प्रिय भक्तजनों 🍒🍒*दुर्गा सप्तशती पाठ—अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है-*
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*_दुर्गा सप्तशती पाठ—अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है-_*
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*_नवरात्र के दौरान माता को प्रसन्न करने के लिए साधक विभिन्न प्रकार के पूजन करते हैं जिनसे माता प्रसन्न उन्हें अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। दुर्गा सप्तशती में (700) सात सौ प्रयोग है जो इस प्रकार है:- मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के दो सौ(200), स्तंभन के दो सौ(200), विद्वेषण के साठ(60) और वशीकरण के साठ(60)। इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है।_*
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*दुर्गा सप्तशती पाठ विधि*
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– सर्वप्रथम साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए।
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– तत्पश्चात वह आसन शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जाए।
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– माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें।
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– शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
– इसके बाद प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें तथा मंत्रों से संकल्प लें।
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
– देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें।
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– फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
– इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है।
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-इसके जप के पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए।
तत्पश्चात पूरे ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं।
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“दुर्गा सप्तशती ” साल में चार नवरात्रें होते हैं, ये शायद बहुत कम लोगों को पत्ता होता है | सर्वोत्तम माह महिना की नवरात्री की मान्यता है | किन्तु क्रम इस प्रकार है -चैत्र ,आषाढ़ ,आश्विन ,और माह | प्रायः “उत्तर भारत” में चैत्र एवं आश्विन की नवरात्री लोग विशेष धूम धाम से मानते हैं ,किन्तु “दक्षिण भारत “में आषाढ़ और माह की नव्रत्रियाँ विशेष प्रकार से लोग मनाते हैं| सच तो यह भी है, कि जिनको पत्ता है ,वो चारो नवरात्रियों में विशेष पूजन इत्यादि करते हैं |
दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है , दुर्ग =किला ,स्तंभ , शप्तशती अर्थात सात सौ | जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम शप्तशती है |
महत्व -जो कोई भी इस ग्रन्थ का अवलोकन एवं पाठ करेगा “माँ जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा होगी |
कथा – “सुरथ और “समाधी ” नाम के राजा एवं वैश्य का मिलन किसी वन में होता है ,और वे दोनों अपने मन में विचार करते हैं, कि हमलोग राजा एवं सभी संपदाओं से युक्त होते हुए भी अपनों से विरक्त हैं ,किन्तु यहाँ वन में, ऋषि के आश्रम में, सभी जीव प्रसन्नता पूर्वक एकसाथ रहते हैं | यह आश्चर्य लगता है ,कि क्या कारण है ,जो गाय के साथ सिंह भी निवास करता है, और कोई भय नहीं है,जब हमें अपनों ने परित्याग कर दिए, तो फिर अपनों की याद क्यों आती है |
वहाँ ऋषि के द्वारा यह ज्ञात होता है ,कि यह उसी ” महामाया ” की कृपा है ,सो पुनः ये दोनों ” दुर्गा” की आराधना करते हैं ,और “शप्तशती ” के बारहवे अध्याय में आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ,और अपने परिवार से युक्त भी हो जाते हैं |
भाव -जो कोई भी” माँ जगदम्बा “की शरण लेगा ,उसके ऊपर माँ की असीम कृपा होगी ,संसार की समस्त बाधा का निवारण करेंगीं – अतः सभी को “दुर्गा शप्तशती ” का पाठ तो करने ही चाहिए ,और इस ग्रन्थ को अपने कुलपुरोहित से जानना भी चाहिए….
दुर्गा सप्तशती के अलग-अलग प्रयोग…/ उपाय—-
दुर्गा सप्तशती से कामनापूर्ति—
– लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें।
– वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें।
बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें।
– सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें।
वस्त्र- लक्ष्मी संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें। यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर शाल लपेट लें। आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं।
हवन करने से
जायफल से कीर्ति और किशमिश से कार्य की सिद्धि होती है।
आंवले से सुख और केले से आभूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें।
खांड, घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश और कदंब से हवन करें।
गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
खीर से परिवार, वृद्धि, चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है।
आवंले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्ति होती है।
कमल से राज सम्मान और किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रमाण करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है।
*‘ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’*
शीघ्र विवाह के लिए।
*क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे।*
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए स्फटिक की माला पर।
*ओंम ऐं हृी क्लीं चामुण्डायै विच्चे।*
परेशानियों के अन्त के लिए।
क्लीं हृीं ऐं चामुण्डायै विच्च
*ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।*
*ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥*
*ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।*
*ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥*
तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर ‘पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ’ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें।
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*ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।’ इत्याद्यारभ्य ‘सावर्णिर्भविता मनुः’ इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये/करिष्यामि।
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*_दुर्गा सप्तशती पाठ—अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है-_*
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*_नवरात्र के दौरान माता को प्रसन्न करने के लिए साधक विभिन्न प्रकार के पूजन करते हैं जिनसे माता प्रसन्न उन्हें अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। दुर्गा सप्तशती में (700) सात सौ प्रयोग है जो इस प्रकार है:- मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के दो सौ(200), स्तंभन के दो सौ(200), विद्वेषण के साठ(60) और वशीकरण के साठ(60)। इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है।_*
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*दुर्गा सप्तशती पाठ विधि*
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– सर्वप्रथम साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए।
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– तत्पश्चात वह आसन शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जाए।
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– माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें।
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– शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें।
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– इसके बाद प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें तथा मंत्रों से संकल्प लें।
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– देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें।
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– फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए।
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– इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है।
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-इसके जप के पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए।
तत्पश्चात पूरे ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं।
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“दुर्गा सप्तशती ” साल में चार नवरात्रें होते हैं, ये शायद बहुत कम लोगों को पत्ता होता है | सर्वोत्तम माह महिना की नवरात्री की मान्यता है | किन्तु क्रम इस प्रकार है -चैत्र ,आषाढ़ ,आश्विन ,और माह | प्रायः “उत्तर भारत” में चैत्र एवं आश्विन की नवरात्री लोग विशेष धूम धाम से मानते हैं ,किन्तु “दक्षिण भारत “में आषाढ़ और माह की नव्रत्रियाँ विशेष प्रकार से लोग मनाते हैं| सच तो यह भी है, कि जिनको पत्ता है ,वो चारो नवरात्रियों में विशेष पूजन इत्यादि करते हैं |
दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है , दुर्ग =किला ,स्तंभ , शप्तशती अर्थात सात सौ | जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम शप्तशती है |
महत्व -जो कोई भी इस ग्रन्थ का अवलोकन एवं पाठ करेगा “माँ जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा होगी |
कथा – “सुरथ और “समाधी ” नाम के राजा एवं वैश्य का मिलन किसी वन में होता है ,और वे दोनों अपने मन में विचार करते हैं, कि हमलोग राजा एवं सभी संपदाओं से युक्त होते हुए भी अपनों से विरक्त हैं ,किन्तु यहाँ वन में, ऋषि के आश्रम में, सभी जीव प्रसन्नता पूर्वक एकसाथ रहते हैं | यह आश्चर्य लगता है ,कि क्या कारण है ,जो गाय के साथ सिंह भी निवास करता है, और कोई भय नहीं है,जब हमें अपनों ने परित्याग कर दिए, तो फिर अपनों की याद क्यों आती है |
वहाँ ऋषि के द्वारा यह ज्ञात होता है ,कि यह उसी ” महामाया ” की कृपा है ,सो पुनः ये दोनों ” दुर्गा” की आराधना करते हैं ,और “शप्तशती ” के बारहवे अध्याय में आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ,और अपने परिवार से युक्त भी हो जाते हैं |
भाव -जो कोई भी” माँ जगदम्बा “की शरण लेगा ,उसके ऊपर माँ की असीम कृपा होगी ,संसार की समस्त बाधा का निवारण करेंगीं – अतः सभी को “दुर्गा शप्तशती ” का पाठ तो करने ही चाहिए ,और इस ग्रन्थ को अपने कुलपुरोहित से जानना भी चाहिए….
दुर्गा सप्तशती के अलग-अलग प्रयोग…/ उपाय—-
दुर्गा सप्तशती से कामनापूर्ति—
– लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें।
– वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें।
बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें।
– सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें।
वस्त्र- लक्ष्मी संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें। यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर शाल लपेट लें। आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं।
हवन करने से
जायफल से कीर्ति और किशमिश से कार्य की सिद्धि होती है।
आंवले से सुख और केले से आभूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें।
खांड, घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश और कदंब से हवन करें।
गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
खीर से परिवार, वृद्धि, चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है।
आवंले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्ति होती है।
कमल से राज सम्मान और किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रमाण करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है।
*‘ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’*
शीघ्र विवाह के लिए।
*क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे।*
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए स्फटिक की माला पर।
*ओंम ऐं हृी क्लीं चामुण्डायै विच्चे।*
परेशानियों के अन्त के लिए।
क्लीं हृीं ऐं चामुण्डायै विच्च
*ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।*
*ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥*
*ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।*
*ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥*
तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर ‘पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ’ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें।
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*ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।’ इत्याद्यारभ्य ‘सावर्णिर्भविता मनुः’ इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये/करिष्यामि।
इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, (पुस्तक पूजा का मन्त्रः-
*“ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।”* *(वाराहीतन्त्र तथा चिदम्बरसंहिता))*।
योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं।
*‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’*
इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करें। यह “शापोद्धार मंत्र” कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है-
*‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’*
इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
*‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।’*
मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है-
*‘ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।'*
इस मन्त्र का आरंभ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अंतर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र का आरंभ में ही पाठ करना चाहिए। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥1॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥2॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥3॥
ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥4॥
ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥5॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥6॥
ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव॥7॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥8॥
ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥9॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥10॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥11॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥12॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥13॥
ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥14॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥15॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥16॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥17॥
ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी-
महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः॥18॥
इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः॥19॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः।
आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः॥20॥
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका बहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताए अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छ: अंगों सहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है।
कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- ये ही सप्तशती के छ: अंग माने गए हैं। इनके क्रम में भी मतभेद हैं। चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है, किन्तु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है।
जिस प्रकार सब मंत्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गला रूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलक रूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिए। यहाँ इसी क्रम का अनुसरण किया गया है।
जय जय माँ जगजननी
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दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति-
1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।
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*दुर्गा सप्तशती के लाभ–*
*वैदिक आहुति की सामग्री—*
प्रथम अध्याय-एक पान पर देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।
द्वितीय अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष
तृतीय अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद
चतुर्थ अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,
चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।
पंचम अध्ययाय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।
षष्टम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।
सप्तम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।
अष्टम अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।
नवम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।
दशम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।
एकादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।
द्वादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल
त्रयोदश अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।
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*“ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।”* *(वाराहीतन्त्र तथा चिदम्बरसंहिता))*।
योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं।
*‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’*
इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करें। यह “शापोद्धार मंत्र” कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है-
*‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’*
इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
*‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।’*
मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है-
*‘ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।'*
इस मन्त्र का आरंभ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अंतर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र का आरंभ में ही पाठ करना चाहिए। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥1॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥2॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥3॥
ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥4॥
ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥5॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥6॥
ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव॥7॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥8॥
ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥9॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥10॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥11॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥12॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥13॥
ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥14॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥15॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥16॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥17॥
ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी-
महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः॥18॥
इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः॥19॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः।
आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः॥20॥
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका बहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताए अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छ: अंगों सहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है।
कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- ये ही सप्तशती के छ: अंग माने गए हैं। इनके क्रम में भी मतभेद हैं। चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है, किन्तु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है।
जिस प्रकार सब मंत्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गला रूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलक रूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिए। यहाँ इसी क्रम का अनुसरण किया गया है।
जय जय माँ जगजननी
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दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति-
1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।
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*दुर्गा सप्तशती के लाभ–*
*वैदिक आहुति की सामग्री—*
प्रथम अध्याय-एक पान पर देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।
द्वितीय अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष
तृतीय अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद
चतुर्थ अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,
चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।
पंचम अध्ययाय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।
षष्टम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।
सप्तम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।
अष्टम अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।
नवम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।
दशम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।
एकादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।
द्वादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल
त्रयोदश अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।
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