कोर्ट-कचहरी के
चक्करों में कहीं आप अपना सुख, पैसा और मान तो नहीं गंवा रहे
आदि-अनादिकाल से
ही मनुष्य सुख और शांति के साथ जीवन जीना चाहता रहा है और उसके लिए पूरे प्रयास भी
करता रहता है। इस चाहत के बावजूद भी जीवन में कई बार न चाहते हुए भी ऐसी स्थितियां
निर्मित हो जाती हैं कि न चाहते हुए भी विवाद हो जाते हैं और कभी-कभी वह इतने
बढ़ते चले जाते हैं कि मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाता है। कोर्ट-कचहरी के इस
चक्कर में पड़कर आदमी अपना सुख-चैन,
पैसा, मान-सम्मान इत्यादि तक गंवा बैठता है। आखिर ऐसा क्यों होता है? ऐसे कौन-से कारण होते हैं जो ऐसी स्थितियां निर्मित कर देते हैं?
विवाद की स्थिति
पैदा करने में भाग्य के साथ वास्तु की भी अहम् भूमिका होती है। कुछ घरों में ऐसे
वास्तुदोष होते हैं जो वह निवास करने वालों में गलत विचार, गलत आदतें, लालच, क्रोध, दगाबाजी, इत्यादि पापकर्म के लिए प्रेरित करते हैं। यही
कारक आगे चलकर विवाद पैदा कर अदालती कार्यवाही का कारण बन जाते हैं।
मैं यहां पर कुछ
ऐसे वास्तुदोषों का उल्लेख कर रहा हूं जो उपरोक्त स्थितियों को निर्मित करने में
अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं -
1 यदि घर का
पूर्व और आग्नेय निचले हों और वायव्य तथा पश्चिम ऊंचे हों तो प्लाट के मालिक की
कईयों से दुश्मनी होती है। इस कारण कोर्ट-कचहरी होती है, जिससे उसे मानसिक व्यथाओं का सामना करना पड़ता है।
2 यदि घर के
आग्नेय की ओर ऊंचाई हो और भूमिगत पानी स्रोत, कुंआ, टंकी, बोरिंग, चेम्बर, नाली इत्यादि पूर्व और आग्नेय के बीच में या आग्नेय और दक्षिण के बीच में हो
तो शत्रु से परेशानी होती है और उनसे विवाद होते हैं जो अदालत तक जाते हैं।
3 जिस भवन के
आग्नेय में ऊंचाई और वायव्य में नीचाई हो तो वहां रहने वालों के विरोधियों से
विवाद के कारण मुकदमेबाजी चलती है।
4 घर का नैऋत्य
कोण निचला होने पर वहां शेड या कमरे आदि का निर्माण करने से आमदनी होने पर भी
प्लाट का मालिक सुखमय जीवन नहीं बिता पाता, उसके दुश्मनो की संख्या
बढ़ती है और उनसे विवाद चलते रहते हैं।
5 अगर घर का
वायव्य कोण निचला हो और वहां कमरा या शेड़ का निर्माण हो या पश्चिम और वायव्य के
बीच में या वायव्य और उत्तर के बीच में किए जाएं तो शत्रुता बढ़ती है जिस कारण
कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी काटने पड़ते हैं।
6 केवल घर के
आग्नेय कोण में बढ़ाव होता तो अदालती कार्यवाहियों के कारण परेशानी होती है।
7 यदि दक्षिण के
साथ मिलकर घर के आग्नेय कोण में बढ़ाव होता तो परिवारिक झगड़े, बीमारियां, मानसिक व्यथा, अशान्ति और धन नष्ट होगें
कई बार पारिवारिक झगड़े अदालत तक पहुंच जाते हैं।
8 अगर घर के
वायव्य में केवल कोने में बढ़ाव होता तो दुश्मनों की संख्या बढ़ जाएगी। दुश्मनों
से विवाद होने के कारण सुख का अभाव होता है और परिवार के सम्मान में कमी होती है।
9 घर की दक्षिण
दिशा स्थित द्वार यदि आग्नेय कोण को देखें तो उस घर में चोरी होने के सम्भावना
रहती है जिस कारण कोर्ट-कचहरी भी जाना पड़ता है।
10 जिस घर में
ईशान से नैऋत्य निम्न हो और वहां भूमिगत पानी का स्रोत कुंआ, टंकी, बोरिंग इत्यादि हो और घर के पानी की निकासी
ईशान से नैऋत्य की ओर हो तो उस घर में रहने वालो की अन्य लोगों से दुश्मनी बढ़ेगी
और जिद के कारण उन्हें अदालत के चक्कर काटने पडेंगे, जिससे उनका धन नष्ट होगा।
11 घर का केवल
उत्तर वायव्य कोण बढ़ा हो तो अदालती कार्यवाही, अग्निभय एवं चोरी की
सम्भावना बनी रहती है।
12 यदि घर का
वायव्य कोण ईशान से निम्न हो और साथ ही भूमिगत पानी स्रोत या गड्ढे भी हों तो
घरवाले अदालती कार्यवाही से जूझते रहेंगे।
13 जिन घरों में
पूजा घरों में साफ-सफाई नहीं रहती वहां अंधेरा रहता है या घर का कबाड़ पड़ा रहता
है उन घरों में रहने वालों को शत्रुओं से समस्याएं रहती हैं, इस कारण विवाद होते रहते हैं।
14 जिस घर में
स्टोर रूम या गोडाऊन अन्य कमरों की तुलना में बड़े रहते हैं, साथ ही वहां पर अंधेरा भी रहता हो तो वहां रहने वाले कुछ इस तरह के बेवकूफों
जैसे कार्य करते हैं कि उनकी लोगों के साथ शत्रुता हो जाती है जो विवाद का कारण
बनती है।
15 कई मकान बहुत
सुंदर होते हैं, किन्तु उनकी कम्पाउण्ड वाल, सिक्यूरिटी का कमरा या घर का कोई कोना टूटा-फूटा हो, रंग-रोगन निकला हुआ हो, किसी तरह खराब हालत में हो तो यह तय है कि ऐसे
घरों में रहने वालों को शत्रु परेशान करते हैं।
विवाद पैदा होते
हैं।
उपरोक्त वास्तुदोषों को दूर करके विवादों से और
कोर्ट-कचहरी के चक्कर से बचा जा सकता है।
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