//सिर्फ
पंद्रह मिनट रोज करे और बिना पेसे अपना वजन बढ़ाये.… !
* कम
वजन किसी भी उम्र के व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। सामान्य से कम वजन
वाला व्यक्ति दुबला कहलाता है। जो व्यक्ति अधिक दुबला होता है वह किसी भी काम को
करने में जल्द थक जाता है। ऐसे व्यक्तियों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम
होती है।
* पाचन
शक्ति में गड़बड़ी के कारण भी व्यक्ति अधिक दुबला हो सकता है। मानसिक, भावनात्मक तनाव, चिंता की वजह से भी व्यक्ति दुबला हो
सकता है। इसके अलावा शरीर में हार्मोन्स असंतुलित हो जाने पर भी व्यक्ति दुबला हो
सकता है। ज्यादातर लोग इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कई जतन करते हैं लेकिन
परिणाम नहीं मिलता है। वजन बढ़ाने के लिए योग व मुद्राओं से बेहतर दवा और कोई नहीं
है।
* पृथ्वी
मुद्रा इस समस्या का सबसे आसान उपाय मानी जाती है।
पृथ्वी मुद्रा:-
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* पृथ्वी
मुद्रा-रिंग फिंगर के पोर को अंगूठे के पोर के साथ स्पर्श करने पर पृथ्वी मुद्रा
बनती है। शेष तीनो अंगुलियां अपनी सीध में खड़ी होनी चाहिए। जैसे पृथ्वी सदैव पोषण
करती है,इस मुद्रा से भी
शरीर का पोषण होता है। शारीरिक दुर्बलता दूर कर स्फूर्ति और ताजगी देने वाली और बल
वृद्धिकारक यह मुद्रा अति उपयोगी है। जो व्यक्ति अपने क्षीण काया (दुबलेपन) से
चिंतित और व्यथित हैं वे यदि इस मुद्रा का निरंतर अभ्यास करें तो निश्चित ही
दुबलेपन से मुक्ति पा सकते हैं। यह मुद्रा रोगमुक्त ही नहीं बल्कि तनाव मुक्त भी
करती है। यह व्यक्ति में सहिष्णुता का विकास करती है। रोज इस मुद्रा का सिर्फ
पंद्रह मिनट अभ्यास से कोई भी दुबलेपन से छुटकारा पा सकता है।
विधि :-
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* वज्रासन
की स्थिति में दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों पैर
अंगूठे के आगे से मिले रहने चाहिए। एड़िया सटी रहें। नितम्ब का भाग एड़ियों पर
टिकाना लाभकारी होता है। यदि वज्रासन में न बैठ सकें तो पदमासन या सुखासन में बैठ
सकते हैं |
* दोनों
हांथों को घुटनों पर रखें , हथेलियाँ
ऊपर की तरफ रहें |
* अपने
हाथ की अनामिका अंगुली (सबसे छोटी अंगुली के पास वाली अंगुली) के अगले पोर को
अंगूठे के ऊपर के पोर से स्पर्श कराएँ |
* हाथ
की बाकी सारी अंगुलिया बिल्कुल सीधी रहें ।
रक्खे कुछ सावधानियां :-
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* वैसे
तो पृथ्वी मुद्रा को किसी भी आसन में किया जा सकता है, परन्तु इसे वज्रासन में करना अधिक
लाभकारी है, अतः
यथासंभव इस मुद्रा को वज्रासन में बैठकर करना चाहिए
समय व अवधि :-
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*पृथ्वी
मुद्रा को प्रातः – सायं
24-24 मिनट करना
चाहिए | वैसे किसी भी
समय एवं कहीं भी इस मुद्रा को कर सकते हैं।
अन्य चिकित्सकीय लाभ :-
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* जिन
लोगों को भोजन न पचने का या गैस का रोग हो उनको भोजन करने के बाद 5 मिनट तकवज्रासन में बैठकर पृथ्वी
मुद्रा करने से अत्यधिक लाभ होता है ।
* पृथ्वी
मुद्रा के अभ्यास से आंख, कान, नाक और गले के समस्त रोग दूर हो जाते
हैं।
* पृथ्वी
मुद्रा करने से कंठ सुरीला हो जाता है |
* इस
मुद्रा को करने से गले में बार-बार खराश होना, गले में दर्द रहना जैसे रोगों में बहुत लाभ होता है।
* पृथ्वी
मुद्रा से मन में हल्कापन महसूस होता है एवं शरीर ताकतवर और मजबूत बनता है।
* पृथ्वी
मुद्रा को प्रतिदिन करने से महिलाओं की खूबसूरती बढ़ती है, चेहरा सुंदर हो जाता है एवं पूरे शरीर
में चमक पैदा हो जाती है।
* पृथ्वी
मुद्रा के अभ्यास से स्मृति शक्ति बढ़ती है एवं मस्तिष्क में ऊर्जा बढ़ती है।
* पृथ्वी
मुद्रा करने से दुबले-पतले लोगों का वजन बढ़ता है। शरीर में ठोस तत्व और तेल की
मात्रा बढ़ाने के लिए पृथ्वी मुद्रा सर्वोत्तम है।
* जिस
प्रकार से पृथ्वी माँ प्रत्येक स्थिति जैसे-सर्दी,गर्मी,वर्षा
आदि को सहन करती है एवं प्राणियों द्वारा मल-मूत्र आदि से स्वयं गन्दा होने के
वाबजूद उन्हें क्षमा कर देती है |
पृथ्वी माँ आकार में ही नही वरन ह्रदय से भी विशाल है | पृथ्वी मुद्रा के अभ्यास से इसी प्रकार
के गुण साधक में भी विकसित होने लगते हैं | यह मुद्रा विचार शक्ति को उनन्त बनाने में मदद करती है।
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