं...। फिर
कुछ देर हनुमानजी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है
और कहता है- 'मैं
तेरा हूं, उसे
मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं। यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी
जानी चाहिए।'
इंद्रादि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम
विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। विभीषण को भी हनुमानजी की
तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। वे भी आज सशरीर जीवित हैं। विभीषण ने
हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है। विभीषण
द्वारा रचित इस स्तोत्र को 'हनुमान
वडवानल स्तोत्र कहते हैं।
सब सुख लहे तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।
हनुमान की शरण में भयमुक्त जीवन : हनुमानजी ने
सबसे पहले सुग्रीव को बाली से बचाया और सुग्रीव को श्रीराम से मिलाया। फिर
उन्होंने विभीषण को रावण से बचाया और उनको राम से मिलाया। हनुमानजी की कृपा से ही
दोनों को ही भयमुक्त जीवन और राजपद मिला। इसी तरह हनुमानजी ने अपने जीवन में कई
राक्षसों और साधु-संतों को भयमुक्त और जीवनमुक्त किया है।क्यों सिन्दूर चढ़ता है
हनुमानजी को? : हनुमानजी
को सिन्दूर बहुत ही प्रिय है। इसके पीछे ये कारण बताया जाता है कि एक दिन भगवान
हनुमानजी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा माता लाल रंग की कोई चीज
मांग में सजा रही है। हनुमानजी ने जब माता से पूछा, तब माता ने कहा कि इसे लगाने से प्रभु राम की आयु बढ़ती है और प्रभु
का स्नेह प्राप्त होता है।
तब हनुमानजी ने सोचा जब माता इतना-सा सिन्दूर
लगाकर प्रभु का इतना स्नेह प्राप्त कर रही है तो अगर मैं इनसे ज्यादा लगाऊं तो
मुझे प्रभु का स्नेह, प्यार
और ज्यादा प्राप्त होगा और प्रभु की आयु भी लंबी होगी। ये सोचकर उन्होंने अपने
सारे शरीर में सिन्दूर का लेप लगा लिया। इसलिए कहा जाता है कि भगवान हनुमानजी को
सिन्दूर लगाना बहुत पसंद है।हनुमानजी की पत्नी का नाम : क्या अपने कभी सुना है कि
हनुमानजी का विवाह भी हुआ था? आज
तक यह बात लोगों से छिपी रही, क्योंकि
लोग हिन्दू शास्त्र नहीं पढ़ते और जो पंडित या आचार्य शास्त्र पढ़ते हैं वे ऐसी
बातों का जिक्र नहीं करते हैं लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं हनुमानजी का एक ऐसा सच
जिसको जानकर आप रह जाएंगे हैरान...
आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में एक मंदिर ऐसा
विद्यमान है, जो
प्रमाण है हनुमानजी के विवाह का। इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा के साथ उनकी
पत्नी की प्रतिमा भी विराजमान है। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग
आते हैं। माना जाता है कि हनुमानजी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद
पति-पत्नी के बीच चल रहे सारे विवाद समाप्त हो जाते हैं। उनके दर्शन के बाद जो भी
विवाद की शुरुआत करता है, उसका
बुरा होता है।
हनुमानजी की पत्नी का नाम सुवर्चला था। वैसे तो
हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और आज भी वे ब्रह्मचर्य के व्रत में ही हैं, विवाह करने का मतलब यह नहीं कि वे
ब्रह्मचारी नहीं रहे। कहा जाता है कि पराशर संहिता में हनुमानजी का किसी खास
परिस्थिति में विवाह होने का जिक्र है। कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण ही
बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा।
इस संबंध में एक कथा है कि हनुमानजी ने भगवान
सूर्य को अपना गुरु बनाया था। हनुमानजी भगवान सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे
थे। सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमानजी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के
साथ-साथ उड़ना पड़ता था और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते।
लेकिन हनुमानजी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया।
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