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स्वामी भाग्य में, भाग्येश व्यय में और कुंडली में विदेश यात्रा योग का फल:- कुण्डली में विदेश यात्रा के योग होने पर
भी जरूरी नहीं कि आपको विदेश
जाने का अवसर मिलेगा. इस विषय में ज्योतिषीयों का मत है कि योग अगर
कमज़ोर हैं आवश्यक होता है। व्यय स्थान में यदि चर राशि हो तो विदेश में थोड़े समय का ही प्रवास होता है। व्यय स्थान में अगर स्थिर राशि हो तो कुछ सालों तक विदेश में रहा जा सकता है। यदि द्विस्वभाव राशि हो तो परदेस आना-जाना होता रहता है। इसके साथ- साथ व्यय स्थान से संबंधित कौन-से ग्रह और राशि हैं, इनका विचार करने पर किस देश में जाने का योग बनता है, यह भी जाना जा सकता है।
सर्वसाधारण तौर पर यदि शुक्र का संबंध हो तो अमेरिका जैसे नई विचार प्रणाली वाले देश को जाने का योग बनता है। उसी तरह अगर शनि का संबंध हो तो इंग्लैंड जैसे पुराने विचारों वाले देश को जाना संभव होता है। अगर राहु-केतु के साथ संबंध हो तो अरब देश की ओर संकेत किया जा सकता है। तृतीय स्थान से नजदीक का प्रवास, नवम स्थान से दूर का प्रवास और व्यय स्थान की सहायता से वहाँ निवास कितने समय के लिए होगा यह जाना जा सकता है।
कुंडली के तृतीय, सप्तम और नवम, द्वादश स्थानों से प्रवास के बारे में
जानकारी मिलती है। तृतीय स्थान से आसपास के प्रवास, सप्तम स्थान से
जीवन साथी के साथ होने वाले प्रवास, नवम से दूरदराज की यात्रा व द्वादश से विदेश यात्रा का योग देखा जाता है।कुंडली के तृतीय, सप्तम और नवम, द्वादश स्थानों से प्रवास के बारे में जानकारी मिलती है। तृतीय स्थान से आसपास के प्रवास, सप्तम स्थान से जीवन साथी के साथ होने वाले प्रवास, नवम से दूरदराज की यात्रा व द्वादश से विदेश यात्रा का योग देखा जाता है।यदि ये स्थान व इनके अधिपति बलवान हो तो जीवन में यात्रा योग आते ही रहते हैं। पंचम-नवम स्थानों के अधिपति स्थान परिवर्तन कर रहे हो तो उच्च शिक्षा हेतु यात्रा होती है। व्यय में शनि, राहु, नैपच्यून हो तो विदेश यात्रा अवश्य होती है। प्रवास स्थान में पापग्रह हो तो यात्रा से नुकसान हो सकता है। यदि लग्नेश-अष्टमेश का कुयोग हो तो यात्रा में दुर्घटना होने के योग बनते हैं। नवमेश पंचम में हो तो बच्चों के द्वारा यात्रा कराए जाने के योग होते हैं। प्रवास स्थान गुरु के प्रभाव में हो तो तीर्थयात्रा के योग बनते हैं। नवम केतु भी तीर्थ यात्रा कराता है। वायु तत्व राशि के व्यक्ति हवाई यात्रा के प्रति आकर्षित होते हैं। जल तत्व के व्यक्तियों को जलयात्रा के अवसर मिलते हैं। वहीं पृथ्वी व अग्नि तत्व के व्यक्ति सड़क यात्रा करते हैं।
1. नवम स्थान का स्वामी चर राशि में तथा चर नवमांश में बलवान
होना आवश्यक है।
2. नवम तथा व्यय स्थान में अन्योन्य योग होता है।
3. तृतीय स्थान, भाग्य स्थान या व्यय स्थान के ग्रह की दशा चल रही हो।
4. तृतीय स्थान, भाग्य स्थान और व्यय स्थान का स्वामी चाहे कोई भी ग्रह हो वह यदि उपरोक्त स्थानों के स्वामियों के नक्षत्र में हो तो विदेश यात्रा होती है।
व्ययेश भाग्य
में हो, संक्षेप में कहना हो तो तृतियेश, भाग्येश और व्ययेश इनका एक-दूजे के साथ संबंध हो तो विदेश यात्रा निश्चित होती है।तो विदेश में आजीविका की संभावना कम रहती है इस स्थिति में
हो सकता है कि व्यक्ति अपने जन्म स्थान से दूर जाकर अपने ही देश में
नौकरी अथवा कोई व्यवसाय करे.विदेश यात्रा योग के लिए सबसे
महत्वपूर्ण स्थान होता है व्यय स्थान। विदेश यात्रा का निश्चित योग कब आएगा,
विदेश में कितने समय के लिए वास्तव्य होगा, यह जानने के लिए व्यय स्थान स्थित राशि का विचार करना
जाने का अवसर मिलेगा. इस विषय में ज्योतिषीयों का मत है कि योग अगर
कमज़ोर हैं आवश्यक होता है। व्यय स्थान में यदि चर राशि हो तो विदेश में थोड़े समय का ही प्रवास होता है। व्यय स्थान में अगर स्थिर राशि हो तो कुछ सालों तक विदेश में रहा जा सकता है। यदि द्विस्वभाव राशि हो तो परदेस आना-जाना होता रहता है। इसके साथ- साथ व्यय स्थान से संबंधित कौन-से ग्रह और राशि हैं, इनका विचार करने पर किस देश में जाने का योग बनता है, यह भी जाना जा सकता है।
सर्वसाधारण तौर पर यदि शुक्र का संबंध हो तो अमेरिका जैसे नई विचार प्रणाली वाले देश को जाने का योग बनता है। उसी तरह अगर शनि का संबंध हो तो इंग्लैंड जैसे पुराने विचारों वाले देश को जाना संभव होता है। अगर राहु-केतु के साथ संबंध हो तो अरब देश की ओर संकेत किया जा सकता है। तृतीय स्थान से नजदीक का प्रवास, नवम स्थान से दूर का प्रवास और व्यय स्थान की सहायता से वहाँ निवास कितने समय के लिए होगा यह जाना जा सकता है।
कुंडली के तृतीय, सप्तम और नवम, द्वादश स्थानों से प्रवास के बारे में
जानकारी मिलती है। तृतीय स्थान से आसपास के प्रवास, सप्तम स्थान से
जीवन साथी के साथ होने वाले प्रवास, नवम से दूरदराज की यात्रा व द्वादश से विदेश यात्रा का योग देखा जाता है।कुंडली के तृतीय, सप्तम और नवम, द्वादश स्थानों से प्रवास के बारे में जानकारी मिलती है। तृतीय स्थान से आसपास के प्रवास, सप्तम स्थान से जीवन साथी के साथ होने वाले प्रवास, नवम से दूरदराज की यात्रा व द्वादश से विदेश यात्रा का योग देखा जाता है।यदि ये स्थान व इनके अधिपति बलवान हो तो जीवन में यात्रा योग आते ही रहते हैं। पंचम-नवम स्थानों के अधिपति स्थान परिवर्तन कर रहे हो तो उच्च शिक्षा हेतु यात्रा होती है। व्यय में शनि, राहु, नैपच्यून हो तो विदेश यात्रा अवश्य होती है। प्रवास स्थान में पापग्रह हो तो यात्रा से नुकसान हो सकता है। यदि लग्नेश-अष्टमेश का कुयोग हो तो यात्रा में दुर्घटना होने के योग बनते हैं। नवमेश पंचम में हो तो बच्चों के द्वारा यात्रा कराए जाने के योग होते हैं। प्रवास स्थान गुरु के प्रभाव में हो तो तीर्थयात्रा के योग बनते हैं। नवम केतु भी तीर्थ यात्रा कराता है। वायु तत्व राशि के व्यक्ति हवाई यात्रा के प्रति आकर्षित होते हैं। जल तत्व के व्यक्तियों को जलयात्रा के अवसर मिलते हैं। वहीं पृथ्वी व अग्नि तत्व के व्यक्ति सड़क यात्रा करते हैं।
1. नवम स्थान का स्वामी चर राशि में तथा चर नवमांश में बलवान
होना आवश्यक है।
2. नवम तथा व्यय स्थान में अन्योन्य योग होता है।
3. तृतीय स्थान, भाग्य स्थान या व्यय स्थान के ग्रह की दशा चल रही हो।
4. तृतीय स्थान, भाग्य स्थान और व्यय स्थान का स्वामी चाहे कोई भी ग्रह हो वह यदि उपरोक्त स्थानों के स्वामियों के नक्षत्र में हो तो विदेश यात्रा होती है।
व्ययेश भाग्य
में हो, संक्षेप में कहना हो तो तृतियेश, भाग्येश और व्ययेश इनका एक-दूजे के साथ संबंध हो तो विदेश यात्रा निश्चित होती है।तो विदेश में आजीविका की संभावना कम रहती है इस स्थिति में
हो सकता है कि व्यक्ति अपने जन्म स्थान से दूर जाकर अपने ही देश में
नौकरी अथवा कोई व्यवसाय करे.विदेश यात्रा योग के लिए सबसे
महत्वपूर्ण स्थान होता है व्यय स्थान। विदेश यात्रा का निश्चित योग कब आएगा,
विदेश में कितने समय के लिए वास्तव्य होगा, यह जानने के लिए व्यय स्थान स्थित राशि का विचार करना
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