माहवारी के समय क्यों नहीं करना चाहिए - सेक्स ( सहवास)
माहवारी ( Menstruation Cycle )
मासी - मासी रज: स्त्रीणां रसजं स्रवति त्र्यहम |
अर्थात जो रक्त स्त्रियों में हर महीने गर्भास्य से होकर 3 दिन तक बहता है उसे रज या माहवारी कहते है | माहवारी के शुरू होने पर धीरे-धीरे स्तन , गर्भास्य और योनी की वृद्धि होनी शुरू हो जाती है | सामान्यतया माहवारी 12 -13 वर्ष से शुरू होती है और 45-50 वर्ष की आयु में माहवारी आना बंद हो जाती है जिसे रजनिवर्ती कहते है | हमारे ऋषि - मुनिओ ने माहवारी के समय सेक्स को वर्जित किया था एवं कुछ नियम व कायदे बनाए थे | लेकिन वर्तमान समय में भाग - दोड़ भरी जिंदगी में स्त्री - पुरूष दोनों के लिए इन नियम का पालन करना न तो वांछनिये है और ना ही व्यावहारिक | लेकिन फिर भी इन नियमो का पालन उतना तो करना ही चाहिए जितना व्यावहारिक और हमारे लिए लाभ दाई हो |
तो आज हम आपको बताते है माहवारी के समय ऋषि - मुनिओ ने क्या क्या नियम महिलाओ के लिए बताए थे |
ब्रह्मचारिणी
माहवारी के समय स्त्रियों को ब्रह्मचारिणी रहना चाहिए अर्थात अपने पति के साथ सहवास नहीं करना चाहिए क्यों की इससे पति की उम्र घटती है | इस नियम का पालन माहवारी के प्रथम दिन से माहवारी के अंतिम दिन तक करना चाहिए |
आचरण
माहवारी के समय महिला को कुश आसन अर्थात सीधे और लकड़ी से बने तख़्त पर सोना चाहिए |
आहार ( भोजन )
माहवारी के समय उष्ण एवं तीखे खाने से परहेज रखना चाहिए क्यों की इससे शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है एवं माहवारी में आने वाले खून में भी वर्द्धि हो जाती है या फेर माहवारी का समय बढ़ जाता है | इसलिए उसे हल्का भोजन करना चाहिए | आयुर्वेद के अनुशार इस समय महिला को जो की दूध में पकाई हुई खिचड़ी का सेवन अवश्य करना चाहिए क्यों की इससे खून में उपस्थित विकृत धातु माहवारी के साथ शरीर से बहार आजाते है |
सहवास ( Sex )
मासिक धर्म के समय Sex को ऋषि - मुनिओ ने वर्जित बताया है | इन रात्रियो में महिला के साथ Sex नहीं करना चाहिए | इससे आयु की कमी होती है और ये वैज्ञानिक तौर पर भी प्रमाणिक है की इस समय महिला के आर्तव से एक हानिकारक टोक्सिन निकलता है जो पुरुष एवं महिला दोनों के लिए हानिकारक होता है | माहवारी के काल में महिला के खून में Menstruation Toxin की उत्पति होती है जो स्वेद ( पसीने ) और स्तन्य ( स्त्री के चुचको ) से बहार निकलता है | इस लिए महिला को रज ( महाव्वारी ) के 3 दिन अस्प्रश्य माना है |
कब करे ?
अब प्रश्न आता है की कब करे सहवास ? तो उसके लिए बताया गया है की माहवारी
के चोथे दिन या जब माहवारी के स्राव का आना बंद हो जावे तो महिला को अच्छी
तरह नहा कर एवं शरीर पर तेल की मालिश कर अपने पति के सम्मुख प्रशन मन से
सहवास के लिए जाना चाहिय एवं दोनों को प्रसन्न होकर एकांत में Sex करना
चाहिए |
अगर पुत्र रत्न की इच्छा हो तो माहवारी के चोथे , छठे , आठवे , दसवे और बारहवे दिन की रात्रि को सहवास करना चाहिए | आयुर्वेद को मानाने वालो को पता है की इन दिवसों में आयु, आरोग्य, सौन्द्रिये और एश्व्रिये का बल अधिक होता है | इन तिथियों को सम युग्म या समतिथि कहते है | इसके अलावा पांचवी, सातवी और नवी रात्रियो में किये गए समागम से कन्या की प्राप्ति होती है | इन तिथियों को अयुग्म या विषम तिथि कहा जाता है |
ये नियम उस समय बनाए गए थे जब जनसंख्या कम थी और खाने के लिए प्रयाप्त
साधन थे | स्त्रियों के पास विश्राम के लिए प्रयाप्त समय था | लेकिन
वर्तमान समय में ये नियम पालन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन प्रतीत होते
है | लेकिन फिर भी हमें इनमे से कुछ नियमो का पालन अवश्य करना चाहिए जिससे
हमें भी स्वास्थ्य लाभ हो |
माहवारी ( Menstruation Cycle )
मासी - मासी रज: स्त्रीणां रसजं स्रवति त्र्यहम |
अर्थात जो रक्त स्त्रियों में हर महीने गर्भास्य से होकर 3 दिन तक बहता है उसे रज या माहवारी कहते है | माहवारी के शुरू होने पर धीरे-धीरे स्तन , गर्भास्य और योनी की वृद्धि होनी शुरू हो जाती है | सामान्यतया माहवारी 12 -13 वर्ष से शुरू होती है और 45-50 वर्ष की आयु में माहवारी आना बंद हो जाती है जिसे रजनिवर्ती कहते है | हमारे ऋषि - मुनिओ ने माहवारी के समय सेक्स को वर्जित किया था एवं कुछ नियम व कायदे बनाए थे | लेकिन वर्तमान समय में भाग - दोड़ भरी जिंदगी में स्त्री - पुरूष दोनों के लिए इन नियम का पालन करना न तो वांछनिये है और ना ही व्यावहारिक | लेकिन फिर भी इन नियमो का पालन उतना तो करना ही चाहिए जितना व्यावहारिक और हमारे लिए लाभ दाई हो |
तो आज हम आपको बताते है माहवारी के समय ऋषि - मुनिओ ने क्या क्या नियम महिलाओ के लिए बताए थे |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipgeh7NLVfUCt6OSOi9P8PUItdkPYpXlVJ_MPidwyohTNqcU3J2kbXKGmhPbYIJ_9zC5UEKY2aHztnleSD_0vThGZWuwf0uP1K4ftnxe8g9RU1TQt8KFLi_9Lm-r75PL2FG-BPJFf7HfY/s1600/19884407_184445722091579_5685613058557154147_n.jpg)
ब्रह्मचारिणी
माहवारी के समय स्त्रियों को ब्रह्मचारिणी रहना चाहिए अर्थात अपने पति के साथ सहवास नहीं करना चाहिए क्यों की इससे पति की उम्र घटती है | इस नियम का पालन माहवारी के प्रथम दिन से माहवारी के अंतिम दिन तक करना चाहिए |
आचरण
माहवारी के समय महिला को कुश आसन अर्थात सीधे और लकड़ी से बने तख़्त पर सोना चाहिए |
आहार ( भोजन )
माहवारी के समय उष्ण एवं तीखे खाने से परहेज रखना चाहिए क्यों की इससे शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है एवं माहवारी में आने वाले खून में भी वर्द्धि हो जाती है या फेर माहवारी का समय बढ़ जाता है | इसलिए उसे हल्का भोजन करना चाहिए | आयुर्वेद के अनुशार इस समय महिला को जो की दूध में पकाई हुई खिचड़ी का सेवन अवश्य करना चाहिए क्यों की इससे खून में उपस्थित विकृत धातु माहवारी के साथ शरीर से बहार आजाते है |
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सहवास ( Sex )
मासिक धर्म के समय Sex को ऋषि - मुनिओ ने वर्जित बताया है | इन रात्रियो में महिला के साथ Sex नहीं करना चाहिए | इससे आयु की कमी होती है और ये वैज्ञानिक तौर पर भी प्रमाणिक है की इस समय महिला के आर्तव से एक हानिकारक टोक्सिन निकलता है जो पुरुष एवं महिला दोनों के लिए हानिकारक होता है | माहवारी के काल में महिला के खून में Menstruation Toxin की उत्पति होती है जो स्वेद ( पसीने ) और स्तन्य ( स्त्री के चुचको ) से बहार निकलता है | इस लिए महिला को रज ( महाव्वारी ) के 3 दिन अस्प्रश्य माना है |
कब करे ?
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अगर पुत्र रत्न की इच्छा हो तो माहवारी के चोथे , छठे , आठवे , दसवे और बारहवे दिन की रात्रि को सहवास करना चाहिए | आयुर्वेद को मानाने वालो को पता है की इन दिवसों में आयु, आरोग्य, सौन्द्रिये और एश्व्रिये का बल अधिक होता है | इन तिथियों को सम युग्म या समतिथि कहते है | इसके अलावा पांचवी, सातवी और नवी रात्रियो में किये गए समागम से कन्या की प्राप्ति होती है | इन तिथियों को अयुग्म या विषम तिथि कहा जाता है |
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