क्या संस्कृत भाषा से ही बनी हैं सभी यूरोपीय भाषाएं?
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1. संस्कृत भाषा
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दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक मानी जाने वाली संस्कृत भाषा की जड़ें केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं, अन्य देशों में भी हैं। जहां तक समय की बात करें तो ऐसा माना जाता है कि संस्कृत भाषा का आविष्कार आज से कम से कम पांच हजार वर्ष पूर्व किया गया होगा।
2. संस्कृत की शाखाएं
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लेकिन इसे महज़ एक भाषा समझने की भूल ना करें। संस्कृत भाषा एक ऐसे विशाल पेड़ की जड़ है, जिसने अपने भीतर से ढेर सारी शाखाओं को जन्म दिया है तथा उस शाखाओं ने आगे बढ़कर इस पेड़ को उपयोगी बनाया है।
3. भारतीय-यूरोपीय भाषाएं
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लेकिन वर्षों से इस बात पर बहस चली आ रही है कि क्या सच में संस्कृत ही सभी भाषाओं की ‘मां’ कहला सकती है। खैर सभी तो नहीं, लेकिन जितनी भी भाषाओं का सिद्धांत भारत तथा यूरोप से जुड़ा है, वह सभी भाषाएं कहीं ना कहीं संस्कृत से मेल खाती हैं।
4. भारोपीय
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भारत तथा यूरोप को एक जगह लाने वाली इन भाषाओं को भारोपीय (भारत + यूरोप) का नाम दिया गया है। इस श्रेणी में उन सभी भाषाओं ने स्थान ग्रहण किया है जो किसी ना किसी रूप से संस्कृत भाषा से संबंध रखती हैं।
5. भाषा का आकार
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ऐसा माना जाता है कि हो सकता है इन यूरोपीय भाषाओं को जन्म देने वाले प्रणेताओं ने इन भाषाओं को आकार देने के लिए संस्कृत भाषा की सहायता ली हो। या फिर इन भाषाओं के पूर्वज संस्कृत भाषा के काफी करीब रहे हों।
6. संस्कृत भाषा की झलक
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वजह कुछ भी रही हो... खोजकर्ताओं को ऐसे कई पहलू मिले हैं जो संस्कृत से मिलाने पर एक समान लगते हैं या यूं कहें कि हूबहू संस्कृत भाषा की ही झलक प्रदान करते हैं। ना जाने कितने ही ऐसे शब्द हैं, जो संस्कृत के शब्दों से ही बनाए हुए प्रतीत होते हैं।
7. संस्कृत की छवि
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फिर वह अंग्रेजी भाषा का शब्द हो या फिर किसी अन्य यूरोपीय भाषा का हो। दुनिया भर में कई भाषाओं में संस्कृत की छवि नज़र आती है। दुनिया के कई महान शोधकर्ताओं ने संस्कृत भाषा को अन्य भाषाओं के मुकाबले में ज्यादा सटीक माना है।
8. सर विलियम जोन्स के शोध
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सर विलियम जोन्स द्वारा लिखी गई एक किताब ‘डिस्कवरी ऑफ संस्कृत’ में इस भाषा से सम्बन्धित कई तथ्य प्रदान किए गए हैं। जोन्स के मुताबिक संस्कृत भाषा यूनानी भाषा से ज्यादा श्रेष्ठ है, लैटिन भाषा से अधिक प्रचुर है तथा दोनों से ही व्याकरण के संदर्भ में ज्यादा मजबूत है।
9. सेल्टिक तथा गोथिक भाषा
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जोन्स द्वारा दिए गए अन्य तथ्यों के दस्तावेज तो आज के समय में मौजूद नहीं हैं लेकिन जोन्स का मानना था कि संस्कृत भाषा सेल्टिक तथा गोथिक दोनों भाषाओं से ही रिश्ता रखती है। इन दोनों भाषाओं का कहीं ना कहीं संस्कृत द्वारा ही जन्म लेना माना जा सकता है।
10. यूनानी तथा लैटिन भाषा
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इतना ही नहीं, फारसी भाषा भी इसी श्रेणी का हिस्सा मानी गई है। सर विलियम जोन्स की एक और मशहूर किताब ‘दि संस्कृत लैंग्वेज’ में उन्होंने साफ तौर पर संस्कृत भाषा को यूनानी, लैटिन, सेल्टिक, गोथिक तथा फारसी भाषा की जड़ें माना है।
11. मैक्स मुलर के शोध
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सर विलियम जोन्स से भी ज्यादा गहराई में यदि भारोपीय भाषाओं का कोई ज्ञान हासिल कर पाया है तो वे हैं जर्मन मूल के विद्वान मैक्स मुलर। मुलर एक ऐसे विद्वान थे जिनकी संस्कृत भाषा में अत्यंत रुचि थी। उन्होंने बेहद गहराई से इस भाषा पर अध्ययन किया था।
12. वेदों तथा उपनिषदों का अध्ययन
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इस भाषा को समझने के लिए मुलर द्वारा संस्कृत में लिखे गए वेदों तथा उपनिषदों का अध्ययन किया गया। उन्होंने स्वयं इन महान ग्रंथों को अंग्रेजी में अनुवादित किया तथा इससे सम्बन्धित ज्ञान हासिल किया। मुलर द्वारा पढ़े गए महान भारतीय ग्रंथों में से एक था ‘ऋग्वेद संहिता’।
13. बौद्धों के महान ग्रंथ
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वेदों के अलावा मुलर द्वारा बौद्ध धर्म के भी महान ग्रंथों का अध्ययन किया गया था। इन सभी ग्रंथों को पढ़ने के बाद मुलर ने संस्कृत भाषा की अन्य जर्मन भाषाओं से तुलना शुरू की। दोनों में क्या समानताएं हैं, इस पर काम किया।
14. हितोपदेश
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इसी बीच मुलर द्वारा एक किताब भी लिखी गई थी जो हिन्दू धार्मिक ग्रंथ का अनुवाद था। मुलर द्वारा इसे ‘हितोपदेश’ का नाम दिया गया। यह सन् 1844 की बात है जब मुलर द्वारा ऑक्सफार्ड में काम किया गया था।
15. संस्कृत भाषा का ज्ञान
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इसके बाद उन्होंने 1845 में पैरिस आकर अपने गुरु यूजीन बर्नॉफ की छत्र-छाया में संस्कृत भाषा का ज्ञान हासिल किया था। जिस समय मुलर की संस्कृत भाषा में दिलचस्पी बढ़ रही थी उस समय पश्चिमी देशों तक वेदों का ज्ञान काफी कम मात्रा में पहुंच पाया था।
16. वेदों का अध्ययन
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लेकिन मुलर चाहते थे कि लोग वेदों का भाग कहलाने वाले उपनिषदों को जरूर जानें इसीलिए उन्होंने लंबे समय तक वेदों का अध्ययन किया। खासतौर पर ऋग्वेद का जिसका ज्ञान उन्होंने वर्ष 1849-1874 तक प्राप्त किया।
17. कुछ समान शब्दावली
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मुलर द्वारा हासिल की गई जानकारी में उन्होंने ऐसे कई शब्द दुनिया को प्रदान किए जो पश्चिमी भाषा के होते हुए भी संस्कृत भाषा में अपनी जड़ें बनाए हुए दिखाई देते हैं। वेदों को पढ़ते हुए मुलर ने ऐसे कई तथ्य पाए जो बेहद हैरान करने वाले थे।
18. देवताओं के नाम
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ऋग्वेद का अध्ययन करने के बाद मुलर का कहना था कि भगवान को जिन नामों - ज्यूस, जुपिटर, ध्यौस पिता का यूरोपीय देशों में इस्तेमाल किया जाता है इनका उल्लेख हजारों वर्ष पहले ऋग्वेद में कर दिया गया था। ऋग्वेद में ध्यौस नामावली का वर्णन पाया गया है जो यूरोपीय देशों में भी प्रचलित हुआ।
19. ऋग्वेद में वर्णित शब्द
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इस एक शब्द के समानार्थी से कई शब्द हैं - देव, दियूस, थियोस, ज्यूस, आदि। मुलर द्वारा बताए गए इन नामों के अलावा कई ऐसे शब्द हैं जो भारोपीय सिद्धांत से मिलते हैं।
20. भ्राता और ब्रदर में समानता
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उदाहरण के लिए संस्कृत के भ्राता शब्द को अंग्रेजी में ब्रदर कहा जाता है तथा इग्नाइट शब्द जो कि आग को दर्शाता है वह संस्कृत के अग्नि शब्द से काफी समानता रखता है।
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1. संस्कृत भाषा
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दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक मानी जाने वाली संस्कृत भाषा की जड़ें केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं, अन्य देशों में भी हैं। जहां तक समय की बात करें तो ऐसा माना जाता है कि संस्कृत भाषा का आविष्कार आज से कम से कम पांच हजार वर्ष पूर्व किया गया होगा।
2. संस्कृत की शाखाएं
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लेकिन इसे महज़ एक भाषा समझने की भूल ना करें। संस्कृत भाषा एक ऐसे विशाल पेड़ की जड़ है, जिसने अपने भीतर से ढेर सारी शाखाओं को जन्म दिया है तथा उस शाखाओं ने आगे बढ़कर इस पेड़ को उपयोगी बनाया है।
3. भारतीय-यूरोपीय भाषाएं
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लेकिन वर्षों से इस बात पर बहस चली आ रही है कि क्या सच में संस्कृत ही सभी भाषाओं की ‘मां’ कहला सकती है। खैर सभी तो नहीं, लेकिन जितनी भी भाषाओं का सिद्धांत भारत तथा यूरोप से जुड़ा है, वह सभी भाषाएं कहीं ना कहीं संस्कृत से मेल खाती हैं।
4. भारोपीय
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भारत तथा यूरोप को एक जगह लाने वाली इन भाषाओं को भारोपीय (भारत + यूरोप) का नाम दिया गया है। इस श्रेणी में उन सभी भाषाओं ने स्थान ग्रहण किया है जो किसी ना किसी रूप से संस्कृत भाषा से संबंध रखती हैं।
5. भाषा का आकार
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ऐसा माना जाता है कि हो सकता है इन यूरोपीय भाषाओं को जन्म देने वाले प्रणेताओं ने इन भाषाओं को आकार देने के लिए संस्कृत भाषा की सहायता ली हो। या फिर इन भाषाओं के पूर्वज संस्कृत भाषा के काफी करीब रहे हों।
6. संस्कृत भाषा की झलक
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वजह कुछ भी रही हो... खोजकर्ताओं को ऐसे कई पहलू मिले हैं जो संस्कृत से मिलाने पर एक समान लगते हैं या यूं कहें कि हूबहू संस्कृत भाषा की ही झलक प्रदान करते हैं। ना जाने कितने ही ऐसे शब्द हैं, जो संस्कृत के शब्दों से ही बनाए हुए प्रतीत होते हैं।
7. संस्कृत की छवि
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फिर वह अंग्रेजी भाषा का शब्द हो या फिर किसी अन्य यूरोपीय भाषा का हो। दुनिया भर में कई भाषाओं में संस्कृत की छवि नज़र आती है। दुनिया के कई महान शोधकर्ताओं ने संस्कृत भाषा को अन्य भाषाओं के मुकाबले में ज्यादा सटीक माना है।
8. सर विलियम जोन्स के शोध
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सर विलियम जोन्स द्वारा लिखी गई एक किताब ‘डिस्कवरी ऑफ संस्कृत’ में इस भाषा से सम्बन्धित कई तथ्य प्रदान किए गए हैं। जोन्स के मुताबिक संस्कृत भाषा यूनानी भाषा से ज्यादा श्रेष्ठ है, लैटिन भाषा से अधिक प्रचुर है तथा दोनों से ही व्याकरण के संदर्भ में ज्यादा मजबूत है।
9. सेल्टिक तथा गोथिक भाषा
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जोन्स द्वारा दिए गए अन्य तथ्यों के दस्तावेज तो आज के समय में मौजूद नहीं हैं लेकिन जोन्स का मानना था कि संस्कृत भाषा सेल्टिक तथा गोथिक दोनों भाषाओं से ही रिश्ता रखती है। इन दोनों भाषाओं का कहीं ना कहीं संस्कृत द्वारा ही जन्म लेना माना जा सकता है।
10. यूनानी तथा लैटिन भाषा
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इतना ही नहीं, फारसी भाषा भी इसी श्रेणी का हिस्सा मानी गई है। सर विलियम जोन्स की एक और मशहूर किताब ‘दि संस्कृत लैंग्वेज’ में उन्होंने साफ तौर पर संस्कृत भाषा को यूनानी, लैटिन, सेल्टिक, गोथिक तथा फारसी भाषा की जड़ें माना है।
11. मैक्स मुलर के शोध
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सर विलियम जोन्स से भी ज्यादा गहराई में यदि भारोपीय भाषाओं का कोई ज्ञान हासिल कर पाया है तो वे हैं जर्मन मूल के विद्वान मैक्स मुलर। मुलर एक ऐसे विद्वान थे जिनकी संस्कृत भाषा में अत्यंत रुचि थी। उन्होंने बेहद गहराई से इस भाषा पर अध्ययन किया था।
12. वेदों तथा उपनिषदों का अध्ययन
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इस भाषा को समझने के लिए मुलर द्वारा संस्कृत में लिखे गए वेदों तथा उपनिषदों का अध्ययन किया गया। उन्होंने स्वयं इन महान ग्रंथों को अंग्रेजी में अनुवादित किया तथा इससे सम्बन्धित ज्ञान हासिल किया। मुलर द्वारा पढ़े गए महान भारतीय ग्रंथों में से एक था ‘ऋग्वेद संहिता’।
13. बौद्धों के महान ग्रंथ
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वेदों के अलावा मुलर द्वारा बौद्ध धर्म के भी महान ग्रंथों का अध्ययन किया गया था। इन सभी ग्रंथों को पढ़ने के बाद मुलर ने संस्कृत भाषा की अन्य जर्मन भाषाओं से तुलना शुरू की। दोनों में क्या समानताएं हैं, इस पर काम किया।
14. हितोपदेश
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इसी बीच मुलर द्वारा एक किताब भी लिखी गई थी जो हिन्दू धार्मिक ग्रंथ का अनुवाद था। मुलर द्वारा इसे ‘हितोपदेश’ का नाम दिया गया। यह सन् 1844 की बात है जब मुलर द्वारा ऑक्सफार्ड में काम किया गया था।
15. संस्कृत भाषा का ज्ञान
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इसके बाद उन्होंने 1845 में पैरिस आकर अपने गुरु यूजीन बर्नॉफ की छत्र-छाया में संस्कृत भाषा का ज्ञान हासिल किया था। जिस समय मुलर की संस्कृत भाषा में दिलचस्पी बढ़ रही थी उस समय पश्चिमी देशों तक वेदों का ज्ञान काफी कम मात्रा में पहुंच पाया था।
16. वेदों का अध्ययन
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लेकिन मुलर चाहते थे कि लोग वेदों का भाग कहलाने वाले उपनिषदों को जरूर जानें इसीलिए उन्होंने लंबे समय तक वेदों का अध्ययन किया। खासतौर पर ऋग्वेद का जिसका ज्ञान उन्होंने वर्ष 1849-1874 तक प्राप्त किया।
17. कुछ समान शब्दावली
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मुलर द्वारा हासिल की गई जानकारी में उन्होंने ऐसे कई शब्द दुनिया को प्रदान किए जो पश्चिमी भाषा के होते हुए भी संस्कृत भाषा में अपनी जड़ें बनाए हुए दिखाई देते हैं। वेदों को पढ़ते हुए मुलर ने ऐसे कई तथ्य पाए जो बेहद हैरान करने वाले थे।
18. देवताओं के नाम
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ऋग्वेद का अध्ययन करने के बाद मुलर का कहना था कि भगवान को जिन नामों - ज्यूस, जुपिटर, ध्यौस पिता का यूरोपीय देशों में इस्तेमाल किया जाता है इनका उल्लेख हजारों वर्ष पहले ऋग्वेद में कर दिया गया था। ऋग्वेद में ध्यौस नामावली का वर्णन पाया गया है जो यूरोपीय देशों में भी प्रचलित हुआ।
19. ऋग्वेद में वर्णित शब्द
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इस एक शब्द के समानार्थी से कई शब्द हैं - देव, दियूस, थियोस, ज्यूस, आदि। मुलर द्वारा बताए गए इन नामों के अलावा कई ऐसे शब्द हैं जो भारोपीय सिद्धांत से मिलते हैं।
20. भ्राता और ब्रदर में समानता
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उदाहरण के लिए संस्कृत के भ्राता शब्द को अंग्रेजी में ब्रदर कहा जाता है तथा इग्नाइट शब्द जो कि आग को दर्शाता है वह संस्कृत के अग्नि शब्द से काफी समानता रखता है।
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