रोगों पर वार।
दोस्तों बहुत सारे लोग रोगों से परेशान है
दवाये काम नहीं करती है दवा पर भारी खर्च हो रहे है जानते है क्यों, क्योकि जब ग्रह रोग कारक हो कर दशा
अन्तर दशा और गोचर में आते है तो जब तक ग्रह का उपचार नहीं करेंगे तब तक रोग सताता
रहेगा।इस लिए हम इस बार आपको अवगत करा रहे है कि कौन ग्रह से कौन से रोग होते है
और क्या उपाय और दान करे कि ग्रह शांत हो और आपको लाभ मिले।एक बात ध्यान रखे रोगों
के मामले में वृक्ष के जड़ धारण करना और ग्रह से सम्बंधित वस्तुए दान करने से
आशातीत लाभ होता है।
एक बार आपको न्यूनतम खर्च द्वारा ग्रहो की शांति का उपाय बता रहा हूँ अजमाए
जरूर।
अब जानिए कौन सा ग्रह किस रोग का कारक है और
क्या उपाय करना है।दान में जो वस्तु आपको आसानी से उपलब्ध हो जाय वो किसी गरीब और
जरूरतमंद को दान दे।जड़ को लेकर ताबीज में भर कर गले में धारण करे।
सूर्य- पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग
प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी
से सम्बन्धी रोग, नेत्र
रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि।
जड़-कृत्तिका नक्षत्र वाले दिन बेल का एक जड़
प्रात:काल तोडक़र,शिवालय
में शिवजी को समर्पित करें और ऊँ भास्कराय ह्रीं मंत्र का जाप करने के पश्चात उसी
जड़ को लेकर गुलाबी धागे से धारण करें।
दान की वस्तु-माणिक्य, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चंदन, गुड़, केसर अथवा तांबा।
चन्द्रमा -ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख
सम्बन्धी रोग, नासिका
संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि।
जड़-रोहिणी नक्षत्र वाले दिन खिरनी की जड़, शुद्ध करके शिवजी को समर्पित करें और
ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स:चंद्रमसे नम: मंत्र का जाप कर के सफेद धागे में धारण करें।
दान की वस्तु-बांस की टोकरी, चावल, श्वेत वस्त्र, श्वेत
पुष्प, घी से भरा पात्र, चांदी, मिश्री, दूध, दही।
मंगल- गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग,
ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि।
जड़-मृगशिरा नक्षत्र वाले दिन अनंतमूल की जड़
शुद्धि करण के पश्चात हनुमान जी की पूजा कर के ऊँ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जाप कर
के नारंगी धागे से धारण करें।
बुध-छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर
आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ
रोग, स्नायु रोग, इत्यादि।अश्लेषा नक्षत्र वाले दिन
विधारा की जड़ गणेश भगवान को को समर्पित करने के पश्चात ऊँ बुं बुधाय नम: मंत्र का
जाप कर के हरे रंग के धागे में धारण करें।
दान-हरे मूंग, हरा वस्त्र, हरा
फल, पन्ना, केसर, कस्तूरी, कपूर, घी, मिश्री, धार्मिक
पुस्तकें।
गुरु- लीवर, किडनी, तिल्ली
आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण
सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी,
जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत
पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि।
जड़-शुद्ध और ताजी हल्दी की गाँठ पीले धागे में, पुनवर्सु नक्षत्र वाले दिन कृष्ण भगवान
या बृहस्पति देव जी की पूजा कर के ऊँ बृं बृहस्पतये नम: मंत्र का जप करके धारण
करें।
दान-घी, शहद, हल्दी, पीत वस्त्र, शास्त्र पुस्तक, पुखराज, लवण, कन्याओं
को भोजन।
शुक्र- दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले
के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित
रोग, मादक द्रव्यों
के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया
रोग इत्यादि।
जड़-आप सरपोंखा की जड़, भरणी नक्षत्र वाले दिन सफेद धागे से
सायंकाल के समय लक्ष्मी जी का पूजन कर ऊँ शुं शुक्राय नम: मंत्र का जाप कर के धारण
करें।
दान-सफेद वस्त्र, श्वेत स्फटिक, चावल, सुगंधित वस्तु, कपूर, अथवा पुष्प, घी-
शक्कर- मिश्री-दही।
शनि - शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों
या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों
अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश,मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग,लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार
इत्यादि।
जड़-अनुराधा नक्षत्र वाले दिन बिच्छू या बिच्छौल
की घांस को नीले धागे से काली जी की पूजा के पश्चात ऊँ शं शनैश्चराय नम: मंत्र का
जाप कर के धारण करें।
राहु -मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई
से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि।
जड़-आद्रा नक्षत्र वाले दिन चन्दन की लकड़ी का
टुकड़ा शिव जी का अभिषेक कर के भूरे धागे में ऊँ रां राहुए नम: मंत्र का जाप कर के
धारण करें।
दान-गेहूं, उड़द, काला
घोड़ा, खडग़, कंबल, तिल, लौह, सप्त धान्य, अभ्रक।
केतु -वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति
की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक
रोग या परेशानी, कुत्ते
का काटना इत्यादि। जड़-अश्विनी नक्षत्र वाले दिन गणेश जी का पूजन करने के पश्चात
शुद्ध की हुई असगन्ध या अश्वगन्धा की जड़, ऊँ कें केतवे नम: मंत्र का जाप करने के पश्चात, नारंगी धागे से धारण करें।
दान-तिल, कंबल, काला
वस्त्र तथा पुष्प, सभी
तेल, उड़द, काली मिर्च, सप्तधान्य।
और चलते चलते यदि आप घोर
संकट में है और कोई रास्ता नहीं मिल रहा है तो चौमुखी दीपक तेल का बनाये और हनुमान
जी के सामने रखे और 11 बजरंग बाण का पाठ किसी भी मंगलवार से प्रारम्भ करे और
तब तक करे जब तक संकट दूर न हो जाय।
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