* अमरनाथ की अमर कथा *
अमरनाथ की
अमर कथा शिव कहें सुनै थी पार्वती |
उत्तराखण्ड
में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
कैलाशी
अविनाशी काशी उत्तराखण्ड बनाई थी |
बैठ गुफा में
शिव जी ने गौरा को कथा सुनाई थी ||
अमृत वाणी
सुनी उमा नैनां निद्रा भर आई थी |
पूरी कथा एक
तोते के बच्चे ने सुन पाई थी ||
हुंकारा देता
तोता शिव कहें अर्थ सब समुझाई |
सुआ सुनै था
कथा वहीं पर सोती थी गौरा माई ||
पार ब्रह्म
का खेल हुआ औ उस तोते की बढ़ी रती |
उत्तराखण्ड
में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
हुई कथा
सम्पूरण शिव ने गौरा को बुलवाया था |
गिरजा कहे
नाथ जी मैंने कुछ भी न सुन पाया था ||
तब शिव जी ने
कहा कि मुझको हुंकारा किसने दीन्हा |
दो जनों के
बीच तीसरा क्यों करके वह आया था ||
बढ़ा क्रोध शिव शंकर को कर में त्रिशूल उठाया था |
उसी वक्त
तोते का बच्चा उड़ करके वह आया था ||
दौड़े शिव
उसके पीछे निकल गया वह सुमतमती |
उत्तराखण्ड
में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
तीन लोक में
उड़ा वह तोता मिला न कहीं ठिकाना था |
उड़ते –उड़ते
वह तोता अपने मन अति घबराना था ||
एक पतिव्रता
करे स्नान थी ,उसको उसने पहचाना था |
दौड़ के तोता
जाय के फिर उसके मुख में समाना था ||
वहाँ चले
क्या जोर किसी का क्यों कर उसको पाना था |
तब शिव जी ने
कहा कि तोता यह तो बड़ा सयाना था ||
हुये वही
शुकदेव व्यास के पुत्र बड़े ही यती सती |
उत्तराखण्ड
में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
अमरकथा का
बड़ा महात्तम जो कोई जन गावै है |
श्रवण करे सो
होय अमर वह फिर जग में नही आवै है ||
चारों वेद ,
पुराण अठारह ,छहों शास्त्र यह गावै है |
अमर कथा
शुकदेव व्यास जी अपने मुख से गावै है ||
ये तो पंडित
बड़े ही सयाने अमर कथा जो गावै है |
और दूसरा बोल
न इनके मन को नैक भावै है ||
जब शिव जी ने
कही कथा सुनकर नर पावै अमरगती |
उत्तराखण्ड
में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
अजब नगर यह
बसा जहाँ की झाँकी अब्बल खासी |
बहां जाकर
प्रगट भये है अमरनाथ औ अविनाशी ||
साल भरे में
मेला लागे श्रावण की पूरनमासी |
जो दर्शन को
वहाँ जायेगा जोगी जती और सन्यासी ||
वहाँ तलक तो वही
जायेगा ,जिसकी करनी है खासी |
देवीदास यूँ
कहें कि वह नर कभी न पावै चौरासी ||
पढ़े सुने नर
अमरकथा को भक्ति में नित बढ़ेरती |
उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
***जय जय
बाबा अमर नाथ ***
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