रविवार, 29 अक्टूबर 2017

सिंदूर_का_महत्व



//#स्त्री--
नाम सुनते ही हृदय में आदरभाव आ जाये ऐसी महिमा है इस शब्द की लेकिन शारीरिक रचना भिन्न होने से कोई स्त्री कदापि नहीं हो सकती जरूरी है उसके साथ स्त्रीत्व होना समय समय पर लोग सनातन धर्म को कटघरे में खड़ा करते रहते हैं नारी सशक्तिरण की दुहाई देकर जिनमें मुख्यतः वामी लोग ही होते हैं और उनको किस तरह की नारी सशक्तिकरण चाहिए ये आप नीचे की एक फोटो देखकर समझ सकते हैं मैं आपको बस सनातनी होने का संस्कार याद दिलाऊंगा और सनातन में स्त्री क्या है ये मनु के शब्दों में समझाऊंगा क्योंकि वर्तमान में सबसे अधिक मनु को गलत रूप से प्रस्तुत किया है कुछ धूर्त लोगों ने अपने उद्देश्यपूर्ति के लिए तो आओ देखते हैं सनातन में स्त्री का स्थान मनु के शब्दों में --
महर्षि मनु विश्व के वे प्रथम महापुरुष हैं जिन्होंने नारी के विषय में सर्वप्रथम ऐसा सर्वोच्च आदर्श उद्घोष दिया है, जो नारी की गरिमा, महिमा और समान को सर्वोच्चता प्रदान करता है। संसार के किसी पुरुष ने नारी को इतना गौरव और समान नहीं दिया। मनु का विख्यात श्लोक है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।//   यत्रैताः तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफला क्रियाः॥ (3.56)
#अर्थ-इसका सही अर्थ है- जिस समाज या परिवार में नारियों का आदर-समान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्य गुण, दिव्य सन्तान, दिव्य लाभ आदि प्राप्त होते हैं और जहां इनका आदर-समान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों की सब गृह-सबन्धी क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं।नारियों के प्रति मनु की भावना का बोध कराने वाले, स्त्रियों के लिए प्रयुक्त समानजनक एवं सुन्दर विशेषणों से बढ़कर और कोई प्रमाण नहीं हो सकते।
वे कहते हैं कि-
नारियां घर का भाग्योदय करने वाली, आदर के योग्य, घर की ज्योति, गृहशोभा, गृहलक्ष्मी, गृहसंचालिका एवं गृहस्वामिनी, घर का स्वर्ग और संसारयात्रा की आधार होती हैं-
प्रजनार्थं महाभागाः पूजार्हाः गृहदीप्तयः।     यिःश्रियश्च गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन॥ (मनु0 9.26)
अर्थात्- सन्तान उत्पत्ति करके घर का भाग्योदय करने वाली, आदर-समान के योग्य, गृहज्योति होती हैंं। तथा शोभा, लक्ष्मी और स्त्री में कोई अन्तर नहीं है, वे घर की प्रत्यक्ष शोभा हैं।
तथा स्त्री सम्मान प्रथम यानी लेडीज फस्टकी नीति के प्रशंसकों को यह पढ़कर और अधिक प्रसन्नता होनी चाहिए कि #महर्षि_मनु ने सभी को यह निर्देश दिया है कि स्त्रियों के लिए पहले रास्ता छोड़ दें। और नवविवाहिताओं, कुमारियों, रोगिणी, गर्भिणी, वृद्धा आदि स्त्रियों को पहले भोजन कराने के बाद फिर पति-पत्नी को साथ भोजन करना चाहिए।मनु के ये सब विधान स्त्रियों के प्रति समान और स्नेह के द्योतक हैं।कुछ श्लोक देखिए-
चक्रिणो दशमीस्थस्य रोगिणो भारिणः स्त्रियाः। स्नातकस्य च राज्ञश्च पंथा देयो वरस्य च॥ (2.138)
सुवासिनीः कुमारीश्च रोगिणी गर्भिणी स्त्रियः। अतिथियोऽग्र एवैतान् भोजयेदविचारयन्॥ (3.114)
अर्थ-स्त्रियों, रोगियों, भारवाहकों, नबे वर्ष से अधिक आयु वालों, गाड़ी वालों, स्नातकों, वर और राजा को पहले रास्ता देना चाहिए।’ ‘नवविवाहिताओं, अल्पवय कन्याओं, रोगी और गर्भिणी स्त्रियों को, आये हुए अतिथियों से भी पहले भोजन करायें। फिर अतिथियों और भृत्यों को भोजन कराके द्विज-दपती स्वयं भोजन करें।
समान और शिष्टाचार का परिचय ऐसे ही अवसरों पर मिलता है। मनु ने नारी के प्रति शिष्टाचार को बनाये रखा है हमको भी इसी सम्मान को बनाये रखना है और मनु के विचारों को सही दिशा में आगे बढ़ाना है।
//#सिंदूर_का_महत्व
यदि आप एक हिन्दू परिवार से हैं और एक विवाहित स्त्री भी हैं, तो सिंदूर का क्या महत्व होता है यह हमें आपको समझाने की जरूरत नहीं है। हिन्दू परिवार की महिलाओं के लिए सिंदूर किसी भी अन्य वस्तु से बढ़कर है।
#सिंदूर_और_मंगलसूत्र
सिंदूर के अलावा मंगलसूत्र भी उन्हें किसी भी अन्य मूल्यवान वस्तु से अधिक प्रिय है। महंगे से महंगे अभूषण भी उनके लिए मंगलसूत्र के आगे कम हैं। ये मान्यताएं और उनका विश्वास ही है, जो इन चीजों को इतना अधिक महत्व देता है।
#सिंंदूर_से_जुड़े_तथ्य
किंतु क्या आपने कभी सिंदूर के बारे में गहराई से जाना है? उसका इतना महत्व क्यों है और उसका प्रयोग विवाहित महिलाओं के लिए इतना आवश्यक क्यों है, इन सभी सवालों का जवाब ही सिंदूर को महत्वपूर्ण बनाता है।
#क्यों_है_जरूरी
यह तो सभी जानते हैं कि हिन्दू महिलाओं के लिए सिंदूर सुहाग की निशानी होती है। इसे वह अपने पति की खुशी से जोड़ती हैं। विवाहित होकर भी सिंदूर ना लगाना अशुभ माना जाता है
#सिन्दूर_क्या_है - #अजेष्ठ_त्रिपाठी जी का लेख--
#सिंदूर (cinabar) – #मरक्यूरिक_सल्फाइड – Mercuric Sulphite (HgS)
सिन्दूर लाल रंग एक चमकीला सा चूर्ण होता है जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपनी माँग में भरती हैं। प्राचीन हिंदू संस्कृति में भी सिन्दूर का काफ़ी महत्व था। ऐसा माना जाता है कि यह प्रथा 5000 वर्ष पूर्व से ही प्रचलित है।
सनातन संस्कृति में विवाहित महिलाओं को पति द्वारा माँग में सिन्दूर भरा जाता है सिन्दूर लगाते समय मंत्रोउच्चार मे कहा जाता है कि -
सम्राज्ञी श्वसुरे भव, सम्राज्ञी श्वश्रवाँ भव।
ननान्दरि सम्राज्ञी भव, सम्रज्ञी अधि देवृषु ।।
इहैव स्तं मा वि योष्टं विश्वसायुर्व्यश्नुतम्।
क्रीडन्तौ प्र्त्रैर्नप्तृभिर्मोदमान्नौ स्वस्त कौ।।
#अर्थात -
सम्राज्ञी बनो श्वसुरजी की, तुम बनो सास की सम्राज्ञी
सब ननद और देवरजन की, हो स्नेह राज्य की सम्राज्ञी
हे नवदम्पति हो साथ सदा, आबद्ध प्रेम- आकर्षण में
तुम पूर्ण आयु आनन्द करो, मिल जग आंगन सुख वर्षण में प्रिय पुत्र- पौत्र शिशु क्रीडायें, उल्लास बढ़ायें जीवन में
हो प्रेम श्रेय के अधिकारी, तुम तन- मन कीर्ति आयुधन में
अब कोई भी नारीवादी जरा ये बताने का कष्ट करेंगी की इसमे गुलामी जैसा क्या है ।।
#सिन्दूर_बनता_कैसे_है -
हल्दी + चूना (slaked lime) + पानी = सिन्दूर
इसमे पारे का प्रयोग भी होता है जिसे सामान्यतः घर पे बने सिन्दूर में लोग इस्तेमाल नही करते है ।।
#तरीका - समान मात्रा में एक साथ मिलायें और उसमें ज़रूरत के अनुसार पानी डालकर पेस्ट बना लें पेस्ट को छोटे गोले का रूप दें और धूप में सूखने के लिए छोड़ दें
सूखने के बाद गोले को पीसकर सिंदूर बना लें।
#सिन्दूर_तब_और_अब -
जहाँ पहले लोग सिन्दूर 5000 सालो से घर पर बनाते आये थे अब पश्चिमीकरण के दौर में आसानी से बाजारों में सिंथेटिक सिन्दूर हर जगह बिक रहा है आज कुछ अनब्रैंडेड लाल रंग के पावडर मिलते हैं जिनके दाम दूसरे सिंदूर के तुलना में कम होते हैं। क्योंकि उत्पादक सिंदूर को सस्ता बनाने के लिए उसमें विषाक्त पदार्थ डालते है जो सिंदूर के रंग को और भी लाल बनाने में सहायता करते हैं। ऐसे सिंदूर नारियों को बहुत आकर्षक लगते हैं और वे इन्हें खरीदने के समय इसमें इस्तेमाल किए गए सामग्रियों को देखते भी नहीं हैं।
#इनमे_से_मुख्यतः --
सिंगरिफ (cinnabar) पावडर के रूप में होता है जो साधारणतः नारंगी लाल रंग का होता है , रासायनिक डाई और दूसरे सिन्थेटिक तत्व होते हैं, लाल कच्चा सीसा (crude red lead) पावडर के रूप में होता है, पीबी304, रोडामाइन बी डाई ,मर्क्यरी सल्फाइट आदि तत्व होते हैं।।
#सिन्दूर_लगाने_से_लाभ -
सिन्दूर के संबंध में पौराणिक मान्यता के अलावा कुछ वैज्ञानिक कारण भी है। इससे रक्त चाप तथा पीयूष ग्रंथि भी नियंत्रित होती है। सिंदूर को धातु पारे के साथ हल्दी व चूने के मिश्रण से तैयार किया जाता है। पारा रक्तचाप को नियंत्रित रखने में मदद करता है एवं महिलाओं की यौन इच्छा को सक्रिय करता है। जिसके कारण इसमें एक शारीरिक महत्व भी शामिल हो जाता है। इसलिए सिंदूर को हमारी भावनाओं के केन्द्र, पिट्यूटरी ग्रंथ पर लगाना चाहिए।
#सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं । यह अत्यंत संवेदनशील होती है । यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है । सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है । पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है । महिलाओं को तनाव से दूर रखते हुवे यह मस्तिष्क को हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाह के बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं । पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है । यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिन्दूर मांग में भरा जाता है ।
सिन्दूर शरीर के ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखता है। विधवा औरतें इसे नहीं लगातीं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सिन्दूर यौन उत्तेजनाएं बढ़ाता है।
#एक्यूप्रेशर के GV22 से GV29 पॉइंट तक दवाब बनाये रखने के लिए भी सिन्दूर लगाया जाता है जिससे कि चिड़चिड़ापन कम होता है डिप्रेशन ,हायपर एक्टिविटी को कम करता है, इसपे दवाब से चेतना ,ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रहता है और अन्य मौसमी बीमारियों से बचाव होता है 1st कमेंट में इसकी पिक आपको दे रहा हूँ।।
इस पॉइंट को एक्यूप्रेशर में कंट्रोलिंग पॉइंट कहते है ।।
पिछली बार की तरह कुछ महिला मित्रो को ये ना लगे कि सिर्फ स्त्रियों के लिए ही क्यों तो वो ये जान ले कि भारत में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी अपने माथे पर तिलक लगाते हैं। और इन पॉइंट्स को manag करने के लिए साफा ,बाना ,पगड़ी ,टोपी पहनते थे। आप चुटिया या चोटी को भी इसका ही हिस्सा मान सकते है ।।
#नाक_तक_सिन्दूर -

छठ जैसे त्योहारो पर नाक तक सिन्दूर लगाने का मजाक बनाने वाले मानसिक विकलांगो को पता होना चाहिए कि हमारी आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस माथे की बीच वाली जगह पर एनर्जी बनी रहती है। तिलक लगाने या बिंदी लगाने के दौरान उंगली से चेहरे की स्किन के बीच संपर्क होता है तो चेहरे की स्किन को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है।यही प्रक्रिया नाक तक सिन्दूर लगाने के दौरान भी होती है ।।
 #विशेष - सिंदूर हर विवाहित स्त्री के लिए उनके सुहागन होने की निशानी के रूप में भी देखा जाता है क्योकि सिर्फ विवाहित स्त्रियाँ ही इसे लगा सकती है। इस तरह सिंदूर भरने को भी संस्कार माना जाता है जोकि सुमंगली क्रिया में आता है । शादी होने के बाद से लेकर पति या अपनी मृत्यु तक हर वैवाहिता अपनी मांग में सिंदूर अवश्य लगाती है। इसे नारी के श्रृंगार में एक अहम स्थान प्राप्त है जिसे महिलाओं के लिए मंगल सूचक माना जाता है
जिस तरह के सिंदूर के लाभ है उनसे ये कहा जाता है कि सिंदूर महिलाओं के लिए अमृत या जीवन की तरह होता है क्योकि ये ना सिर्फ चिंता मुक्त करता है बल्कि अनिद्रा, सिर दर्द, याददाशत का कमजोर होना, मन की में अशांति और चेहरे की झुर्रियाँ जैसी समस्याओं को भी दूर करता है। समुद्र शास्त्र में तो ये भी लिखा गया है कि सिंदूर अभागिन स्त्रियों के लिए नए भाग्य के द्वार खोलता है और उनके सभी दोषों का निवारण करता है।।
#सिन्दूर_जहाँ शौभाग्य का प्रतीक है वही स्वास्थ्य के लिए हितकर भी क्योकि ये ना सिर्फ चिंता मुक्त करता है बल्कि अनिद्रा, सिर दर्द, याददाशत का कमजोर होना, मन की में अशांति और चेहरे की झुर्रियाँ जैसी समस्याओं को भी दूर करता है,उस सिन्दूर को सौभाग्य की जगह गुलामी का प्रतीक मानना और कुछ नही बस मानसिक दिवालियापन है ।।







गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

दीपोत्सव : दीपदान का है विशेष महत्वDiwali

दीपावली : पांच दिवसीय जगमगाता पर्व
दीपोत्सव : दीपदान का है विशेष महत्वDiwali कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी
इसे 'धनतेरस' कहा जाता है। इस दिन चिकित्सक भगवान धन्वंतरी की भी पूजा करते हैं। पुराणों में कथा है कि समुद्र मंथन के समय धन्वंतरी सफेद अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। धनतेरस को सायंकाल यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है। लोग धनतेरस को नए बर्तन भी खरीदते हैं और धन की पूजा भी करते हैं।
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी
इसे 'नरक चतुर्दशी' या 'रूप चौदस' भी कहा जाता है। इस दिन नरक से डरने वाले मनुष्यों को चंद्रोदय के समय स्नान करना चाहिए व शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। जो चतुर्दशी को प्रातःकाल तेल मालिश कर स्नान करता है और रूप सँवारता है, उसे यमलोक के दर्शन नहीं करने पड़ते हैं। नरकासुर की स्मृति में चार दीपक भी जलाना चाहिए।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या
इसे दीपावली कहा जाता है। इस दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही कुबेर की पूजा भी की जाती है। शुभ मुहूर्त में लक्ष्मीजी का पाना, सिक्का, तस्वीर अथवा श्रीयंत्र, धानी, बताशे, दीपक, पुतली, गन्ने, साल की धानी, कमल पुष्प, ऋतु फल आदि पूजन की सामग्री खरीदी जाती है। घरों में लक्ष्मी के नैवेद्य हेतु पकवान बनाए जाते हैं। शुभ मुहूर्त, गोधूलि बेला अथवा सिंह लग्न में लक्ष्मी का वैदिक या पौराणिक मंत्रों से पूजन किया जाता है।
प्रारंभ में गणेश, अंबिका, कलश, मातृका, नवग्रह, पूजन के साथ ही लक्ष्मी पूजा का विधान होता है। लक्ष्मी के साथ ही अष्टसिद्धियां- अणिमा महिला गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्या, ईशिता और बसिता तथा अष्टलक्ष्मी आदि, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य भोग और योग की पूजा भी करना चाहिए। इसके पश्चात महाकाली स्वरूप दवात तथा महासरस्वती स्वरूप कलम व लेखनी की पूजा होती है। बही, बसना, धनपेटी,लॉकर, तुला, मान आदि में स्वास्तिक बनाकर पूजन करना चाहिए। पूजा के पश्चात दीपकों को देवस्थान, गृह देवता, तुलसी, जलाशय, पर आंगन, आसपास सुरक्षित स्थानों, गौशाला आदि मंगल स्थानों पर लगाकर दीपावली करें। फिर घर आंगन में आतिशबाजी कर लक्ष्मीजी को प्रसन्न करना चाहिए।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा
इसे गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन गाय-बछड़ों एवं बैलों की पूजा की जाती है। गाय-बछड़ादि को तरह-तरह से श्रृंगारित किया जाता है। सायंकाल उन्हें सामूहिक रूप से गली-मोहल्लों में घुमाया जाता है और ग्वाल-बाल, विरह गान भी करते हैं। इस तिथि को बलि प्रतिपदा, वीर प्रतिपदा और द्युत प्रतिपदा भी कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं शुभ मुहूर्त में घर आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर कृष्ण सहित उनकी पूजा करती हैं। इस महोत्सव में देवस्थानों पर चातुर्मास में वर्जित सब्जियों की संयुक्त विशेष सब्जी बनाई जाती है और छप्पन प्रकार के भोग तैयार कर भगवान को नैवेद्य लगाया जाता है। उसके पश्चात देवस्थलों से भक्त, साधु, ब्राह्मण आदि को सामूहिक रूप से प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया
इसे यम द्वितीया या भाई दूज कहा जाता है। इस दिन प्रातःकाल उठकर चंद्रमा के दर्शन करना चाहिए। यमुना के किनारे रहने वाले लोगों को यमुना में स्नान करना चाहिए। आज के दिन यमुना ने यम को अपने घर भोजन करने बुलाया था, इसीलिए इसे यम द्वितीया कहा जाता है। इस दिन भाइयों को घर पर भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन, चाचा या मौसी की पुत्री, मित्र की बहन के यहां स्नेहवत भोजन करना चाहिए। इससे कल्याण की प्राप्ति होती है।
भाई को वस्त्र, द्रव्य आदि से बहन का सत्कार करना चाहिए। सायंकाल दीपदान करने का भी पुराणों में विधान है।
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दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जिसे हिन्दू व मुस्लिम दोनों मनाते है।मोहम्मद शाह व मोहम्मद बंगश के जमाने में मैनपुरी एटा ईटावा व जिला फर्रुखाबाद में जाट,राजपूतों का धर्म परिवर्तन हुआ था?ऐसे मुस्लिम,हिन्दू व मुस्लिम दोनों रीति रिवाजों का पालन करते थे?आज भी विशेष मौकों पर ये मस्जिद जाते है...हिन्दू त्योहार मनाते है..हिन्दुओं में विवाह करते है..पंडित व मौलाना दोनों के हाथों संस्कार सम्पन्न होते है?अधिकतर परिवर्तित राजपूत मुस्लिम करांची पाकिस्तान स्थानान्तरित हो गये?मुगल काल में हिन्दू मुसलमान हिन्दू त्योहार बिना भेदभाव बड़े उल्लास के साथ मनाते थे।शिवरात्रि,रामनवमी,दशहरा व दिवाली को राजकीय मान्यता प्राप्त बंदी होती थी।हफ्तों पहले घरों में सफाई शुरु हो जाती थी।राज दरवारों में साफ सफाई व रोगन पुताई के साथ दरवार लाखों दीपों से प्रज्वलित कर रोशनी से रंग दिये जाते।बादशाह सलामत के साथ रानियाँ व मुलाजिम स्वयं दिवाली मनाते।औरंगजेब के अलावा सभी मुगल बादशाह सहअस्तित्व के साथ रहने में विश्वास करते थे।उन्होंने कभी भी रिश्तों मे धर्म को आड़े नहीं आने दिया।दिवाली हिन्दू मुस्लिम दोनों के लिये व्यापार में बराबर की सहायक थी।नवाबी काल में इस परम्परा को जारी रखा गया।बंगश नवाब मोहम्मद खाँन के जमाने में कम्पिल में हिन्दू मुस्लिम मिलकर धूम धाम से दिवाली मनाते थे।महीनों मेला लगता था।हिन्दू व मुस्लिम व्यापारी अपनी अपनी दूकाने सजाते।राज महल सजाये जाते।नवाब अहमद खाँ गरीवों में कपड़े बँटवाते,मिठाईयाँ बँटवाते।आज का नेहरु रोड कल का अहमद रोड था।टाऊन हाल से लाल सराय तक सम्पूर्ण बाजार सजाया जाता।दरवार में पटाखे आतिशवाजी छुड़ाई जाती।ये सभी परम्परायें जनता के बीच आज भी बदस्तूर जारी है।







शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

#वक्री_ग्रह_विशेष



#वक्री_ग्रह_विशेष

वक्री ग्रह को लेकर विभिन्न ग्रन्थो मे उल्लेख मिलता है जिनका कुछ विवरण निम्नलिखत है--
(१) #सारावली मे कहा गया है कि शुभ ग्रह वक्री हो तो अधिकार और शक्ति को बढाते है| तथा अशुभ ग्रह वक्री होकर चिन्ता , व्यथा बेकार की यात्रा देते है|
(२) वैद्यनाथ के #जातकपारिजात मे लिखा है कि यदि कोई शुभ ग्रह होकर शुभ स्थान पर है तो उसकी शुभता बढती है| और अशुभ अनिस्ट भावो मे वक्री होकर अशुभता बढाता है|
(३) #उत्तरकालामृत मे कहा है कि वक्री ग्रह अपनी उच्चराशि जैसा फल देते है| और जो ग्रह नीच का हो तो उच्च का फल देता है और उच्च ग्रह नीच का फल देता है|
(४) #फलदीपीका मे कहा गया है कि यदि ग्रह नीच राशि या नीच नवांश मे हो और अस्त ना हो वक्री है तो महान बली समझा जाता है| और यदि उच्च का होकर मित्र के घर का,अपने घर का या वर्गोत्तम भी हो और अस्त हो तो ग्रह अमावस के चंद्र जैसा अशुभ फल देता है|
(५) #होरासार मे कहा गया है कि गुरू वक्री होकर मकर राशि को छोडकर सभी मे पूरा बली होता है| यदि कोई भी ग्रह वक्री है तो वह उच्च का फल देता है और अपनी दशा मे धन यश,मान सम्मान प्रतिष्ठा देता है|
(६) #ज्योतिषतत्वप्रकाश मे कहा गया है कि क्रूर ग्रह वक्री होने पर अति क्रूर और सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति सौम्य फल देते है|
(७) #आरम्भसिद्धि मे कहा गया है कि मंगल वक्री हो तो १५दिन , बुध १०दिन , गुरू १मास , शुक्र १०दिन , और शनि ५महिना , तक पिछली राशि का फल देता है जिसमे वे स्थित होते है | उसके बाद ही उस राशि का फल देते है जिसमे वे है|
(८) #प्रश्नप्रकाश मे कहा गया है कि मंगल ,बुध,शु्क्र वक्री होकर पिछली राशि का फल देते है| और गुरू ,शनि उसी राशि का फल देते है जिसमे वे स्थित है|_____________________

जब कोई ग्रह वक्री होकर किसी राशि के उन्ही अंशो पर आगे पीछे भ्रमण करता है तो उस स्थान को अत्यधिक प्रभावित करता है| नीच का ग्रह उच्च का फल देत है और उच्च का ग्रह नीच का फल देता है| ग्रह जिस भाव मे शुभ फल देने वाला है वहां वक्री होने से वह उस स्थान के फल का विस्तार करता है| और वक्री ग्रह उस स्थान का फल खराब करता है और कम करता है| जैसे_ कर्क लग्न के जातक की कुंडली मे मंगल दशम मे वक्री है तो दशम को अधिक बल देगा और व्यवसाय की उन्नती करेगा| और यदि मंगल आठवें घर मे अशुभ है तो अस्टम के अशुभ फल बढा देगा| यह विचार भी सही है कि मंगल ,बुध,शुक्र वक्री होकर पिछली राशि का फल देते है| गुरू,शनि उसी राशि का जिसमे वे है|

जो ग्रह अपनी पिछली राशि का फल दे रहै है वो अपने से पिछले भाव का भी देंगे और उनका स्वामीत्व भी बदल जायेगा| जैसे यदि मिथुन लग्न मे पंचम मे वक्री हो तो बुध द्वादश और तीसरे भाव का फल देगा|