रविवार, 23 जुलाई 2017

पूजा में प्रयोग होने वाले कुछ शब्द और उनका अर्थ?

पूजा में प्रयोग होने वाले कुछ शब्द और उनका अर्थ?


1. पंचोपचार गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को पंचोपचारकहते हैं |
2. पंचामृत दूध , दही , घृत , मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को पंचामृतकहते हैं |
3. पंचगव्य गाय के दूध , घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में पंचगव्यकहते हैं |
4. षोडशोपचार आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र, अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप , नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को षोडशोपचारकहते हैं |
5. दशोपचार पाध्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को दशोपचारकहते हैं |
6. त्रिधातु सोना , चांदी और लोहा |कुछ आचार्य सोना , चांदी, तांबा इनके मिश्रण को भी त्रिधातुकहते हैं |
7. पंचधातु सोना , चांदी , लोहा, तांबा और जस्ता |
8. अष्टधातु सोना , चांदी , लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा , कांसा और पारा |
9. नैवैध्य खीर , मिष्ठान आदि मीठी वस्तुये |
10. नवग्रह सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध, गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु |
11. नवरत्न माणिक्य , मोती , मूंगा , पन्ना , पुखराज , हीरा , नीलम , गोमेद , और वैदूर्य |
12. [A] अष्टगंध अगर , तगर , गोरोचन, केसर , कस्तूरी , ,श्वेत चन्दन , लाल चन्दन और सिन्दूर [ देवपूजन हेतु ][B] अगर , लाल चन्दन , हल्दी , कुमकुम ,गोरोचन , जटामासी , शिलाजीत और कपूर [ देवी पूजन हेतु ]
13. गंधत्रय सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम |
14. पञ्चांग किसी वनस्पति के पुष्प , पत्र , फल , छाल ,और जड़ |
15. दशांश दसवां भाग |
16. सम्पुट मिट्टी के दो शकोरों को एक-दुसरे के मुंह से मिला कर बंद करना |
17. भोजपत्र एक वृक्ष की छाल | मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र का ऐसा टुकडा लेना चाहिए , जो कटा-फटा न हो |
18. मन्त्र धारण किसी भी मन्त्र को स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ में धारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा में धारण करना चाहें तो पुरुष को अपनी दायीं भुजा में और स्त्री को बायीं भुजा में धारण करना चाहिए |
19. ताबीज यह तांबे के बने हुए
बाजार में बहुतायत से मिलते हैं | ये गोल तथा चपटे दो आकारों में मिलते हैं | सोना , चांदी , त्रिधातु तथा अष्टधातु आदि के ताबीज बनवाये जा सकते हैं |
20. मुद्राएँ हाथों की अँगुलियों को किसी विशेष स्तिथि में लेने कि क्रिया को मुद्राकहा जाता है | मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं |
21. स्नान यह दो प्रकार का होता है | बाह्य तथा आतंरिक ,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिक स्नान जप द्वारा होता है |
22. तर्पण नदी , सरोवर ,आदि के जल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर, हाथ की अंजुली द्वारा जल गिराने की क्रिया को तर्पणकहा जाता है | जहाँ नदी , सरोवर आदि न हो ,वहां किसी पात्र में पानी भरकर भी तर्पणकी क्रिया संपन्न कर ली जाती है |
23. आचमन हाथ में जल लेकर उसे अपने मुंह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं |
24. करन्यास अंगूठा , अंगुली , करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को करन्यासकहा जाता है
25. हृद्याविन्यास ह्रदय आदि अंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारण को हृदय्विन्यासकहते हैं
26. अंगन्यास ह्रदय , शिर , शिखा , कवच , नेत्र एवं करतल इन 6 अंगों से मन्त्र का न्यास करने की क्रिया को अंगन्यासकहते हैं |

27. अर्घ्य शंख , अंजलि आदि द्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देना कहा जाता है |घड़ा या कलश में पानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापन कहते हैं | अर्घ्य पात्र में दूध , तिल , कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प , चावल एवं कुमकुम इन सबको डाला जाता है।

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