रोम रोम में देव रमे हों ऐसी पवित्र गौ माता है
चार धाम का पुण्य भी गौ सेवा से मिल जाता है इस
हिन्दोस्तां के
माटी की महिमा अपरमपार है
गौ गंगा गीता से निर्मित इसका श्यामल सार है
परम पूज्य व पाप हारिणी गौ गंगा और गीता हैं
तरण तारिणी मोक्ष
दायिनी तीनो परम पुनीता हैं
रोम रोम में देव रमे हों ऐसी पवित्र गौ माता है
चार धाम का पुण्य भी गौ सेवा से मिल जाता है
जो जन इसकी सेवा करते भव सागर तर जाते हैं
वेद पुराण उपनिषद
भी इसकी महिमा बतलाते हैं
सकल पदारथ दूध
दही घी औषधि गुणकारक
स्वस्थ प्रदायक मंगलकारक समूल रोग निवारक हैं
भगवान कृष्ण ग्वालों संग खुद भी गायें चराते थे
बछड़ों के संग क्रीड़ा करते दूध
दही घी खाते थे
प्रेम पास में बंधी गायें कान्हा को देख
रंभातीं थीं
मोहक बंसी ध्वनि सुनकर आप लौट आ
जाती थीं
गौ सेवा का पुण्य प्रताप ऋषि मुनियों भी गाया
है
गौ माता के आगे खुद भगवन ने शीश नवाया है
आया है
त्राहि त्राहि कर मात पुकारे कैसा कलियुग आया
है
यह अपने ही पुत्रों के आगे दर दर आज
भटकती है
पेट पालने को गौ माता त्रण को आज तरसती है
कुछ अधम नीच निशाचर हैं हमको आज लटा रहे
हैं सठ कामी पापी पिशाच गैया को आज
कटा रहे
घनघोर पिशाच प्रवृत्ति अब यहाँ दिखाई जाती हैं
झुण्ड झुण्ड में गायें आज आरों से कटाई जाती
हैं
गर ऐसी पिशाच प्रव्रत्ति पर अंकुश न लगाया
जायेगा
दूर नही किंचित वह दिन जब यहाँ विनाश आ जायेगा
अपने ही पुत्रों के आगे गर कोई माता ऐसे
तड़पेगी
तुम्ही बताओ अंतर्मन से सन्तान कैसे
सुखी रहेगी
अब गौ माता की रक्षा का प्रण हम सबको करना होगा
धर्म धर्म और धर्म की खातिर हम
सबको लड़ना होगा
इस गोवंश की रक्षा खातिर कुछ ऐसा आज प्रबंध हो
होय वधिक को फांसी जब फिर फौरन गोवध बंद हो
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