* योगासन को शरीर के लिए बहुत अधिक लाभदायक
माना जाता है। योगासन की ही तरह रोजाना कुछ देर योग मुद्रा लगाकर बैठना भी बहुत
फायदेमंद है।वैसे तो योग मुद्रा कई तरह की होती है लेकिन सूर्य मुद्रा लगाने के
अनेक फायदे हैं। सूर्य की अंगुली यानी अनामिका,जिसे रिंग फिंगर भी कहते हैं, का संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से है। सूर्य, ऊर्जा और स्वास्थ्य का प्रति-निधित्व
करता है और यूरेनस कामुकता, अंतज्र्ञान
और बदलाव का प्रतीक है।
सूर्य-मुद्रा बनाने की विधि :-
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* सूर्य की अंगुली को हथेली की ओर मोड़कर उसे
अंगूठे से दबाएं। बाकी बची तीनों अंगुलियों को सीधा रखें। इसे सूर्य मुद्रा कहते
हैं।अपने हाथ की अनामिका उंगली को अंगूठे की जड़ में लगा लें तथा बाकी बची हुई
उंगलियों को बिल्कुल सीधी रहने दें। इस तरह बनाने से सूर्यमुद्रा बनती है।
* सूर्य मुद्रा को लगभग 8 मिनट तक करना चाहिए
इसको ज्यादा देर तक करने से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है। सर्दियों में सूर्य मुद्रा
को ज्यादा से ज्यादा 24 मिनट तक किया जा सकता है।
* सिद्धासन,पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ | दोनों हाँथ घुटनों पर रख लें हथेलियाँ उपर की तरफ रहें | अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) को मोडकर
अंगूठे की जड़ में लगा लें एवं उपर से अंगूठे से दबा लें | बाकि की तीनों अंगुली सीधी रखें |
जाने इसके लाभ :-
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* इस मुद्रा से वजन कम होता है और शरीर संतुलित
रहता है।मोटापा कम करने के लिए आप इसका प्रयोग नित्य-प्रति करे ये बिना पेसे की
दवा है हाँ जादू की अपेक्षा न करे .
* इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट तक
अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है।
वजन कम करने के लिए यह असान क्रिया चमत्कारी
रूप से कारगर पाई गई है।सूर्य मुद्रा के अभ्यास से मोटापा दूर होता है | शरीर की सूजन दूर करने में भी यह
मुद्रा लाभकारी है |
* जिन स्त्रियों के बच्चा होने के बाद शरीर में
मोटापा बढ़ जाता है वे अगर इस मुद्रा का नियमित
अभ्यास करें तो उनका शरीर बिल्कुल पहले जैसा हो
जाता है।
* सूर्य मुद्रा को रोजाना करने से पूरे शरीर
में ऊर्जा बढ़ती है और गर्मी पैदा होती है।तथा सूर्य मुद्रा को करने से शरीर में
ताकत पैदा होती है।
* कमजोर शरीर वाले व्यक्तियों को यह मुद्रा
नहीं करनी चाहिए। वर्ना और कमजोरी आएगी .हाँ जिनको अपना शरीर स्लिम रखना है वो कर
सकते है .
* इसे नियमित करने से बेचैनी और चिंता कम होकर
दिमाग शांत बना रहता है।
* यह जठराग्रि (भूख) को संतुलित करके पाचन
संबंधी तमाम समस्याओं से छुटकारा दिलाती है।
* यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हल्का और
चुस्त-दुरुस्त बनाती है।
* सूर्य मुद्रा करने से शरीर में गर्मी बढ़ती है
अतः गर्मियों में मुद्रा करने से पहले एक गिलास पानी पी लेना चाहिए |
* प्रातः सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत्त
होकर इस मुद्रा को करना अधिक लाभदायक होता है | सांयकाल सूर्यास्त से पूर्व कर सकते हैं |
* अनामिका अंगुली पृथ्वी एवं अंगूठा अग्नि तत्व
का प्रतिनिधित्व करता है , इन
तत्वों के मिलन से शरीर में तुरंत उर्जा उत्पन्न हो जाती है |
* सूर्य मुद्रा के अभ्यास से व्यक्ति में
अंतर्ज्ञान जाग्रत होता है |
.//अगर
आपके कुँडली मे सूर्य अशुभ फल दे रहा हो तो निम्न उपाय करके कुछ हद तक शुभत्व
प्राप्त किया जा सकता है!
* निर्धन बच्चो की सहायता करे! सच्चरित्र बने!
माँ और दादी से आशिर्वाद प्राप्त करे! अँधो को भोजन और भिक्षा दे!
* गँगा जल एवँ चाँदी घर मे रखे/मँदिर मे दान करे!
छोटे लाल मुँह वाले बँदरो को गुड़ और चने खिलाएँ!
* आग को दूध से बुझाएँ! भूमि मे चाँदी का चौकोर
टुकड़ा दबाएँ! ब्राम्हण या काली गाय की सेवा करे! पानी के घूँट पीकर कार्य करे!
* गुड़ खाकर पानी पीकर कार्य प्रारँभ करे!
काली/लाल गाय की सेवा करे! गुड़ एवँ गेहूँ मँदिर मे चढाएँ! दक्षिण मुखी घर न बनाएँ!
/सूर्य नमस्कार - योगासन व प्राणायाम का मिला जुला रूप :
/सूर्य नमस्कार - योगासन व प्राणायाम का मिला जुला रूप :
सूर्य नमस्कार में सभी आसन आ जाते हैं, एवं इससे शरीर में लोच बनी रहती है ।
सूर्य नमस्कार शरीर में प्राण को संतुलित व लयबद्ध करता है जिससे शरीर में नई
शक्ति का संचार होता है। इसे करते वक्त श्वास-प्रश्वास का ध्यान रखना है ।
यह बहुत ही शक्तिशाली तथा प्रभावशाली विधि है, लेकिन शुरू में इसका अभ्यास किसी योग्य
योगाचार्य की देखरेख में ही करना चाहिए, ताकि किसी तरह के दुष्प्रभाव से भी बचे रह सकें।
अभ्यास की विधि--प्रथम अवस्था
प्रणाम मुद्रा: सीधे खडे हो जाएं। दोनों हाथों
को सीने के सामने प्रणाम की मुद्रा में रखें। पैर के पंजों को आपस में जोड़ लें।
सजग रहते हुए एक गहरी श्वास-प्रश्वास लें तथा उस पर मन को अच्छी तरह से एकाग्र
करें। इस अवस्था में ‘ॐ
मित्राय नम:’ का
उच्चारण कर सकते हैं।
दूसरी अवस्था --हस्त उत्तानासन: प्रणाम मुद्रा के तुरन्त बाद दोनों हाथों को सिर के
ऊपर उठाएं। दोनों हाथों में कंधों की चौड़ाई के बराबर अन्तर रखते हुए सिर, धड़ तथा हाथों को यथासम्भव पीछे
झुकाएं। यह क्रिया श्वास अन्दर लेते हुए करें। उस समय मन को एकाग्र रखें। इस
अवस्था में ‘ॐ
रवये नम:’ का
उच्चारण कर सकते हैं।
तीसरी अवस्था --पाद हस्तासन: दूसरी अवस्था के तुरन्त बाद श्वास बाहर निकालते हुए
सामने की ओर इस प्रकार झुकें कि हथेलियां पैरों के अगल-बगल जमीन पर आ जाएं तथा
माथा घुटने को स्पर्श करे। किन्तु,
अनावश्यक जोर न लगाएं। इस अवस्था में ‘ॐ सूर्याय नम:’ का
उच्चारण कर सकते हैं।
सीमाएं: स्लिप डिस्क, स्पॉन्डिलाइटिस, सायटिका तथा तीव्र कमर दर्द के रोगी
सूर्य नमस्कार की इस अवस्था का अभ्यास न करें।
चौथी अवस्था --अश्व संचालन आसन: इसके बाद सजगता के साथ श्वास अन्दर लेते हुए बांये
पैर को अधिकतम पीछे ले जाएं। दाएं पैर को घुटने से मोड़ें। इस पैर के पंजे तथा
हथेलियों को अपने स्थान पर पूर्ववत रखें। बाएं पैर का पंजा तथा दोनों हाथ, बायां घुटना तथा दाएं पैर के पंजे पर
शरीर का भार रखें। सिर को अधिकतम पीछे रखते हुए, कमर को धनुषाकार बनाएं तथा दृष्टि ऊपर की ओर रखें। अंतिम अवस्था में
थोड़ी देर रुककर शरीर के अंगों पर पडम्ने वाले दबाव का अनुभव करें। इस अवस्था में ‘ॐ भानवे नम:’ का उच्चारण करें।
पांचवीं अवस्था--पर्वतासन: इसके पश्चात् दाएं पैर को भी बाएं पैर के पास सजग रहते हुए
ले जाएं। नितम्बों को अधिकतम ऊपर उठाएं तथा सिर को दोनों भुजाओं के बीच में रखें।
अंतिम स्थिति में पैर तथा हाथ को सीधा एवं तना हुए रखते हुए हथेलियों और पैर के
तलवों एवं एडियों को जमीन पर स्थित करने का प्रयास करें। इस अवस्था में मन को
एकाग्र रखते हुए शरीर के विभिन्न अंगों पर पडम्ने वाले दबाव एवं खिंचाव का अनुभव
करें। इस स्थिति में ‘ॐ
पूष्णे नम:’ मंत्र
का उच्चारण कर सकते हैं।
छठवीं अवस्था--अष्टांग नमस्कार: इस अवस्था में नीचे जमीन पर इस प्रकार लेटें कि
शरीर के आठ अंग जमीन को स्पर्श करें। इस बात का खास ध्यान रखें कि ठोढ़ी, सीना, दोनों हाथ, दोनों
पैर के घुटने, दोनों
पैर के पंजे जमीन को स्पर्श कर रहे हों। सीने और घुटने के बीच का भार जमीन को
स्पर्श नहीं करेगा, बल्कि
उठा रहेगा। थोड़ी देर इस अवस्था में रुकेंगे। इसमें ‘ॐ घेरंडाय नम:’ का उच्चारण कर सकते हैं।
सातवीं अवस्था--भुजंगासन: इसके बाद श्वास सजगतापूर्वक अन्दर लेते हुए हाथों को सीधा
कर शरीर को कमर से ऊपर उठाएं। सिर को अधिकतम पीछे झुकाएं तथा कमर को धनुषाकार
बनाएं। इस स्थिति में नाभि के नीचे का भाग जमीन पर रखें तथा ऊपर का भाग जमीन से
ऊपर उठाएं। यह भुजंगासन की अंतिम स्थिति है। इस स्थिति में रुक कर शरीर के अंगों
पर पड़ने वाले दबाव का निरीक्षण करें। इस स्थिति में ‘ॐ हिरण्यगर्भाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करें।
आठवीं अवस्था--पर्वतासन: इसके बाद पुन: सूर्य नमस्कार की पांचवीं अवस्था पर्वत आसन
में श्वास छोडंते हुए आएं। शरीर के अंगों पर पड़ने वाले दबाव का सजगतापूर्वक
निरीक्षण करें। इस स्थिति में ‘ॐ
मरीचये नम:’ नामक
मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं।
नौवीं अवस्था--अश्व संचालन आसन: यह स्थिति सूर्य नमस्कार की चौथी अवस्था है। इस
स्थिति में शरीर के अंगों पर मन को एकाग्र करते हुए उन पर पड़ने वाले दबाव का
निरीक्षण करें। इस स्थिति में ‘ॐ
आदित्याय नम:’ मंत्र
का उच्चारण करें।
दसवीं अवस्था--पाद हस्तासन: यह स्थिति सूर्य नमस्कार की तीसरी अवस्था की
पुनरावृत्ति है। इस स्थिति में सजग रहते हुए शरीर के अंगों पर पड़ने वाले प्रभाव
का निरीक्षण एवं अनुभव करें। इस स्थिति में ‘ॐ सवित्रे नम:’ मंत्र
का उच्चारण करें।
ग्यारहवीं अवस्था--हस्त उत्तानासन: यह स्थिति सूर्य
नमस्कार की दूसरी अवस्था की पुनरावृत्ति है। इस स्थिति में सजग रहते हुए शरीर के
अंगों पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुभव करें। इस स्थिति में ‘ॐ अर्काय नम:’ मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं।
बारहवीं अवस्था --प्रणाम मुद्रा: इसके बाद पुन: सूर्य नमस्कार की पहली अवस्था ‘प्रणाम मुद्रा’ में वापस आएं। इस स्थिति में ‘ॐ भास्कराय नम:’ मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं।
ये 12 अवस्थाएं सूर्य नमस्कार का आधा चक्र है। शेष आधा चक्र पूरा करने के
लिए (13 से 24 अवस्थाएं) पुन: यही 12 क्रियाएं दुहराएं। इस अवस्था को
दुहराते समय इस बात का ध्यान रखें कि अवस्था 4 में दाएं पैर को आगे के बजाए पीछे रखकर अभ्यास करते हैं।
कितने चक्रों का अभ्यास करें--प्रारम्भिक अभ्यासी इसके एक या आधे
चक्र से अभ्यास प्रारम्भ करें। धीरे-धीरे चक्रों की संख्या अपनी क्षमतानुसार
बढ़ाते जाएं। यह संख्या 5 से
50 तक कुछ भी रख
सकते हैं।
कैसा हो क्रम==सूर्य नमस्कार गतिशील आसन माना जाता है। इसका अभ्यास आसनों के अभ्यास
के पूर्व करना चाहिए। इससे शरीर सक्रिय हो जाता है, नींद, आलस्य
व थकावट दूर हो जाती है।
सावधानी भी है जरूरी--क्षमता से अधिक चक्रों का अभ्यास या
शरीर पर अनावश्यक जोर डालने का प्रयास बिल्कुल न करें। रोग से ग्रस्त लोग योग्य
मार्गदर्शन में प्रयास करें।
एकाग्रता का ध्यान रखें==श्वास-प्रश्वास एवं शरीर के दबाव
बिन्दु पर एकाग्रता बनाए रखें।==सीमाएं
भी जानें
इसका अभ्यास सभी आयु वर्ग के लोग अपनी क्षमता
का ध्यान रखते हुए कर सकते हैं। पाद हस्तासन का अभ्यास सायटिका, स्लिप डिस्क तथा स्पॉन्डिलाइटिस के
रोगी कदापि न करें।
फ्रोजन शोल्डर की समस्या से ग्रस्त
लोग पर्वतासन, अष्टांग नमस्कार तथा भुजंगासन का अभ्यास न करें।
महिलाएं मासिक धर्म एवं गर्भाधारण के
दिनों में इसका अभ्यास न करें।
उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोगी इसका
अभ्यास योग्य मार्गदर्शन में करें।
बच्चों को इसका अभ्यास उचित
मार्गदर्शन में कराएं ताकि कोई नुकसान न हो।
इसके अभ्यास के लिए सुबह का समय
चुनें ताकि खाली पेट कर पाएं और अभ्यास करने के आधे घंटे बाद ही खाएं। फायदे ही फायदे--यह शरीर के सभी अंगों, मांसपेशियों व नसों को क्रियाशील करता
है।
इसके अभ्यास से शरीर की लोच शक्ति में
आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। प्रौढ़ तथा बूढे़ लोग भी इसका नियमित अभ्यास करते हैं
तो उनके शरीर की लोच बच्चों जैसी हो जाती है।
शरीर की सभी महत्वपूर्ण ग्रंथियों, जैसे पिट्यूटरी, थायरॉइड, पैराथायरॉइड, एड्रिनल, लीवर, पैंक्रियाज, ओवरी
आदि ग्रंथियों के स्रव को संतुलित करने में मदद करता है।
शरीर के सभी संस्थान, रक्त संचरण, श्वास, पाचन, उत्सर्जन, नाड़ी तथा ग्रंथियों को क्रियाशील एवं
सशक्त करता है।
पाचन सम्बन्धी समस्याओं, अपच, कब्ज, बदहजमी, गैस, अफारे तथा भूख न लगने जैसी समस्याओं के समाधान में बहुत ही उपयोगी
भूमिका निभाता है।
वात, पित्त तथा कफ को संतुलित करने में मदद करता है। त्रिदोष निवारण में
मदद करता है।
इसके अभ्यास से रक्त संचालन तीव्र होता है तथा
चयापचय की गति बढ़ जाती है, जिससे
शरीर के सभी अंग सशक्त तथा क्रियाशील होते हैं।
इसके नियमित अभ्यास से मोटापे को दूर किया जा
सकता है और इससे दूर रहा भी जा सकता है।
इसका नियमित अभ्यास करने वाले व्यक्ति को हृदय
रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, कब्ज
जैसी समस्याओं के होने की आशंका बेहद कम हो जाती है।
मानसिक तनाव, अवसाद, एंग्जायटी
आदि के निदान के साथ क्रोध, चिड़चिड़ापन
तथा भय का भी निवारण करता है।
रीढ़ की सभी वर्टिब्रा को लचीला, स्वस्थ एवं पुष्ट करता है।
पैरों एवं भुजाओं की मांसपेशियों को सशक्त करता
है। सीने को विकसित करता है।
शरीर की अतिरिक्त चर्बी को घटाता है।--स्मरणशक्ति तथा आत्मशक्ति में वृद्धि
करता है।
सावधानी--सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप
डिस्क वाले रोगियों के लिए वर्जित हैं। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
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