उत्तर से उन्नति,
दक्षिण से दायित्व ,
पूर्व से प्रतिष्ठा,
पश्चिम से प्रारब्ध,
नैऋत्य से नैतिकता
वावव्य से वैभव,
ईशान से एश्वर्य
आकाश से आमदनी,
पाताल से पूँजी
दसों दिशाओ से शान्ति सुख समृद्धि सफलता
प्राप्त हो आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ..! शुभं
करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपदः ।
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपंज्योति नमोऽस्तु ते
।।
दीपावली की आपको और आपके परिवार को अनन्त कोटि शुभ कामनाएं
त्योहार है दीवाली का
त्योहार है दीवाली का
सुख समृद्धि और खुशहाली का।
बुराई के राक्षस को मन से भगाएँ
हृदय में शांति का दीपक जलाएँ
दीन दुखियों को गले लगाएँ
उनके जीवन मे प्रकाश जगाएँ
प्रेम भाईचारे और ज़िंदादिली का
त्योहार है दीवाली का
सुख समृद्धि और खुशहाली का।
// ::::::::प्राणायाम ::::::::::::::::
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प्राणायाम मन के शोधन की क्रिया है |जब मन शुद्ध हो जाता है तब वह अध्यात्म
की ओर्र उन्मुख होकर परब्रह्म में स्थिर होने लगता है |साधना की प्रथम क्रिया प्राणायाम है |बाहर की वायु भीतर शारीर में प्रवेश
करे तो उसे श्वास कहते हैं |जबकि
भीतर की वायु बाहर निकले तो उसे प्रश्वास कहा जाता है | इन दोनों ही वायुओं को रोकने अथवा
नियंत्रित करने अथवा इच्छानुसार चलाने का नाम ही प्राणायाम है | नासिका छिद्रों से आने जाने वाले
श्वासों पर ध्यान एकाग्र करने से मन स्थिर होता है |श्वास -प्रश्वास की गति का निरोध ही प्राणायाम है |प्राणवायु के निग्रह से इन्द्रियों के
समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं तथा चित्त शुद्ध हो जाता है |श्वांस प्रश्वास और उनकी गति पर
नियंत्रण प्राणायाम से होता है |इसके
तीन भेद हैं ,रेचक
,पूरक व् कुम्भक |नासिका के बाएं भाग में इड़ा ,दायें में पिंगला और दोनों के मध्य में
सुषुम्ना माना जाता है |प्रणव
[ ॐ ] का बारह बार जपकर अन्तस्थ वायु को पिंगला से छोड़ने को रेचक कहते हैं |सोलह बार प्रणव जप करके वाह्य वायु को
इड़ा से भरने को पूरक कहते हैं तथा बारह बार तारक मन्त्र को जप करके मध्य में वायु
को स्थिर करना कुम्भक कहलाता है |भीतरी
श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखने को कुम्भक प्राणायाम कहते हैं |बाहर की श्वास को भीतर खींचकर ही रोके
रखना आभ्यंतर कुम्भक प्राणायाम कहलाता है |लेकिन बाहर या भीतर कहीं भी सुखपूर्वक श्वास को रोक लेना
स्ताम्भावृत्ति प्राणायाम कहलाता है |
प्राणायाम के कई भेद होते हैं जैसे नाड़ीशोधन, प्राण संचार, अनुलोम विलोम, उज्जायी, भ्रामरी, अनुलोम
विलोम सूर्यवेधन, शक्तिचालिनी
मुद्रा, कपालभाति, भस्रिका, शीतली, शीतकारी
प्राणायाम। उच्चस्तरीय योग साधना में प्राणायाम साधना का अपना महत्त्व है।
प्राणायाम दिखने में ही सामान्य लगता है, पर यदि उच्चस्तरीय विधान के आधार पर साधा जाए तो शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक प्रगति के लिए उससे
महत्त्वपूर्ण लाभ उठाया जा सकता है।
प्राणायाम दो तरह के होते है।
१. गहन श्वास- प्रश्वास, व्यायाम परक (डीप ब्रीदिंग
एक्सरसाईज)तथा
२. आध्यात्मिक ध्यान परक। पहले प्रकार के
प्राणायामों में कुम्भक १.२.१ या १.४.२ की मात्रा में क्रमशः बढ़ाया जाता है।
दूसरे प्रकार के प्राणायामों १.१/२.१.१/२ का ही
क्रम रहता है। कपालभाति और
भस्त्रिका प्राणायाम तो व्यायाम परक ही होते
हैं, शेष अन्य
प्राणायामों को दोनों प्रकार से प्रयोग में लाया जा सकता है। दोनों प्रकार के प्राणायामों
के बीच इतना समय अवश्य दें कि शरीर और श्वास- प्रश्वास की गति सहज स्थिति में आ
जाये। इसमें ध्यान का विशेष प्रयोग होता है। .....
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