रविवार, 24 मई 2015

//शिवलिंग: ----



//शिवलिंग: ----





सबसे पहली बात संस्कृत में "लिंग" का अर्थ होता है प्रतीक।
जननेंद्रिय (sex organ) के लिए संस्कृत में एक दूसरा शब्द है - "शिश्न".
पुरुष लिंग यानि पुरुष का प्रतिक,
स्त्री लिंग यानि स्त्री का प्रतिक,
शिवलिंग यानि शिव का प्रतिक।।
# अगर लिंग का अर्थ पुरुष जननेंद्रिय होता तो:-
स्त्रीलिंग शब्द के अनुसार स्त्री में भी पुरुष का जननेंद्रिय होता।
और पुरुष लिंग का अर्थ होता पुरुष का जननेंद्रिय।
इसके अनुसार अगर मै पुरुष लिंग हूँ ,
तो इसका मतलब मै पुरुष का जननेंद्रिय हूँ।
शिवलिंग के नीचे का जो गोल हिस्सा होता है उसे योनि या पीठ कहते है।
योनि का अर्थ प्रकटीकरण या origin होता है।
here origin of shivling ,
शिवलिंग का प्रकटीकरण।।
योनि इसलिए बनाया जाता है ताकी शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ सारा जल एकत्रित होकर केवल एक दिशा उत्तर में जाये क्यों की उत्तर की दिशा में गंगा प्रवाहित हुई है।
इसलिए सारा शिवलिंग केवल उत्तर दिशा में ही स्थापित होता है।
मनुष्य योनि
पशु योनि
वृक्ष योनि
पुरुष योनि
स्त्री योनि
यदि योनि का अर्थ स्त्री जननेंद्रिय होता तो
पुरुषयोनि के शब्द के अनुसार पुरुष में भी स्त्री का जननेंद्रिय होता।
और इस अनुसार अगर मै स्त्रीलिंग हूँ तो इसका मतलब मै स्त्री की जननेंद्रिय हूँ।
फिर योनि को पीठ कहना संभव नहीं होता।
●●) शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण-निराकार रूप का प्रतीक है और ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनो का मेल है ;
अतः यह शरीर का कोई हिस्सा नहीं हो सकता।
# ब्रह्मा,विष्णु,महेश एक ही निराकार शक्ति शिव के तीन रूप है।
शिवलिंग में ऊपर के भाग में शंकर जी का स्थान है। बीच में विष्णु जी का और सतह में ब्रह्मा जी का।
अतः शिवलिंग की पूजा से भगवान के तीनो रूप की पूजा हो जाती है।
शिव जी का स्थान ऊपर के भाग में होने के कारन श्रृंगार में उसपर शिव जी का मुख बनता है।
इसलिए यदि शिवलिंग शिव जी का जनेन्द्रिय होता तो कभी भी उसपर भगवान का मुख नहीं बनता।
!!! पुराणों के अनुसार शिवलिंग से ही हमारे सृष्टी का निर्माण हुआ !!!
विज्ञान और हमारे शास्त्र दोनों के अनुसार ठीक 3456 करोड़ वर्ष ( एक महायुग ) में big bang ( उर्जा का महाविस्फोट ) होता है तब श्रृष्टि (ब्रह्माण्ड में जो भी है ) का निर्माण होता है।
big bang के समय विस्फोट से जो महाउर्जा प्रकट हुआ वह अंडा (egg shape ) के आकार में प्रकट हुआ और फिर पल भर में अनंत आकार का रूप ले लिया जिसके छोर का न कोई आदि था और न अंत ।
( no starting and end point )
यही ( egg shape )भगवान शिव के निराकार रूप का सर्वप्रथम रूप शिवलिंग हुआ जिसके कारन शिवलिंग को भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतिक माना गया है।
फिर शिवलिंग से ही भगवान के रूप ब्रह्मा और विष्णु प्रकट हुए।
फिर इन दोनों ने शिवलिंग को देखा और ब्रह्मा जी शिवलिंग के नीचे का अंत खोजने चले और विष्णु जी ऊपर का।
पर इन्हें उसका अंत नहीं मिला।
तब जाकर शिव जी अर्धनारीश्वर ( शिव + शक्ति ) के रूप में प्रकट हुए। उसके बाद शिव और शक्ति अलग हुए।
अतः ब्रह्मा + विष्णु + महेश के मेल के कारन भी इसे निराकार रूप का प्रतिक माना गया है क्यों की ये तीनो एक निराकार के ही तीन रूप हैं।
आकाशं लिंगमित्याहु: पृथ्वी तस्य पीठिका।
आलय: सर्व देवानां लयनार्लिंगमुच्यते ॥
(स्कन्द पुराण)
अर्थात : 'आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सृष्टी के अंत में संसार लिंग में समाहित होता है।'

इसी कारण लिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)
शिव और शक्ति दोनों के मेल से की संसार बना है।इसलिय लिंग को शिव और योनि को शक्ति माना गया है।
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है।
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति का आदि-अनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है |इसलिए शिव पुरुष है और शक्ति प्रकृति है।
अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है |
e / c = m c {e=mc^2}
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर श्रृष्टि
का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था.
हमारे संतों/ऋषियों ने जो हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है. वे हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें बता रहे हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है. यह सार्वभौमिक ज्ञान लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना हमें संस्कृत जैसी महान भाषा में उपलब्ध होता है . यह किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता । कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही । जैसे एक छोटा सा उदहारण देता हूँ : आज गूगल ट्रांसलेटर http://translate.google.com/ में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है किन्तु संस्कृत का नही । क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ।
आप कहेंगे की संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही इसलिए नही होगी , यदि इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों अपनाना चाहती है । और अपने नवयुवकों को संस्कृत सिखने पर जोर क्यू दे रही है ?

हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।
पुराणो में साफ़ लिखा है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है।

सोमवार, 18 मई 2015

ै, अप्सरा साधना यक्षिणी साधना



यह श्रष्टि पंच भौतिक तत्वो -प्रथ्वी ,जल,तेज,वायु व आकाश से निर्मित है देशकाल के आधार पर वही तत्व 

अधिकप्रतीत होता है जैसे भूमि पर मानव व आकाश मे रूहे[आत्मा]! 

 भारत मे प्राचीन काल से अनेक साधनाये प्रचलित है जैसे







अप्सरा,यक्षिणी,योगिनी,भूत प्रेत,यक्ष,गण,गंधर्व,पितृ,विद्याधर,किन्नर,नागनागिनी,मशानी 

आदि ये निम्न कोटि के देव साधना के अंतर्गत आती है व काली,दुर्गा,भैरव,शिव,हनुमान, आदि

देव उच्च कोटि के  देव हैं । ये सभी प्रत्यक्ष दर्शन साधनाऐ है, अप्सरा साधना से विपरीत अन्य सभी साधनाओ मे भूल होने पर प्राण जाने का या पागल होने का पूर्ण भय होता है। क्योकि इनके आगमन से पूर्व आपार भय दिया जाता है।

आइये जानतें हैं यक्षिणी और योगिनी के संवंध में यक्षिणियाँ यक्षों की पत्नियाँ है जो यक्ष लोक की वासिनी हैं,यक्ष व

यक्षिणियाँ जल युक्त व धन युक्त स्थानो की अधिष्ठाता होते है,भगवान कुबेर जी इनके राजा हैं।सिध्द होने पर ये खुद का जीवन संकट मे डालकर भी साधक का हर कार्य सिध्द कराती हैं। जिस रूप में बुलाया जाता है,उस से संबंधित व्यक्ति को 
जीवित नहीं छोड़ती ,भूल हुई तो साधक की भी यही दशा होती है।

जब महाकली माँ घोर नामक दैत्य का वध कर रही थीं तब उनके शरीर के पसीने की बूंद से अरबो उनही के समान तेज व कोप वाली योगिनियो की उत्पत्ति हुई।काली माँ के शरीर सेउत्पन्न होने के कारण ये भी उन्ही के समान तेजवान हैं।इनकि सिध्दि की विद्या परम गोपनीय व देवदुर्लभ है इस साधना से ही
कुबेर जी को धनाधिपति का पद मिला था।


यक्षिणी,योगिनी,किन्नरी आदि की सहभागिनी के रूप मे सिध्द किया जाये तो किसी अन्य स्त्रियो से शारीरिक संपर्क रखना अपराध हो जाता है इसपर यें कुपित हो साधक का नाश कर देतीं हैं इनकि साधना को वे हि साधक करें जो इनके नियमों को मान सके
 १साधना काल में साधक को कोई अन्य स्पर्श न करें

२स्वयं का काम स्वयं ही करें ३सात्विकता का अनुसरण करें

४माँस,मद,तंबाकू,पान,नशा व स्त्री गमन आदि व्यसन त्यागना चाहिये

५अन्य किसी को साधना स्थल में प्रवेश वर्जित होता है,

६नित्य कन्यापूजन सिध्दि कि शक्ति वढ़ाने हेतू अच्छा विकल्प है,

७पूर्व मे ही गुरू ,गणपति,शिव,कुबेर, नवग्रह, मृत्युंजय आनुष्ठान सफल करना होता है

८ये अत्याधिक विस्मयकारी व भयावन रूप धारण कर साधक को डरातीं हैं भयभीत

होने पर पागल कर देती है या मार देती है

९साधना के अन्य सभी नियमों का पालन भी कठोरता से पालन करना अनिवार्य है

१०साधक किसी भी साधना की अवधी में हविष्याई,जितेन्द्रीय हो, व लोभ

,मोह,क्रोध,बैर,काम,उन्माद आदि का त्याग करें

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साधना क्षेत्र से जुड़े लोग अच्छी तरह जानते हैं की कोई भी साधना सरल नहीं होती |साधना करें और सफलता भी अवश्य मिले ऐसा बहुत कम मामलों में होता है ,कारण साधना के कुछ ऐसे गोपनीय तथ्य होते हैं ,विशेष तकनीकियाँ होती हैं ,जिनका सही उपयोग किया जाए तभी सफलता हासिल की जा सकती है |फेसबुक जैसे सामाजिक माध्यमों पर साधनाएं रोज प्रकाशित हो रही हैं एक से बढ़कर एक ,पर सफलता कितनी मिलेगी कहा नहीं जा सकता |इसका कारण है की सीढ़ी साधना देने से और करने से ,एक निश्चित संख्या में जप -हवन कर देने मात्र से सफलता नहीं मिलती ,इसके लिए विशेषज्ञ मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,सामयिक तकनीकियों की जानकारी समय समय पर मिलती रहनी चाहिए |समय समय पर होने वाली अनुभूतियों -कठिनाइयों का सामयिक निराकरण होते रहना चाहिए |गोपनीय तथ्यों की जानकारी होते रहना चाहिए जो यहाँ नहीं बताया जाता है ,तभी सफलता मिलती है |

सौंदर्य साधना में अत्यधिक नियम -शर्त का बंधन तो नहीं रहता पर यहाँ सबसे अधिक आवश्यकता तकनिकी जानकारी की होती है |सौंदर्य साधना जैसे अप्सरा /परी ,यक्षिणी आदि अधिकांशतः शुभ मुहूर्त के ऊपर आधारित होती हैं और इस तरह की साधनाओं को संपन्न करने के लिए अधिकाँश साधक लालायित भी रहते हैं ,कारण की यह भौतिक उपलब्धियां देती हैं ,सुख-सुविधा बढ़ा देती हैं |भौतिक जीवन में पूर्णता लाती हैं |पर इनका दुरुपयोग भी होता है ,जिसका अंत बहुत बुरा होता है और भारी हानि की संभावना भी बनती है |सौंदर्य साधना का एक प्रकार शाहतूर परी की साधना भी है |यह अप्सरा साधना ही है जिसे मुस्लिम धर्म में परी कहा जाता है |

शाहतूर की परि जब प्रकट होती है तो ऐसा लगता है ,जैसे किसी शीतल मंद एवं सुगन्धित हवा के झोंके को किसी नारी का आकार दे दिया गया हो |इस परी का आकार बहुत ही मनोरम है |इसके पास से आती हिना की महक से ही साधक मदहोश होने लगता है |उसका गोरा बदन ,झीनी कंचुकी में बंधा उन्मुक्त यौवन मष्तिष्क को विचलित करता है |यहाँ संयम और शुद्धता की अत्यंत आवश्यकता होती है ,तभी साधक इस साधना में सफलता प्राप्त कर सकता है |अन्यथा साधक साधना में सफलता के इतने निकट पहुच जाने के बावजूद भी ,एक छलावे की तरह धोखा खा जाता है और उसकी सारी मेहनत मिटटी में मिल जाती है |इस साधना में परी साधक की साधना को भंग करने की कोसिस करती है ,क्योकि कोई भी शक्ति कभी किसी के नियंत्रण में नहीं आना चाहती |अतः विभिन्न प्रलोभनों और मोहक सौंदर्य आदि से यह विचलित करने का पूरा प्रयास करती है |विचलित हुए तो पतन हो जाता है |अतः मन को नियंत्रित रखना और संयमित रहना आवश्यक है |जब यह प्रकट हो तो मंत्र जप पूरा होते ही इसके गले में गुलाब के फूलों की माला डाल दें |माला स्वीकार होने पर यह साधक से प्रसन्न होकर पूछती है ,तब अपना मनोरथ बताकर और वचनबद्ध करके हमेशा के लिए अपने वश में कर सकते हैं |इससे विभिन्न काम कराये जा सकते हैं |भौतिक सुख-सुविधाएँ जुताई जा सकती हैं |उच्च साधना में सहायता ली जा सकती है |इस साधना में भयानक स्थिति भी आ सकती है ,क्योकि आसपास की नकारात्मक शक्तियां भी साधना से प्रभावित होती हैं |वह विघ्न-बाधा-उत्पात कर सकती हैं या साधना से आकर्षित हो प्रकट हो सकती हैं |इस समय किसी उच्च साधक द्वारा निर्मित यन्त्र-ताबीज आपकी रक्षा भी करता है ,विघ्न-बाधा भी हटता है और साधना में सफलता भी दिलाता है |यह साधना इस्लामी साधना है अतः इसे उसी रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है |करने को कोई भी कर सकता है |

साधना विधि :--
साधना शुक्रवार को रात्री ११ बजे प्रारम्भ करें |साधक सर्वप्रथम शुद्ध कूप या नल जल से स्नान कर लुंगी धारण करें ,सर पर जालीदार टोपी धारण करें |कमरा एकांत में और बिलकुल शांत हो |आसन हरे रंग का हो |आसन पर बैठने की मुद्रा नमाज पढने वाली हो |पूरे शरीर में हिना इत्र लगाएं |सामने ताम्बे की पट्टी पर अंकित यंत्र को स्थापित करें |[यन्त्र पहले से बनवाकर रखें ]|यन्त्र पर हिना लगाएं |लोबान की धूनी देकर निम्न मंत्र का निश्चित संख्या में जप करें | यह साधना मात्र नौ दिनों की है |९ दिन में शाह्तूर की परी प्रकट होती है |
मंत्र :-- ॐ नमो-----------