शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

अपने कार्य-क्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष धारण


आप अपने कार्य-क्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष धारण का सकते हैं

कुछ लोगों के पास जन्म कुंडली इत्यादि की जानकारी नहीं होती वे लोग अपने कार्यक्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष का लाभ उठा सकते हैं । कार्य की प्रकृति के अनुरूप रुद्राक्ष-धारण करना कैरियर के सर्वांगीण विकास हेतु शुभ एवं फलदायी होता है। किस कार्य क्षेत्र के लिए कौन सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसका एक संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।



नेता-मंत्री-विधायक सांसदों के लिए - 1 और १४ मुखी।
प्रशासनिक अधिकारियों के लिए - 1 और १४ मुखी।
जज एवं न्यायाधीशों के लिए - २ और १४ मुखी।
वकील के लिए - ४, ६ और १३ मुखी।
बैंक मैनेजर के लिए - ११ और १३ मुखी।
बैंक में कार्यरत कर्मचारियों के लिए - ४ और ११ मुखी।
चार्टर्ड एकाउन्टेंट एवं कंपनी सेक्रेटरी के लिए - ४, ६, ८ और १२ मुखी।
एकाउन्टेंट एवं खाता-बही का कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए - ४ और १२ मुखी।
पुलिस अधिकारी के लिए - ९ और १३ मुखी।
पुलिस/मिलिट्री सेवा में काम करने वालों के लिए - ४ और ९ मुखी।
डॉक्टर एवं वैद्य के लिए - १, ७, ८ और ११ मुखी।
फिजीशियन (डॉक्टर) के लिए - १० और ११ मुखी।
सर्जन (डॉक्टर) के लिए - १०, १२ और १४ मुखी।
नर्स-केमिस्ट-कंपाउण्डर के लिए - ३ और ४ मुखी।
दवा-विक्रेता या मेडिकल एजेंट के लिए - १, ७ और १० मुखी।
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के लिए - ३ और १० मुखी।
मेकैनिकल इंजीनियर के लिए - १० और ११ मुखी।
सिविल इंजीनियर के लिए - ८ और १४ मुखी।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के लिए - ७ और ११ मुखी।
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए - १४ मुखी और गौरी-शंकर।
कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर के लिए - ९ और १२ मुखी।
पायलट और वायुसेना अधिकारी के लिए - १० और ११ मुखी।
जलयान चालक के लिए - ८ और १२ मुखी।
रेल-बस-कार चालक के लिए - ७ और १० मुखी।
प्रोफेसर एवं अध्यापक के लिए - ४, ६ और १४ मुखी।
गणितज्ञ या गणित के प्रोफेसर के लिए - ३, ४, ७ और ११ मुखी।
इतिहास के प्रोफेसर के लिए - ४, ११ और ७ या १४ मुखी।
भूगोल के प्रोफेसर के लिए - ३, ४ और ११ मुखी।
क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टेनोग्रॉफर के लिए - १, ४, ८ और ११ मुखी।
ठेकेदार के लिए - ११, १३ और १४ मुखी।
प्रॉपर्टी डीलर के लिए - ३, ४, १० और १४ मुखी।
दुकानदार के लिए - १०, १३ और १४ मुखी।
मार्केटिंग एवं फायनान्स व्यवसायिओं के लिए - ९, १२ और १४ मुखी।
उद्योगपति के लिए - १२ और १४ मुखी।
संगीतकारों-कवियों के लिए - ९ और १३ मुखी।
लेखक या प्रकाशक के लिए - १, ४, ८ और ११ मुखी।
पुस्तक व्यवसाय से संबंधित एजेंट के लिए - १, ४ और ९ मुखी।
दार्शनिक और विचारक के लिए - ७, ११ और १४ मुखी।
होटल मालिक के लिए - १, १३ और १४ मुखी।
रेस्टोरेंट मालिक के लिए - २, ४, ६ और ११ मुखी।
सिनेमाघर-थियेटर के मालिक या फिल्म-डिस्ट्रीब्यूटर के लिए - १, ४, ६ और ११ मुखी।
सोडा वाटर व्यवसाय के लिए - २, ४ और १२ मुखी।
फैंसी स्टोर, सौन्दर्य-प्रसाधन सामग्री के विक्रेताओं के लिए - ४, ६ और ११ मुखी रुद्राक्ष।
कपड़ा व्यापारी के लिए - २ और ४ मुखी।
बिजली की दुकान-विक्रेता के लिए - १, ३, ९ और ११ मुखी।
रेडियो दुकान-विक्रेता के लिए - १, ९ और ११ मुखी।
लकडी+ या फर्नीचर विक्रेता के लिए - १, ४, ६ और ११ मुखी।
ज्योतिषी के लिए - १, ४, ११ और १४ मुखी रुद्राक्ष ।
पुरोहित के लिए - १, ९ और ११ मुखी।
ज्योतिष तथा र्धामिक कृत्यों से संबंधित व्यवसाय के लिए - १, ४ और ११ मुखी।
जासूस या डिटेक्टिव एंजेसी के लिए - ३, ४, ९, ११ और १४ मुखी।
जीवन में सफलता के लिए - १, ११ और १४ मुखी।
जीवन में उच्चतम सफलता के लिए - १, ११, १४ और २१ मुखी।
विषेष : इनके साथ-साथ ५ मुखी रुद्राक्ष भी धारण किया जाना चाहिए।

जय हो बरसाने वाली की

जनम जनम के भाग्य जगा दे, इक राधा का नाम॥
राधा के बिना श्याम आधा, कहते सब राधेश्याम
तकदीर से मिलती है राधे तेरी चोखट वो हमारी यूँ ही बनाये रखना
कर लो भजन राधा रानी का, भरोसा नही है जिंदगानी का-
!! जय श्री राधे !!

बरसाने की चौखट पे हर मन्नत पूरी होती है
देती है सबको वो जितना जिसकी जैसी नियत होती है ...
............: !! राधे-राधे !!
आधी तो गुज़र गयी, आधी और गुज़र जायेगी कमाने में !
कुछ नहीं मिलेगा तुमको चाहे कितना भी घूम लो ज़माने में !
बीमार तन और अशांत मन कब तक लेकर भटकोगे तुम,
मिल जाएगा सब कुछ तुमको एक बार तो आओ
हमारे बरसाने में !..
!! जय हो बरसाने वाली की !!💓💓💓💓💓💓💓💓💓
💓💓💓💓💓💓💓💓💓
आओ मेरी सखी मुझे मेहँदी लगा दो
मेहँदी लगा दो मुझे ऐसे सजा दो
मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो_
सत्संग में मेरी बात चलाई
सतगुरु ने मेरी कीनी रे सगाई
उनको बुलाके हथलेवा तो करा दो
मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो
ऐसी पहनू चूड़ी जो कभी ना टूटे
ऐसा चुनु दूल्हा जो कबहू ना छुटे
अटल सुहाग की बिंदिया लगा दो
मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो
ऐसी ओढूँ चुनरी जी रंग नहीं छुटे
प्रीत का धागा कबहू नहीं टूटे
आज मेरी मोतियों से माँग भरा दो
मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो
भक्ति का सुरमा मै आँख में लगाऊगी
दुनिया से नाता तोड़ उन्ही की हो जाऊँगी
सतगुरु को बुलाके फेरे भी डलवा दो
मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो
बांध के घुँघर में उनको रिझाऊँगी
लेके एकतारा में श्याम श्याम गाऊँगी
सतगुरु को बुला के डोली तो सजा दो
सखियों को बुला के विदा तो करा दो
मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो
!! जय श्री राधे कृष्णा !!
जय हो बरसाने वाली की

।। कृपा ही कृपा ।।

।। कृपा ही कृपा ।।
एक कथा है - किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में रखवाया- सन्तों के पीने के लिए!
एक व्यक्ति ने देखा ।वह सोचने लगा -'यह घड़ा कितना भाग्यशाली है कि इसमें गंगाजल भरा गया और अब ये सन्तों के काम आयेगा।'
घड़ा बोल पड़ा-'मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा था,किसी काम का नहीं था ।कभी नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है ।फिर एक कुम्हार आया।उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और गधे पर लादकर अपने घर ले गया और वहाँ ले जाकर हमको उसने रौंदा।फिर पानी डालकर गूॅथा और चाकपर चढ़ाकर घुमाया,फिर गला काटा और फिर थापी मार-मारकर बराबर किया ।उसके बाद अबे,आग में जलने को डाल दिया और जब तैयार होकर निकलता तो बाजार में भेज दिया ।वहाँ भी लोग ठोंक-ठोंककर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं, और कीमत लगायी-10 20 रुपये!
हमको तो इन सबमें भगवान् का अन्याय ही पड़ता था,कृपा थोड़े ही मालुम पड़ती थी!
किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया, तब मुझे मालूम पड़ा कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी भगवान् की कृपा थी, उसका वह गूॅथना भी भगवान् की कृपा थी, आग में जलाना भी भगवान् की कृपा थी और बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भगवान् की कृपा ही थी।
अब मालुम पड़ा कि सब भगवान् की कृपा ही कृपा थी!
तो असल में आप ईश्वर की कृपा पर विश्वास करेंगे, तो आप जहाँ भी देखेंगे वहाँ ही आपको "कृपा" मालूम पड़ेगी! बस, कृपा-ही-कृपा,कृपा-ही-कृपा!
" प्रभु मूर्ति कृपा मयी है "
प्रभु के पास कृपा के सिवाय और कोई पूॅजी है ही नहीं ।
केवल कृपा है!!!!कृपा है!!!!कृपा है!!

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 भारत सदियों से देवों और संतों की भूमि मानी जाती है। इस देश में समय-समय पर कई संतों ने ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। शि‍रडी के साईं बाबा भी अवतारी पुरुष के रूप में पूजे जाते हैं।
शिरडी के साईं बाबा की चमत्कारी शक्तियों के बारे में बहुत-सी कथाएं हैं। साईं बाबा के पूजन के लिए गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता हैं।
साईं व्रत का विधान :
साईं व्रत कोई भी कर सकता है। साईं बाबा जात-पांत या और कोई भेदभाव नहीं मानते थे। उनका कहना था, 'सबका मालिक एक है'। यह व्रत किसी भी गुरुवार को साईं बाबा का नाम लेकर शुरू किया जा सकता। सुबह या शाम को साईं बाबा की तस्वीर या मूर्ति की पूजा की जाती है। किसी आसन पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर साईं बाबा की तस्वीर रखें। पूजा के लिए पीले फूल या हार का प्रयोग करें। धूप-दीप जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिए। पूजा के बाद प्रसाद बांटना चाहिए। प्रसाद के रूप में फल या मिठाई बांटी जा सकती है।
शिरडी के साईं बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन कराना चाहिए और दान करना चाहिए। इस तरह इस व्रत का समापन होना चाहिए।

रुद्राभिषेक : रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक




रुद्राभिषेक : रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक


शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।

शिव को ही रुद्र कहा जाता है

क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।



रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि-सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:अर्थात् :-

सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।

हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है।



साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं।

किसी खास मनोरथ कीपूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है।

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं-

• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।

• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।

• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।

• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।

• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।

• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।

• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।

• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।

• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।

• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।

• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।

• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।

• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।

• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।

• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।

• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।

• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है।

परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। 


विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत सेभी अभिषेक किया जाता है।

तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।


इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत हीउत्तम फल देता है।

किन्तु यदि पारद के शिवलिंग काअभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है।

रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है।

वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है।

पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है।

वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था।

जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।

भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।


रुद्राभिषेक करने की तिथियांकृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।

किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।

कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।

कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।

अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।

कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं।

अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होती है जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।

कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं।

इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।

कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं।

इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।

कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं।

इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।

ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।


वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।

अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं।

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है।

संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है।
 

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

वैवाहिक जीवन में ग्रहो का प्रभाव :::::



वैवाहिक जीवन में ग्रहो का प्रभाव :::::




जब एक स्त्री और पुरूष वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हें तब उनके कुछ सपने और ख्वाब होते हैं। कुण्डली में मौजूद ग्रह स्थिति कभी कभी ऐसी चाल चल जाते हैं कि पारिवारिक जीवन की सुख शांति खो जाती है।

पति पत्नी समझ भी नही पाते हैं कि उनके बीच कलह का कारण क्या है और ख्वाब टूट कर बिखरने लगते हैं।

वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुख पर गहों का काफी प्रभाव होता है।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है। इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है। इसके अलावे भी ग्रहों के कुछ ऐसे योग हैं जो गृहस्थ जीवन में बाधा डालते हैं।

ज्योतिषशास्त्र कहता है जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है। इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं। जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है। हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले। इसी प्रकार सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है।

जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है। ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है। ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कमज़ोर ग्रह स्थिति होने पर शुक्र की महादशा के दौरान पति पत्नी के बीच सामंजस्य का अभाव रहता है। केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है। इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है। शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं।
सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है। इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है अत: जिनकी कुण्डली में इस तरह का योग है उन्हें एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और समर्पण की भावना रखनी चाहिए। सप्तम भाव अथवा लग्न स्थान में एक से अधिक शुभ ग्रह हों या फिर इन भावों पर दो से अधिक शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह जीवनसाथी को पीड़ा देता है जिसके कारण वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है।

सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है। चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है। कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है।

अनजाने पाप-कर्म का फल अब किस के खाते में जायेगा ।

पाप-कर्म का फल किसके खाते में ? - अनजाने कर्म का फल -
                                    Who will bear the PUNISHMENT FOR A SIN :
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था । राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था । उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला । जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पक रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।

किसी को कुछ पता नहीं चला । फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ । ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस, जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ?? जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर, उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर, उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
बस, इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....

बुधवार, 20 जुलाई 2016

मां भगवतीके तीनों स्वरूप







नवरात्रिकी शुभ बेलापर मां भगवतीके तीनों स्वरूप - महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वतीको मेरा नमन है ! 
महाकाली 
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।
जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा- इन नामोंसे प्रसिद्ध जगदंबे। आपको मेरा नमस्कार है।
****
महालक्ष्मी
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते |
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते || ||
हे महामाया ! हे श्रीपीठकी मुख्य अधिष्ठात्री ! देवोंद्वारा पूजित, शंख चक्र गदा हस्तमें धारणकी हुई हे महालक्ष्मी, तुझे नमस्कार है !
******
महासरस्वती
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं |
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌ ||
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌ |
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्मके विषयमें किए गए विचार एवं चिंतनके सार रूप परम उत्कर्षको धारण करनेवाली, सभी भयोंसे भयदान देने वाली, अज्ञानके अंधेरेको मिटानेवाली, हाथोंमें वीणा, पुस्तक और स्फटिककी माला धारण करनेवाली और पद्मासनपर विराजमान्बुद्धि प्रदान करनेवाली, सर्वोच्च ऐश्वर्यसे अलंकृत, भगवती शारदाकी (सरस्वती देवी) मैं वंदना करता हूं

=========गुप्त नवरात्रि आज से, इन 9 दिनों में मिलती हैं गुप्तसिद्धिया
हिंदू धर्म के अनुसार, एक साल में चार नवरात्रि होती है, लेकिन आम लोग केवल दो नवरात्रि (चैत्र व शारदीय नवरात्रि) के बारे में ही जानते हैं। इनके अलावा आषाढ़ तथा माघ मास में भी नवरात्रि का पर्व आता है, जिसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इस बार आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा (5 जुलाई, मंगलवार) से होगा, जो आषाढ़ शुक्ल नवमी (13 जुलाई, बुधवार) को समाप्त होगी।
क्यों विशेष है ये नवरात्रि?
आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है। यह समय शाक्त (महाकाली की पूजा करने वाले) एवं शैव ( भगवान शिव की पूजा करने वाले) धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है। इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है।
इस गुप्त नवरात्रि में संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना की जाती है। ऐसी साधनाएं शाक्त मतानुसार शीघ्र ही सफल होती हैं। दक्षिणी साधना, योगिनी साधना, भैरवी साधना के साथ पंच मकार (मद्य (शराब), मछली, मुद्रा, मैथुन, मांस) की साधना भी इसी नवरात्रि में की जाती है।
साल में कब-कब आती है नवरात्रि, जानिए
हिंदू धर्म के अनुसार, एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।
आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती। इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि मंव विशेष साधना करते हैं और चमत्कारी शक्तियां प्राप्त करते हैं।