सामान्यतः
लोग 60-70 वर्ष की आयु के बाद ही अपनी वसीयत
लिखने की योजना बनाते हैं एवं अधिकांश लोगों की मृत्यु तो बिना वसीयत लिखे ही हो
जाती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में आज भी 80 प्रतिशत लोगों की मृत्यु बिना वसीयत लिखे ही होती है, जिसके निम्न दुष्परिणाम होते हैं।
1.इच्छानुसार
संपत्ति का बँटवारा नहीं : संपत्ति का बँटवारा इंडियन सक्सेशन एक्ट/हिन्दू सक्सेशन
एक्ट/मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों के तहत होता है, न कि व्यक्ति की
इच्छानुसार।
2.लंबी
न्यायिक प्रक्रिया : न्यायिक प्रक्रिया का पालन कर सक्सेशन सर्टिफिकेट लेना होता
है, जिसमें छः माह से एक वर्ष तक का समय लग जाता है।
3.अत्यधिक
खर्च : सक्सेशन सर्टिफिकेट प्राप्त करने में न सिर्फ समय, बल्कि 8 से
10 प्रतिशत तक की कोर्ट फीस एवं अन्य न्यायिक खर्च भी अदा करने होते
हैं।
4.परिवार
में विवाद : कई बार परिवार में विवाद की स्थिति उत्पन्ना हो जाती है।
5.संपत्ति
से वंचित : कई बार तो परिवार के सदस्यों को संपत्ति की जानकारी नहीं होने से
संपत्ति ही प्राप्त नहीं हो पाती।
6.टैक्स
प्लानिंग संभव नहीं : वसीयत न होने पर वारिसों की टैक्स प्लानिंग की गुंजाइश खत्म
हो जाती है एवं वारिस पर्याप्त टैक्स बचत नहीं कर पाते हैं, जबकि वसीयत के
तहत वारिसों की टैक्स प्लानिंग सही ढंग से की जा सकती है।
अधिकांश लोग इसलिए भी वसीयत नहीं बनाते हैं,
क्योंकि
उनका मानना होता है कि उनके पास अधिक संपत्ति नहीं है एवं जो संपत्ति है, उसमें
उन्होंने नॉमिनेशन कर रखा है, जबकि नॉमिनी केवल ट्रस्टी की हैसियत से
ही संपत्ति प्राप्त कर सकता है। नॉमिनेशन कर दिए जाने से मृत्यु उपरांत नॉमिनी को
संपत्ति पर अधिकार प्राप्त नहीं होता है एवं वारिसों द्वारा संपत्ति की माँगनी पर
उसे उन्हें सुपुर्द करने का दायित्व होता है। अतः आप यदि किसी प्रियजन को कोई
संपत्ति देना चाहते हैं तो केवल नॉमिनेशन कर देने से काम खत्म नहीं होगा, बल्कि
उसके लिए आपको वसीयत भी लिखना चाहिए।
वसीयत
लिखने से व्यक्ति के जीवन काल में संपत्ति पर उसी का हक होता है एवं मृत्यु उपरांत
ही इच्छित व्यक्ति को संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। एक व्यक्ति अपने
जीवनकाल में कितनी भी बार वसीयत बदल सकता है। अतः वसीयत लिखने से संपत्ति पर
व्यक्ति के जीवनकाल में अधिकार सुरक्षित रहते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि व्यक्ति को अपनी वसीयत
कब लिखना चाहिए? वैधानिक रूप से देखें तो 18
वर्ष से अधिक के मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपनी वसीयत लिख सकते हैं।
व्यावहारिक रूप से 18 वर्ष से अधिक आयु के मानसिक रूप से स्वस्थ
व्यक्तियों, जिनके पास भी संपत्ति/जीवन बीमा पॉलिसी है,
को
अपनी वसीयत आवश्यक रूप से लिखना चाहिए।
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