शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

*अमरनाथ की अमर कथा *

                 अमरनाथ की अमर कथा *

अमरनाथ की अमर कथा शिव कहें सुनै थी पार्वती |
उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
कैलाशी अविनाशी काशी उत्तराखण्ड बनाई थी |
बैठ गुफा में शिव जी ने गौरा को कथा सुनाई थी ||
अमृत वाणी सुनी उमा नैनां निद्रा भर आई थी |
पूरी कथा एक तोते के बच्चे ने सुन पाई थी ||
हुंकारा देता तोता शिव कहें अर्थ सब समुझाई |
सुआ सुनै था कथा वहीं पर सोती थी गौरा माई ||
पार ब्रह्म का खेल हुआ औ उस तोते की बढ़ी रती |
उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
हुई कथा सम्पूरण शिव ने गौरा को बुलवाया था |
गिरजा कहे नाथ जी मैंने कुछ भी न सुन पाया था ||
तब शिव जी ने कहा कि मुझको हुंकारा किसने दीन्हा |
दो जनों के बीच तीसरा क्यों करके वह आया था ||
बढ़ा  क्रोध शिव शंकर को कर में त्रिशूल उठाया था |
उसी वक्त तोते का बच्चा उड़ करके वह आया था ||
दौड़े शिव उसके पीछे निकल गया वह सुमतमती |
उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
तीन लोक में उड़ा वह तोता मिला न कहीं ठिकाना था |
उड़ते –उड़ते वह तोता अपने मन अति घबराना था ||
एक पतिव्रता करे स्नान थी ,उसको उसने पहचाना था |
दौड़ के तोता जाय के फिर उसके मुख में समाना था ||
वहाँ चले क्या जोर किसी का क्यों कर उसको पाना था |
तब शिव जी ने कहा कि तोता यह तो बड़ा सयाना था ||
हुये वही शुकदेव व्यास के पुत्र बड़े ही यती सती |
उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
अमरकथा का बड़ा महात्तम जो कोई जन गावै है |
श्रवण करे सो होय अमर वह फिर जग में नही आवै है ||
चारों वेद , पुराण अठारह ,छहों शास्त्र यह गावै है |
अमर कथा शुकदेव व्यास जी अपने मुख से गावै है ||
ये तो पंडित बड़े ही सयाने अमर कथा जो गावै है |
और दूसरा बोल न इनके मन को नैक भावै है ||
जब शिव जी ने कही कथा सुनकर नर पावै अमरगती |
उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||
अजब नगर यह बसा जहाँ की झाँकी अब्बल खासी |
बहां जाकर प्रगट भये है अमरनाथ औ अविनाशी ||
साल भरे में मेला लागे श्रावण की पूरनमासी |
जो दर्शन को वहाँ जायेगा जोगी जती और सन्यासी ||
वहाँ तलक तो वही जायेगा ,जिसकी करनी है खासी |
देवीदास यूँ कहें कि वह नर कभी न पावै चौरासी ||
पढ़े सुने नर अमरकथा को भक्ति में नित बढ़ेरती |
 उत्तराखण्ड में लगा के आसन जा बैठे कैलाशापती ||

***जय जय बाबा अमर नाथ *** 

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