कुण्डली में कारक ग्रह और भाग्योदय ग्रह
कारक ग्रह की महादशा (Mahadasha) हो, अंतरदशा हो (Anthardasha), प्रत्यंत्र
दशा (Pratyantar dasha) हो
या चाहे कारक ग्रह का अनुकूल गोचर (Transit) ही क्यों न चल रहा हो, वह साल, महीना, दिन
अथवा घंटा भी आपके लिए अनुकूल (Favorable)
होगा। आइए देखते हैं कि किस लग्न (Lagna) में कौनसा ग्रह कारक होता है और उसे किस प्रकार
बल दिया जा सकता है।
मेष लग्न : मेष लग्न की कुण्डली में कोई एक
ऐसा ग्रह नहीं होता जो एक केन्द्र और एक त्रिकोण का अधिपति हो। ऐसे में पंचम भाव
जो कि कुण्डली का त्रिकोण है, का
अधिपति सूर्य है। ऐसे में मेष लग्न में सूर्य कुण्डली का कारक ग्रह होगा। किसी
मेष लग्न के जातक को सूर्य की दशा,
अंतरदशा में माणक पहनने की सलाह दी जा सकती है। बशर्ते सूर्य कोई अन्य
योगकारक युति न बना रहा हो। ऐसे में हम कहेंगे कि मेष लग्न की कुण्डली में लग्न
का अधिपति मंगल (Mars) और
पंचम भाव का अधिपति सूर्य (Sun)
कारक ग्रह हैं।
वृषभ लग्न : वृषभ लग्न में एक केन्द्र और एक
त्रिकोण का अधिपति शनि होता है। यह नौंवे और दसवें घर का अधिपति होता है। वृषभ लग्न
वाले जातकों के लिए शनि की दशा,
अंतरदशा अथवा प्रत्यंतर दशा कमोबेश अनुकूल होती है। अगर दिन देखा
जाए तो शनि का नक्षत्र और दिन का कोई समय देखा जाए तो शनि की होरा वृषभ लग्न के
जातकों के लिए अनुकूल साबित होती है। ऐसे में हम कहेंगे कि वृषभ लग्न में शुक्र (Venus) लग्नाधिपति
होने के कारण और शनि (Saturn) कारक
ग्रह हैं।
मिथुन लग्न : मिथुन द्विस्वभाव लग्न है।
इसके साथ ही लग्न और त्रिकोण का अधिपति बुध ही है। प्रथम, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण माना जाता
है। ऐसे में बुध लग्न और चतुर्थ भाव का अधिपति होने के कारण कुण्डली का प्रमुख
कारक ग्रह साबित होता है। इसके साथ ही पंचम भाव का अधिपति शुक्र भी मिथुन लग्न
में अनुकूल प्रभाव देने वाला होता है। शुक्र के दूषित नहीं होने पर हम कह सकते हैं
कि मिथुन लग्न में बुध (Mercury)
और शुक्र (Venus) कारक
ग्रह हैं।
कर्क लग्न: इस लग्न में पंचम भाव यानि
त्रिकोण तथा दशम भाव यानि केन्द्र का अधिपति मंगल ही है। ऐसे में कर्क लग्न में
सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह मंगल होता है। यही इस लग्न का कारक ग्रह है। अगर मंगल
अनुकूल स्थिति में नहीं बैठा है और अनुकूल ग्रहों से युति नहीं बना रहा है तो जातक
को मूंगे की अंगूठी अथवा लॉकेट पहनाया जा सकता है। कर्क राशि का अधिपति चंद्रमा
है। ऐसे में कर्क लग्न के दो कारक ग्रह हमें मिलते हैं मंगल (Mars) और चंद्रमा (Moon)।
सिंह लग्न : सिंह लग्न में भी मंगल ही कारक
ग्रह की भूमिका में दिखाई देता है। चौथे भाव में स्थित वृश्चिक राशि और नवम भाव
में स्थित मेष राशि का आधिपत्य मंगल के पास ही है। ऐसे में वह एक केन्द्र और एक
त्रिकोण का अधिपति बनकर उभरता है। चूंकि सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। ऐस में
सिंह लग्न के जातकों के लिए सूर्य (Sun) और मंगल (Mars) कारक ग्रह हैं। ग्रहों की स्थिति के अनुसार उन्हें
मूंगा अथवा माणक पहनाया जा सकता है। साथ ही सूर्य और मंगल की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र और होरा भी जातक के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल साबित होंगे।
कन्या लग्न : कन्या राशि का अधिपति बुध है।
यहां लग्न यानी त्रिकोण और केन्द्र यानी दशम भाव का अधिपति बुध ही है। ऐसे में
इस लग्न वाले जातकों के लिए बुध ही कारक ग्रह होगा। इसके साथ ही नवम भाव यानी
त्रिकोण का अधिपति शुक्र है। भले ही कन्या लग्न में दूसरे भाव का अधिपति होने के
कारण शुक्र की उतनी शुभता नहीं रहती है, लेकिन बुध का मित्र होने के कारण शुक्र को भी भाग्यकारक ग्रह माना
जाता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि कन्या लग्न में बुध (Marcury) और शुक्र (Venus) कारक ग्रह होंगे
और जातक को आवश्यकता के अनुरूप पन्ना अथवा डायमंड पहनाया जा सकता है।
तुला लग्न : हालांकि इस लग्न का अधिपति शुक्र
है, लेकिन शुक्र का
मित्र शनि एक केन्द्र यानी चौथे भाव और एक त्रिकोण यानी पांचवे भाव का अधिपति है।
दूसरे कोण से देखें तो तुला राशि में शनि उच्च का होता है। ऐसे में अगर किसी जातक
का तुला लग्न है और शनि अनुकूल स्थिति में बैठा हो तो जातक जीवन में बहुत प्रगति
करता है। शनि की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र और होरा में अनुकूल परिणाम प्राप्त
करता है। भले ही शुक्र लग्न के साथ अष्टम भाव का अधिपति हो, लेकिन तुला लग्न में शनि (Saturn) और शुक्र (Venus) दोनों ही कारक
ग्रह की भूमिका में होते हैं।
वृश्चिक लग्न (Vrishuchik lagna) : यह कुछ कठिन लग्न है। वृश्चिक लग्न
का स्वामी मंगल है, लेकिन
मंगल की दूसरी राशि मेष छठे भाव का प्रतिनिधित्व करती है। दूसरी ओर एक त्रिकोण का
स्वामी गुरु है, लेकिन
गुरु की ही एक राशि धनु दूसरे भाव का प्रतिनिधित्व कर रही है। दूसरे त्रिकोण नवम
भाव का स्वामित्व चंद्रमा के पास है। ऐसे में मात्र चंद्रमा ही पूर्णतया शुद्ध
होकर वृश्चिक लग्न का कारक ग्रह बनता है, लेकिन चंद्रमा का उपचार भी गले में मोती का लॉकेट बनाकर पहनाने से
नहीं किया जाता। ऐसे में वृश्चिक लग्न के जातकों को आंशिक रूप से गुरु, आंशिक रूप से मंगल (Mars) और सावधानी से
चंद्रमा (Moon) का
उपचार बताया जा सकता है।
धनु लग्न : धनु राशि का स्वामी गुरु है।
चूंकि लग्न त्रिकोण का भाग है और एक केन्द्र यानी चतुर्थ भाव में पड़ रही राशि
मीन का आधिपत्य भी गुरु के पास है। दूसरी ओर नवम भाव यानी त्रिकोण का स्वामी
सूर्य भी है। ऐसे में धनु लग्न में हमें दो कारक ग्रह मिलते हैं। गुरु और सूर्य।
धनु लग्न के जातक को गुरु के रत्न पुखराज अथवा सुनहला अथवा सूर्य के रत्न माणक
का उपचार बताया जा सकता है। सामान्य तौर पर धनु लग्न के जातकों को गुरु (Jupiter) और सूर्य (Sun) की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र
और होरा में अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न : मकर राशि का अधिपति शनि है। शनि का
मित्र शुक्र ही इस लग्न का कारक ग्रह साबित होता है। शुक्र की पहली राशि वृषभ मकर
लग्न में पंचम भाव और दूसरी राशि तुला दशम भाव का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसे में
एक केन्द्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने के कारण शुक्र ही इस लग्न का कारक है, दूसरी ओर शनि तो प्रभावी भूमिका निभाता
ही है। ऐसे में मकर लग्न के जातकों को अनुकूलता प्राप्त करने के लिए शुक्र (Venus) रत्न हीरा अथवा
जरिकॉन का उपयोग करना चाहिए। कुछ मामलों में शनि (Saturn) की अनुकूलता के लिए सावधानी से नीलम धारण करना
चाहिए।
कुंभ लग्न: कुंभ राशि का अधिपति शनि है, लेकिन शनि की ही दूसरी राशि मकर यहां
बारहवें भाव का प्रतिनिधित्व् कर रही है। ऐसे में कुंभ लग्न में आंख मूंदकर शनि
का उपचार तो किया ही नहीं जा सकता। लेकिन शुक्र यहां फिर एक केन्द्र और एक
त्रिकोण का अधिपति बनकर उभरता है। इस बार शुक्र की पहली राशि वृषभ कुंभ लग्न के
चौथे भाव और दूसरी राशि तुला नवम भाव यानी त्रिकोण का आधिपत्य लिए हुए है। ऐसे
में शुक्र का रत्न हीरा अथवा जरिकॉन इन जातकों को पहनाया जा सकता है। शुक्र (Venus) की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र अथवा होरा इन जातकों के लिए अनुकूल साबित होती है।
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