राम मन्त्र का अर्थ
र', 'अ' और 'म', इन तीनों अक्षरों के योग से 'राम' मंत्र बनता है। यही राम
रसायन है। 'र' अग्निवाचक है। 'अ' बीज मंत्र है। 'म' का अर्थ है ज्ञान। यह मंत्र पापों को जलाता है, किंतु पुण्य को सुरक्षित रखता है और ज्ञान प्रदान करता है। हम चाहते हैं कि पुण्य सुरक्षित रहें, सिर्फ पापों का नाश हो। 'अ' मंत्र जोड़ देने से अग्नि केवल पाप कर्मो का दहन कर पाती है और हमारे शुभ और सात्विक कर्मो को सुरक्षित करती है। 'म' का उच्चारण करने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। हमें अपने स्वरूप का भान हो जाता है।
इसलिए हम र, अ और म को जोड़कर एक मंत्र बना लेते हैं-राम। 'म' अभीष्ट होने पर भी यदि हम 'र' और 'अ' का उच्चारण नहीं करेंगे तो अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होगी।
राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है- नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।। अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं। स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है- रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:। गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।। इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्। स्कंदपुराण/नागरखंड अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश
हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम
का कीर्तन करता है, वह यहां कृतकार्य होकर जाता है और अंत में भगवान
विष्णु का पार्षद बनता है।
राम रामेति रामेति रमे रामे रामो रमे |
सहस्त्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने || विष्णु जी के सहस्त्र नामों को लेने का समय अगर आज के व्यस्त समय में
ना मिले तो एक राम नाम ही सहस्त्र विष्णु नाम के बराबर है .कलियुग
का एक अच्छा पक्ष है की हज़ारों यज्ञों का पुण्य सिर्फ नाम संकीर्तन से
मिल जाता है
र', 'अ' और 'म', इन तीनों अक्षरों के योग से 'राम' मंत्र बनता है। यही राम
रसायन है। 'र' अग्निवाचक है। 'अ' बीज मंत्र है। 'म' का अर्थ है ज्ञान। यह मंत्र पापों को जलाता है, किंतु पुण्य को सुरक्षित रखता है और ज्ञान प्रदान करता है। हम चाहते हैं कि पुण्य सुरक्षित रहें, सिर्फ पापों का नाश हो। 'अ' मंत्र जोड़ देने से अग्नि केवल पाप कर्मो का दहन कर पाती है और हमारे शुभ और सात्विक कर्मो को सुरक्षित करती है। 'म' का उच्चारण करने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। हमें अपने स्वरूप का भान हो जाता है।
इसलिए हम र, अ और म को जोड़कर एक मंत्र बना लेते हैं-राम। 'म' अभीष्ट होने पर भी यदि हम 'र' और 'अ' का उच्चारण नहीं करेंगे तो अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होगी।
राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है- नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।। अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं। स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है- रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:। गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।। इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्। स्कंदपुराण/नागरखंड अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश
हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम
का कीर्तन करता है, वह यहां कृतकार्य होकर जाता है और अंत में भगवान
विष्णु का पार्षद बनता है।
राम रामेति रामेति रमे रामे रामो रमे |
सहस्त्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने || विष्णु जी के सहस्त्र नामों को लेने का समय अगर आज के व्यस्त समय में
ना मिले तो एक राम नाम ही सहस्त्र विष्णु नाम के बराबर है .कलियुग
का एक अच्छा पक्ष है की हज़ारों यज्ञों का पुण्य सिर्फ नाम संकीर्तन से
मिल जाता है
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