क्या
आपका मन किसी काम में नहीं लगता? क्या बार- बार किसी काम को करने से
हतोत्साहित हो जाते हैं? या फिर व्यापार को लेकर आप हमेशा
असंतुष्ठ रहते हैं?
तो
इन समस्याओं के छुटकारा पाने के लिए बुधवार का व्रत कर सकते हैं। यह व्रत
स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही मंगलदायक होता है। इस व्रत को करने से आपकी बुद्धि
में काफी इजाफा हो सकता है।
करें
ये उपाय
- सर्वप्रथम
नित्यकर्मों से मुक्त होकर बुध देवता के मंत्र से बुध त्वं बुद्धिजनको बोधदः
सर्वदा नृणाम्। तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नमः॥ उनका ध्यान करें।
- घर के इशान
कोण में भगवान शिव या बुध का चित्र या मूर्ति कांस्य के बर्तन में स्थापित
करना चाहिए। उनपर बेलपत्र, अक्षत, धूप और दीप जलाकर विधिवत
पूजा करनी चाहिए।
- दिन
हरे-पीले रंग के शेड वाले कपड़े पहनने चाहिए। पन्ना रत्न धारण करना शुभ होता
है। व्रत में हरी वस्तुओं का इस्तेमाल करना चाहिए। मूंग का हलवा, हरे फल, छोटी इलाइची का विशेष महत्व है।
- दिन के
व्रत की पूर्णाहुति सूर्यास्त के बाद एक बार फिर से बुध को धूप, दीप और गुड़,
चावल एवं दही के भोग लगाने से होती है।उसके बाद प्रसाद वितरण
कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए।
- व्रत करने
वाले को दिन में एक बार ही नमक रहित भोजन करना चाहिए।
बुधवार
का व्रत को विशाखा नक्षत्र में बुधवार के दिन से आरंभ करना चाहिए, जिसे 17
या 21 सप्ताह तक करना चाहिए। इस योग के नहीं
मिलने की स्थिति में इस व्रत को किसी भी माह में शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से
किया जा सकता है। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान देना चाहिए।
बुधवार
व्रत की कथा
कहते
हैं समतापुर नगर में मधुसूदन नामक एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत धनवान था। मधुसूदन
का विवाह बलरामपुर नगर की सुंदरलड़की संगीता से हुआ था। एक बार मधुसूदन अपनी पत्नी
को लेने बुधवार के दिन बलरामपुर गया।
मधुसूदन
ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा। माता-पिता बोले- 'बेटा,
आज बुधवार है। बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं
करते।' लेकिन मधुसूदन नहीं माना। उसने ऐसी शुभ-अशुभ की बातों
को न मानने की बात कही।
दोनों
ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की। दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक
पहिया टूट गया। वहाँ से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की। रास्ते में संगीता को
प्यास लगी। मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया।
थोड़ी
देर बाद जब मधुसूदन कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा क्योंकि
उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था। संगीता भी
मधुसूदन को देखकर हैरान रह गई। वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई।
मधुसूदन
ने उस व्यक्ति से पूछा 'तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?' मधुसूदन
की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया
हूँ। लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?'
मधुसूदन
ने कहा 'तुम जरूर कोई चोर या ठग हो। यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं इसे पेड़ के
नीचे बैठाकर जल लेने गया था।' इस पर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो।
संगीता
को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था। मैंने तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी
दिया है। अब तुम चुपचाप यहाँ से चलते बनो। नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें
पकड़वा दूंगा।'
दोनों
एक-दूसरे से लड़ने लगे। उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहाँ एकत्र हो गए। नगर के
कुछ सिपाही भी वहाँ आ गए। सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए। सारी
कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया। संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक
पति को नहीं पहचान पा रही थी।
राजा
ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा। राजा के फैसले पर असली मधुसूदन
भयभीत हो उठा। तभी आकाशवाणी हुई- 'मधुसूदन! तूने संगीता के
माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया। यह सब
भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है।'
मधुसूदन
ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि 'हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर
दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई। भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं
करूंगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूंगा'
मधुसूदन
के प्रार्थना करने से भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया। तभी दूसरा व्यक्ति राजा
के सामने से गायब हो गया। राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान हो गए। भगवान
बुधदेव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा
किया।
कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें
बैलगाड़ी मिल गई। बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था। दोनों उसमें बैठकर
समतापुर की ओर चल दिए। मधुसूदन और उसकी पत्नी संगीता दोनों बुधवार को व्रत करते
हुए आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे। इस तरह भगवान बुधदेव की कृपा से उनके यहां
खुशियां बरसने लगीं।
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