14 और 15 अगस्त को है जन्माष्टमी,
लेकिन आप #15_को_ही_मनाएं, क्योंकि....
Krishna Janmashtami 2017
"15 अगस्त की कृष्ण जन्माष्टमी उदया तिथि में होने के कारण शास्त्र संवत है।"
हर बार की तरह इस बार भी Krishna Janmashtami 14 और 15 अगस्त को है, ऐसे में लोगों के मन में संशय बना हुआ है कि वे व्रत किस दिन रखें। लखनऊ, जानेमाने विद्वान ज्योतिषाचार्य विचारक #श्री के मुताबिक वैसे तो भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं इसलिए श्रद्धानुसार आप किसी भी दिन व्रत रखकर जन्माष्टमी मना सकते हैं, लेकिन यदि आप हिंदू पंचांग के अनुसार चलना चाहते हैं तो 15 अगस्त को मनाना ज्यादा बेहतर होगा।
दरअसल 15 अगस्त की कृष्ण जन्माष्टमी उदया तिथि में होने के कारण #शास्त्रों_के_अनुरूप है क्योंकि शास्त्रों में उदया तिथि को विशेष महत्व दिया गया है। हिंदू पंचांग भी इसी के अनुरूप बनाए जाते हैं। वैसे अष्टमी तिथि 14 अगस्त को शाम 7.46 बजे अष्टमी शुरू होगी और दूसरे दिन शाम 5.40 बजे तक रहेगी। ऐसे में लोगों के दिमाग में है कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि में ही कराया जाए तो बेहतर है क्योंकि 15 को 5.40 बजे के बाद नवमी तिथि लग जाएगी। ऐसे में कोई भ्रम न रखें क्योंकि नवमी तिथि होने के बावजूद अष्टमी तिथि का देर रात तक असर रहेगा।
जन्माष्टमी व्रत
'जन्माष्टमी व्रत' एवं 'जयन्ती व्रत' एक ही हैं या ये दो पृथक् व्रत हैं। कालनिर्णय [29] ने दोनों को पृथक् व्रत माना है, क्योंकि दो पृथक् नाम आये हैं, दोनों के निमित्त (अवसर) पृथक् हैं (प्रथम तो कृष्णपक्ष की अष्टमी है और दूसरी रोहिणी से संयुक्त कृष्णपक्ष की अष्टमी), दोनों की ही विशेषताएँ पृथक् हैं, क्योंकि जन्माष्टमी व्रत में शास्त्र में उपवास की व्यवस्था दी है और जयन्ती व्रत में उपवास, दान आदि की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जन्माष्टमी व्रत नित्य है (क्योंकि इसके न करने से केवल पाप लगने की बात कही गयी है) और जयन्ती व्रत नित्य एवं काम्य दोनों ही है, क्योंकि उसमें इसके न करने से न केवल पाप की व्यवस्था है प्रत्युत करने से फल की प्राप्ति की बात भी कही गयी है। एक ही श्लोक में दोनों के पृथक् उल्लेख भी हैं। हेमाद्रि, मदनरत्न, निर्णयसिन्धु आदि ने दोनों को भिन्न माना है। निर्णयसिन्धु [30] ने यह भी कहा है कि इस काल में लोग जन्माष्टमी व्रत करते हैं न कि जयन्ती व्रत। किन्तु जयन्तीनिर्णय [31] का कथन है कि लोग जयन्ती मनाते हैं न कि जन्माष्टमी। सम्भवत: यह भेद उत्तर एवं दक्षिण भारत का है।
वराह पुराण एवं हरिवंश में दो विरोधी बातें हैं। प्रथम के अनुसार कृष्ण का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी को हुआ था। हरिवंश के अनुसार कृष्ण जन्म के समय अभिजित नक्षत्र था और विजय मुहूर्त था। सम्भवत: इन उक्तियों में प्राचीन परम्पराओं की छाप है। मध्यकालिक निबन्धों में जन्माष्टमी व्रत के सम्पादन की तिथि एवं काल के विषय में भी कुछ विवेचन मिलता है [32]; कृत्यतत्त्व [33]; तिथितत्व,[34]। समयमयूख [35] एवं निर्णय सिंधु [36] में इस विषय में निष्कर्ष दिये गये हैं।
बंसी बजाते हुए कृष्ण
जन्माष्टमी मनाने का समय निर्धारण
श्रीकृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार की है–
बिना रोहिणी नक्षत्र की
तथा
रोहिणी नक्षत्र वाली।
निर्णयामृत [37] में 18 प्रकार हैं, जिनमें 8 शुद्धा तिथियाँ, 8 विद्धा तथा अन्य 2 हैं (जिनमें एक अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र वाली तथा दूसरी रोहिणी से युक्त नवमी, बुध या मंगल को)। *तिथितत्त्व [38] से संक्षिप्त निर्णय इस प्रकार हैं– 'यदि 'जयन्ती' (रोहिणीयुक्त अष्टमी) एक दिन वाली है, तो उसी दिन उपवास करना चाहिए, यदि जयन्ती न हो तो रोहिणी युक्त अष्टमी को होना चाहिए, यदि रोहिणी से युक्त दो दिन हों तो उपवास दूसरे दिन ही किया जाता है, यदि रोहिणी नक्षत्र न हो तो उपवास अर्धरात्रि में अवस्थित अष्टमी को होना चाहिए या #यदि_अष्टमी_अर्धरात्रि_में_दो_दिन_वाली_हो या यदि वह अर्धरात्रि में न हो तो उपवास दूसरे दिन किया जाना चाहिए। यदि जयन्ती बुध या मंगल को हो तो उपवास महापुण्यकारी होता है और करोड़ों व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है जो व्यक्ति बुध या मंगल से युक्त जयन्ती पर उपवास करता है, वह जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है।'
👉 कृष्ण जन्माष्टमी का पूजा मुहूर्त और मान्यताएं
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का दूध, जल और घी से अभिषेक किया जाता है, भगवान को भोग चढ़ाया जाता है
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण को धरती पर भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। हिन्दू कैलेंकर के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण का जन्म श्रावण मास के आठवें दिन यानि #अष्टमी_एवं_रोहिणी_नक्षत्र पर मध्यरात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण के जन्म और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने से लेकर कई अन्य कथाएं हैं जो बेहद ही प्रसिद्ध हैं और जिन्हें आज भी पंसद किया जाता है।
👉 निर्जल उपवास रखते हैं भक्त
कृष्ण जन्माष्टमी के पूरा दिन भक्त निर्जल उपवास रखते हैं.। ऐसे में जरूरी है कि आप कुछ खास #बातों_का_ध्यान रखें.। अपनी सेहत के लिए जरूरी है कि एक दिन पहले खूब लिक्विड लें और जन्माष्टमी से पिछली रात को हल्का भोजन करें। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भक्त पूरी विधि-विधान के साथ उपवास करते हैं। वे जन्माष्टमी से एक दिन पहले सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन सभी भक्त पूरे दिन का उपवास करने का संकल्प लेते हैं और अगले दिन अष्टमी तिथि खत्म होने के बाद अपना व्रत तोड़ते हैं। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का दूध, जल और घी से अभिषेक किया जाता है। भगवान को भोग चढ़ाया जाता है। व्रत वाले दिन भक्त अन्न का सेवन नहीं करते इसकी जगह फल और पानी लेते हैं जिसे फलाहार कहा जाता है
👉 पूजा के दौरान
जल, फल और फूल वगैरह लेकर इस मंत्र का जाप शुभ माना जाता है-
"ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये।"
👉 व्रत-पूजन से जुड़ी मान्यताएं
- जन्माष्टमी के दिन अगर आप व्रत रखने वाले हैं या नहीं भी रखने वाले, तो सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। मन में ईश्वर के नाम का जाप करें।
- व्रत रखने के बाद पूरे दिन ईश्वर का नाम लेते हुए निर्जल व्रत का पालन करें। रात के समय सूर्य, सोम, यम, काल, ब्रह्मादि को प्रणाम करते हुए पूजा को शुरू करने की मान्यता है।
- जन्माष्टमी के दिन पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को भी स्थापित किया जाता है। इस दिन उनके बाल रूप के चित्र को स्थापित करने की मान्यता है।
- जन्माष्टमी के दिन बालगोपाल को झूला झुलाया जाता है।
- मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन बाल श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती देवकी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करना शुभ होता है।
- जन्माष्टमी के दिन सभी मंदिर रात बारह बजे तक खुले होते हैं। बारह बजे के बाद कृष्ण जन्म होता है और इसी के साथ सब भक्त चरणामृत लेकर अपना व्रत खोलते हैं।
👉 जन्माष्टमी तिथि और #शुभ_मुहूर्त
स्मार्त संप्रदाय के अनुसार जन्माष्टमी 14 अगस्त को मनाई जाएगी तो वहीं वैष्णव संप्रदाय 15 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार मनाएगा।
जन्माष्टमी 2017 : 14 अगस्त
निशिथ पूजा: 12:03 से 12:47
निशिथ चरण के मध्यरात्रि के क्षण है: 12:25 बजे
15 अगस्त पारण: शाम 5:39 के बाद
अष्टमी तिथि समाप्त: 5:39
👉 भगवान को चढ़ाया जाने वाला छप्पन भोग
जन्माष्टमी के मौके पर मंदिरों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। सूर्यास्त के बाद मंदिरों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। वहीं जिन लोगों का व्रत होता है वह मध्यरात्रि के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं। जन्माष्टमी के अगले दिन को 'नंद उत्सव' के रूप में मनाया जाता है, इस दिन भगवान को 56 तरह के खाद्य पदार्थ चढ़ाएं जाते हैं जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। भगवान को भोग लगने के बाद इसे सभी लोगों में बांटा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि छप्पन भोग में वही व्यंजन होते हैं जो भगवान #श्रीकृष्ण_को_पंसद थे।
आमतौर पर इसमें अनाज, फल, ड्राई फ्रूट्स, मिठाई, पेय पदार्थ, नमकीन और अचार जैसी चीजें शामिल होती हैं। इसमें भी भिन्नता होती हैं कई लोग 16 प्रकार की नमकीन, 20 प्रकार की मिठाईयां और 20 प्रकार ड्राई फ्रूट्स चढ़ाते हैं। सामन्य तौर पर छप्पन भोग में माखन मिश्री, खीर और रसगुल्ला, जलेबी, जीरा लड्डू, रबड़ी, मठरी, मालपुआ, मोहनभोग, चटनी, मुरब्बा, साग, दही, चावल, दाल, कढ़ी, घेवर, चिला, पापड़, मूंग दाल का हलवा, पकोड़ा, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, लौकी की सब्जी, पूरी, बादाम का दूध, टिक्की, काजू, बादाम, पिस्ता और इलाइची होते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:
हार्दिक शुभकामनाये
लेकिन आप #15_को_ही_मनाएं, क्योंकि....
Krishna Janmashtami 2017
"15 अगस्त की कृष्ण जन्माष्टमी उदया तिथि में होने के कारण शास्त्र संवत है।"
हर बार की तरह इस बार भी Krishna Janmashtami 14 और 15 अगस्त को है, ऐसे में लोगों के मन में संशय बना हुआ है कि वे व्रत किस दिन रखें। लखनऊ, जानेमाने विद्वान ज्योतिषाचार्य विचारक #श्री के मुताबिक वैसे तो भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं इसलिए श्रद्धानुसार आप किसी भी दिन व्रत रखकर जन्माष्टमी मना सकते हैं, लेकिन यदि आप हिंदू पंचांग के अनुसार चलना चाहते हैं तो 15 अगस्त को मनाना ज्यादा बेहतर होगा।
दरअसल 15 अगस्त की कृष्ण जन्माष्टमी उदया तिथि में होने के कारण #शास्त्रों_के_अनुरूप है क्योंकि शास्त्रों में उदया तिथि को विशेष महत्व दिया गया है। हिंदू पंचांग भी इसी के अनुरूप बनाए जाते हैं। वैसे अष्टमी तिथि 14 अगस्त को शाम 7.46 बजे अष्टमी शुरू होगी और दूसरे दिन शाम 5.40 बजे तक रहेगी। ऐसे में लोगों के दिमाग में है कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि में ही कराया जाए तो बेहतर है क्योंकि 15 को 5.40 बजे के बाद नवमी तिथि लग जाएगी। ऐसे में कोई भ्रम न रखें क्योंकि नवमी तिथि होने के बावजूद अष्टमी तिथि का देर रात तक असर रहेगा।
जन्माष्टमी व्रत
'जन्माष्टमी व्रत' एवं 'जयन्ती व्रत' एक ही हैं या ये दो पृथक् व्रत हैं। कालनिर्णय [29] ने दोनों को पृथक् व्रत माना है, क्योंकि दो पृथक् नाम आये हैं, दोनों के निमित्त (अवसर) पृथक् हैं (प्रथम तो कृष्णपक्ष की अष्टमी है और दूसरी रोहिणी से संयुक्त कृष्णपक्ष की अष्टमी), दोनों की ही विशेषताएँ पृथक् हैं, क्योंकि जन्माष्टमी व्रत में शास्त्र में उपवास की व्यवस्था दी है और जयन्ती व्रत में उपवास, दान आदि की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जन्माष्टमी व्रत नित्य है (क्योंकि इसके न करने से केवल पाप लगने की बात कही गयी है) और जयन्ती व्रत नित्य एवं काम्य दोनों ही है, क्योंकि उसमें इसके न करने से न केवल पाप की व्यवस्था है प्रत्युत करने से फल की प्राप्ति की बात भी कही गयी है। एक ही श्लोक में दोनों के पृथक् उल्लेख भी हैं। हेमाद्रि, मदनरत्न, निर्णयसिन्धु आदि ने दोनों को भिन्न माना है। निर्णयसिन्धु [30] ने यह भी कहा है कि इस काल में लोग जन्माष्टमी व्रत करते हैं न कि जयन्ती व्रत। किन्तु जयन्तीनिर्णय [31] का कथन है कि लोग जयन्ती मनाते हैं न कि जन्माष्टमी। सम्भवत: यह भेद उत्तर एवं दक्षिण भारत का है।
वराह पुराण एवं हरिवंश में दो विरोधी बातें हैं। प्रथम के अनुसार कृष्ण का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी को हुआ था। हरिवंश के अनुसार कृष्ण जन्म के समय अभिजित नक्षत्र था और विजय मुहूर्त था। सम्भवत: इन उक्तियों में प्राचीन परम्पराओं की छाप है। मध्यकालिक निबन्धों में जन्माष्टमी व्रत के सम्पादन की तिथि एवं काल के विषय में भी कुछ विवेचन मिलता है [32]; कृत्यतत्त्व [33]; तिथितत्व,[34]। समयमयूख [35] एवं निर्णय सिंधु [36] में इस विषय में निष्कर्ष दिये गये हैं।
बंसी बजाते हुए कृष्ण
जन्माष्टमी मनाने का समय निर्धारण
श्रीकृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार की है–
बिना रोहिणी नक्षत्र की
तथा
रोहिणी नक्षत्र वाली।
निर्णयामृत [37] में 18 प्रकार हैं, जिनमें 8 शुद्धा तिथियाँ, 8 विद्धा तथा अन्य 2 हैं (जिनमें एक अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र वाली तथा दूसरी रोहिणी से युक्त नवमी, बुध या मंगल को)। *तिथितत्त्व [38] से संक्षिप्त निर्णय इस प्रकार हैं– 'यदि 'जयन्ती' (रोहिणीयुक्त अष्टमी) एक दिन वाली है, तो उसी दिन उपवास करना चाहिए, यदि जयन्ती न हो तो रोहिणी युक्त अष्टमी को होना चाहिए, यदि रोहिणी से युक्त दो दिन हों तो उपवास दूसरे दिन ही किया जाता है, यदि रोहिणी नक्षत्र न हो तो उपवास अर्धरात्रि में अवस्थित अष्टमी को होना चाहिए या #यदि_अष्टमी_अर्धरात्रि_में_दो_दिन_वाली_हो या यदि वह अर्धरात्रि में न हो तो उपवास दूसरे दिन किया जाना चाहिए। यदि जयन्ती बुध या मंगल को हो तो उपवास महापुण्यकारी होता है और करोड़ों व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है जो व्यक्ति बुध या मंगल से युक्त जयन्ती पर उपवास करता है, वह जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है।'
👉 कृष्ण जन्माष्टमी का पूजा मुहूर्त और मान्यताएं
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का दूध, जल और घी से अभिषेक किया जाता है, भगवान को भोग चढ़ाया जाता है
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण को धरती पर भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। हिन्दू कैलेंकर के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण का जन्म श्रावण मास के आठवें दिन यानि #अष्टमी_एवं_रोहिणी_नक्षत्र पर मध्यरात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण के जन्म और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने से लेकर कई अन्य कथाएं हैं जो बेहद ही प्रसिद्ध हैं और जिन्हें आज भी पंसद किया जाता है।
👉 निर्जल उपवास रखते हैं भक्त
कृष्ण जन्माष्टमी के पूरा दिन भक्त निर्जल उपवास रखते हैं.। ऐसे में जरूरी है कि आप कुछ खास #बातों_का_ध्यान रखें.। अपनी सेहत के लिए जरूरी है कि एक दिन पहले खूब लिक्विड लें और जन्माष्टमी से पिछली रात को हल्का भोजन करें। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भक्त पूरी विधि-विधान के साथ उपवास करते हैं। वे जन्माष्टमी से एक दिन पहले सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन सभी भक्त पूरे दिन का उपवास करने का संकल्प लेते हैं और अगले दिन अष्टमी तिथि खत्म होने के बाद अपना व्रत तोड़ते हैं। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का दूध, जल और घी से अभिषेक किया जाता है। भगवान को भोग चढ़ाया जाता है। व्रत वाले दिन भक्त अन्न का सेवन नहीं करते इसकी जगह फल और पानी लेते हैं जिसे फलाहार कहा जाता है
👉 पूजा के दौरान
जल, फल और फूल वगैरह लेकर इस मंत्र का जाप शुभ माना जाता है-
"ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये।"
👉 व्रत-पूजन से जुड़ी मान्यताएं
- जन्माष्टमी के दिन अगर आप व्रत रखने वाले हैं या नहीं भी रखने वाले, तो सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। मन में ईश्वर के नाम का जाप करें।
- व्रत रखने के बाद पूरे दिन ईश्वर का नाम लेते हुए निर्जल व्रत का पालन करें। रात के समय सूर्य, सोम, यम, काल, ब्रह्मादि को प्रणाम करते हुए पूजा को शुरू करने की मान्यता है।
- जन्माष्टमी के दिन पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को भी स्थापित किया जाता है। इस दिन उनके बाल रूप के चित्र को स्थापित करने की मान्यता है।
- जन्माष्टमी के दिन बालगोपाल को झूला झुलाया जाता है।
- मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन बाल श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती देवकी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करना शुभ होता है।
- जन्माष्टमी के दिन सभी मंदिर रात बारह बजे तक खुले होते हैं। बारह बजे के बाद कृष्ण जन्म होता है और इसी के साथ सब भक्त चरणामृत लेकर अपना व्रत खोलते हैं।
👉 जन्माष्टमी तिथि और #शुभ_मुहूर्त
स्मार्त संप्रदाय के अनुसार जन्माष्टमी 14 अगस्त को मनाई जाएगी तो वहीं वैष्णव संप्रदाय 15 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार मनाएगा।
जन्माष्टमी 2017 : 14 अगस्त
निशिथ पूजा: 12:03 से 12:47
निशिथ चरण के मध्यरात्रि के क्षण है: 12:25 बजे
15 अगस्त पारण: शाम 5:39 के बाद
अष्टमी तिथि समाप्त: 5:39
👉 भगवान को चढ़ाया जाने वाला छप्पन भोग
जन्माष्टमी के मौके पर मंदिरों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। सूर्यास्त के बाद मंदिरों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। वहीं जिन लोगों का व्रत होता है वह मध्यरात्रि के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं। जन्माष्टमी के अगले दिन को 'नंद उत्सव' के रूप में मनाया जाता है, इस दिन भगवान को 56 तरह के खाद्य पदार्थ चढ़ाएं जाते हैं जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। भगवान को भोग लगने के बाद इसे सभी लोगों में बांटा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि छप्पन भोग में वही व्यंजन होते हैं जो भगवान #श्रीकृष्ण_को_पंसद थे।
आमतौर पर इसमें अनाज, फल, ड्राई फ्रूट्स, मिठाई, पेय पदार्थ, नमकीन और अचार जैसी चीजें शामिल होती हैं। इसमें भी भिन्नता होती हैं कई लोग 16 प्रकार की नमकीन, 20 प्रकार की मिठाईयां और 20 प्रकार ड्राई फ्रूट्स चढ़ाते हैं। सामन्य तौर पर छप्पन भोग में माखन मिश्री, खीर और रसगुल्ला, जलेबी, जीरा लड्डू, रबड़ी, मठरी, मालपुआ, मोहनभोग, चटनी, मुरब्बा, साग, दही, चावल, दाल, कढ़ी, घेवर, चिला, पापड़, मूंग दाल का हलवा, पकोड़ा, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, लौकी की सब्जी, पूरी, बादाम का दूध, टिक्की, काजू, बादाम, पिस्ता और इलाइची होते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:
हार्दिक शुभकामनाये
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