मृत्यु के
पूर्वाभास से जुड़े निम्नलिखित संकेत व्यक्ति को अपना अंत समय नजदीक होने का आभास
करवाते हैं।
जब किसी नशा, रोग, अत्यधिक
चिंता, अत्यधिक कार्य
से भीतर के सभी स्नायु, नाड़ियां
आदि कमजोर हो जाते हैं। यह उसी तरह है कि हम किसी इमारत के सबसे नीचे की मंजिल को
खोद दें। ऐसे व्यक्ति की आंखों के सामने बार-बार अंधेरा छा जाता है। उठते समय, बैठते समय या सफर करते समय अचानक आंखों
के सामने अंधेरा छा जाता है। यदि यह लक्षण दो-तीन सप्ताह तक बना रहे तो तुरंत ही
योग, आयुर्वेद और
ध्यान की शरण में जाना चाहिए या किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लें।
* माना
यह भी जाता है कि इस अंधेरा छा जाने वाले रोग के कारण उस चांद में भी दरार जैसा
नजर आता है। यह उस लगता है कि चांद दो टुकड़ों में है, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता।
* आंखों
की कमजोरी से संबंधित ही एक लक्षण यह भी है कि व्यक्ति को दर्पण में अपना चेहरा न
दिखकर किसी और का चेहरा होने का भ्रम होने लगता है।
* जब
कोई व्यक्ति चंद्र, सूर्य
या आग से उत्पन्न होने वाली रोशनी को भी नहीं देख पाता है तो ऐसा इंसान भी कुछ माह
और जीवित रहेगा, ऐसी
संभावनाएं रहती हैं।
* जब
कोई व्यक्ति पानी में, तेल
में, दर्पण में अपनी
परछाई न देख पाए या परछाई विकृत दिखाई देने लगे तो ऐसा इंसान मात्र छह माह का जीवन
और जीता है।
* जिन
लोगों की मृत्यु एक माह शेष रहती है वे अपनी छाया को भी स्वयं से अलग देखने लगते
हैं। कुछ लोगों को तो अपनी छाया का सिर भी दिखाई नहीं देता है।
* आयुर्वेदानुसार
मृत्यु से पहले मानव शरीर से अजीब-सी गंध आने लगती है। इसे मृत्यु गंध कहा जाता
है। यह किसी रोगादि, हृदयाघात, मस्तिष्काघात आदि के कारण उत्पन्न होती
है। यह गंध किसी मुर्दे की गंध की तरह ही होती है। बहुत समय तक किसी अंदरुनी रोग
को टालते रहने का परिणाम यह होता है कि भीतर से शरीर लगभग मर चुका होता है।
इटली के वैज्ञानिकों के अनुसार मरते वक्त मानव
शरीर से एक खास किस्म की बू निकलती है। इसे मौत की बू कहा जा सकता है। मगर मौत की
इस बू का अहसास दूसरे लोगों को नहीं होता। इसे सूंघने वाली खास किस्म की कृत्रिम
नाक यानी उपकरण को विकसित करने के लिए इटली के वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। शरीर
विज्ञानी गियोबन्नी क्रिस्टली का कहना है कि मौत की गंध का अस्तित्व तो निश्चित
रूप से है। जब कोई व्यक्ति मरता है,
तो उसका भावनात्मक शरीर कुछ क्षणों तक जीवित रहता है, जो खास तरह की गंध को उत्सर्जित करता
है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ जानवर, खासकर कुत्ते और बिल्लियां अपनी प्रबल घ्राण शक्ति के बल पर मौत की
इस गंध को सूंघने में समर्थ होते हैं, लेकिन सामान्य मनुष्यों को इसका पता नहीं चल पाता। मृत्यु गंध का
आभास होने पर ये जानवर अलग तरह की आवाज निकालते हैं। भारत यूं ही नहीं कुत्ते या
बिल्ली का रोने को मौत से जोड़ता है।
श्वास लेने और छोड़ने की गति भी तय करती है
मनुष्य का जीवन। प्राणायाम करते रहने से सभी तरह के रोगों से बचा जा सकता है।
*जिस
व्यक्ति का श्वास अत्यंत लघु चल रहा हो तथा उसे कैसे भी शांति न मिल रही हो तो
उसका बचना मुश्किल है। नासिका के स्वर अव्यवस्थित हो जाने का लक्षण अमूमन मृत्यु
के 2-3 दिनों पूर्व
प्रकट होता है।
*कहते
हैं कि जो व्यक्ति की सिर्फ दाहिनी नासिका से ही एक दिन और रात निरंतर श्वास ले
रहा है (सर्दी-जुकाम को छोड़कर) तो यह किसी गंभीर रोग के घर करने की सूचना है। यदि
इस पर वह ध्यान नहीं देता है तो तीन वर्ष में उसकी मौत तय है।
*जिसकी
दक्षिण श्वास लगातार दो-तीन दिन चलती रहे तो ऐसे व्यक्ति को संसार में एक वर्ष का
मेहमान मानना चाहिए। यदि दोनों नासिका छिद्र 10 दिन तक निरंतर ऊर्ध्व श्वास के साथ चलते रहें तो मनुष्य तीन दिन तक
ही जीवित रहता है। यदि श्वास वायु नासिका के दोनों छिद्रों को छोड़कर मुख से चलने
लगे तो दो दिन के पहले ही उसकी मृत्यु जानना चाहिए।
*जिसके
मल, मूत्र और वीर्य
एवं छींक एकसाथ ही गिरते हैं उसकी आयु केवल एक वर्ष ही शेष है, ऐसा समझना चाहिए।
*जिसके
वीर्य, नख और नेत्रों
का कोना यह सब यदि नीले या काले रंग के हो जाएं तो मनुष्य का जीवन छह से एक वर्ष
के बीच समाप्त हो जाता है।
*जब
किसी व्यक्ति का शरीर अचानक पीला या सफेद पड़ जाए और ऊपर से कुछ लाल दिखाई देने
लगे तो समझ लेना चाहिए कि उस इंसान की मृत्यु छह माह में होने वाली है।
*जो
व्यक्ति अकस्मात ही नीले-पीले आदि रंगों को तथा कड़वे-खट्टे आदि रसों को विपरीत
रूप में देखने-चखने का अनुभव करने लगता हैं वह छह माह में ही मौत के मुंह में समा
जाएगा।
* जब
किसी व्यक्ति का मुंह, जीभ, कान, आंखें, नाक
स्तब्ध हो जाएं यानी पथरा जाए तो ऐसे माना जाता है कि ऐसे इंसान की मौत का समय भी
लगभग छह माह बाद आने वाला है।
* जिस
इंसान की जीभ अचानक से फूल जाए,
दांतों से मवाद निकलने लगे और सेहत बहुत ज्यादा खराब होने लगे तो मान
लीजिए कि उस व्यक्ति का जीवन मात्र छह माह शेष है।
* यदि
रोगी के उदर पर सांवली, तांबे
के रंग की, लाल, नीली, हल्दी के तरह की रेखाएं उभर जाएं तो रोगी का जीवन खतरे में है, ऐसा बताया गया है।
* यदि
व्यक्ति अपने केश एवं रोम को पकड़कर खींचे और वे उखड़ जाएं तथा उसे वेदना न हो तो
रोगी की आयु पूर्ण हो गई है, ऐसा
मानना चाहिए।
* हाथ
से कान बंद करने पर किसी भी प्रकार की आवाज सुनाई न दे और अचानक ही मोटा शरीर
दुबला और दुबला शरीर मोटा हो जाए तो एक माह में मृत्यु हो जाती है। सामान्य तौर पर
व्यक्ति जब आप अपने कान पर हाथ रखते हैं तो उन्हें कुछ आवाज सुनाई देती है लेकिन
जिस व्यक्ति का अंत समय निकट होता है उसे किसी भी प्रकार की आवाजें सुनाई देनी बंद
हो जाती हैं।
मौत के ठीक तीन-चार दिन पहले से ही व्यक्ति को
हर समय ऐसा लगता है कि उसके आसपास कोई है। उसे अपने साथ किसी साए के रहने का आभास
होता रहता है। यह भी हो सकता है कि यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को अपने मृत
पूर्वजों के साथ रहने का अहसास होता हो यह अहसास भी मौत की सूचना हैँ
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