शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

#वक्री_ग्रह_विशेष



#वक्री_ग्रह_विशेष

वक्री ग्रह को लेकर विभिन्न ग्रन्थो मे उल्लेख मिलता है जिनका कुछ विवरण निम्नलिखत है--
(१) #सारावली मे कहा गया है कि शुभ ग्रह वक्री हो तो अधिकार और शक्ति को बढाते है| तथा अशुभ ग्रह वक्री होकर चिन्ता , व्यथा बेकार की यात्रा देते है|
(२) वैद्यनाथ के #जातकपारिजात मे लिखा है कि यदि कोई शुभ ग्रह होकर शुभ स्थान पर है तो उसकी शुभता बढती है| और अशुभ अनिस्ट भावो मे वक्री होकर अशुभता बढाता है|
(३) #उत्तरकालामृत मे कहा है कि वक्री ग्रह अपनी उच्चराशि जैसा फल देते है| और जो ग्रह नीच का हो तो उच्च का फल देता है और उच्च ग्रह नीच का फल देता है|
(४) #फलदीपीका मे कहा गया है कि यदि ग्रह नीच राशि या नीच नवांश मे हो और अस्त ना हो वक्री है तो महान बली समझा जाता है| और यदि उच्च का होकर मित्र के घर का,अपने घर का या वर्गोत्तम भी हो और अस्त हो तो ग्रह अमावस के चंद्र जैसा अशुभ फल देता है|
(५) #होरासार मे कहा गया है कि गुरू वक्री होकर मकर राशि को छोडकर सभी मे पूरा बली होता है| यदि कोई भी ग्रह वक्री है तो वह उच्च का फल देता है और अपनी दशा मे धन यश,मान सम्मान प्रतिष्ठा देता है|
(६) #ज्योतिषतत्वप्रकाश मे कहा गया है कि क्रूर ग्रह वक्री होने पर अति क्रूर और सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति सौम्य फल देते है|
(७) #आरम्भसिद्धि मे कहा गया है कि मंगल वक्री हो तो १५दिन , बुध १०दिन , गुरू १मास , शुक्र १०दिन , और शनि ५महिना , तक पिछली राशि का फल देता है जिसमे वे स्थित होते है | उसके बाद ही उस राशि का फल देते है जिसमे वे है|
(८) #प्रश्नप्रकाश मे कहा गया है कि मंगल ,बुध,शु्क्र वक्री होकर पिछली राशि का फल देते है| और गुरू ,शनि उसी राशि का फल देते है जिसमे वे स्थित है|_____________________

जब कोई ग्रह वक्री होकर किसी राशि के उन्ही अंशो पर आगे पीछे भ्रमण करता है तो उस स्थान को अत्यधिक प्रभावित करता है| नीच का ग्रह उच्च का फल देत है और उच्च का ग्रह नीच का फल देता है| ग्रह जिस भाव मे शुभ फल देने वाला है वहां वक्री होने से वह उस स्थान के फल का विस्तार करता है| और वक्री ग्रह उस स्थान का फल खराब करता है और कम करता है| जैसे_ कर्क लग्न के जातक की कुंडली मे मंगल दशम मे वक्री है तो दशम को अधिक बल देगा और व्यवसाय की उन्नती करेगा| और यदि मंगल आठवें घर मे अशुभ है तो अस्टम के अशुभ फल बढा देगा| यह विचार भी सही है कि मंगल ,बुध,शुक्र वक्री होकर पिछली राशि का फल देते है| गुरू,शनि उसी राशि का जिसमे वे है|

जो ग्रह अपनी पिछली राशि का फल दे रहै है वो अपने से पिछले भाव का भी देंगे और उनका स्वामीत्व भी बदल जायेगा| जैसे यदि मिथुन लग्न मे पंचम मे वक्री हो तो बुध द्वादश और तीसरे भाव का फल देगा|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें