अब भगवान शंकर से पार्वती जी से विवाह तो कर
लिया परंतु अब समस्या यह थी कि महादेव के तेज़ से पार्वती जी को समस्या आने लगी तब
महादेव ने पार्वती जी को आदि शक्ति का ध्यान लगाकर स्वम कि ऊर्जा को पूर्ण जागृत
करने को कहा । पार्वती जी ने आदि शक्ति का ध्यान लगाकर समस्त सृष्टियों मे 64 भागो मे फैली अपनी शक्तियों को (
जिन्हे हम 64
योगिनियों के नाम से जानते है ) को स्वंम् मे केन्द्रित करना शुरू किया । साधना
पूर्ण होने पर जब माता पार्वती शंकर जी के पास आई और आते ही उनके चरणो मे प्रणाम
करके उन्हे खीर का भोग दिया तो भगवान शंकर ने उन्हे प्रसन्न होकर उन्हे
अन्न्पूर्णा के नाम से संबोधित किया ।
कैलाश पर हुई सभा मे समस्त देवताओं के आग्रह पर
भगवान विष्णु तथा ब्रह्मा जी ने तारकासूर के वध के लिए भगवान शंकर से प्रार्थना की
। तब भगवान शंकर ने कहा," हे
विष्णु मेरी तरह तुम भी त्रिकालदर्शी हो । तुम भी अच्छी प्रकार से जानते हो की
मेरी ऊर्जा तथा पार्वती की ऊर्जा का यदि संगम होग तो उससे उत्पन्न ऊर्जा से समस्त
सृष्टि झुलस कर नष्ट हो जाएगी अतः हम दोनों को अपनी ऊर्जा के सहसत्रों सहसत्रों
भाग के एक सूक्ष्म कण मे दोनों की ऊर्जा को केन्द्रित करना पड़ेगा तथा ब्रह्मा जी
को उस ऊर्जा ब्रह्म कमल जोकि इस पृथ्वी के अतिरिक्त केवल कृतिका नामक सृष्टि कि
पृथ्वी पर ही होता है मे इसे वर्ष के लिए रखना होगा तब छह वर्ष के पश्चात उस कमल
से मेरा व पार्वती का पुत्र उत्पन्न होगा । इस कमल के पुष्प मे संगरक्षित हमारे
अंश को पार्वती साधना मे रत रहकर उसे पोषित करेगी तथा मे पार्वती को संगरक्षित
करूंगा जिससे इसकी साधना भंग न हो । जिस समय यह सूक्ष्म ऊर्जा उत्पन्न होगी तब
अगनिदेव उसे ब्रह्म कमल तक लेकर जाएंगे ।
जब भगवान शंकर व माँ पार्वती ने साधना आरंभ की
तब इंद्रा बैचेन हो गया क्योंकि उसका सिंहासन तारकासूर द्वारा छीन लिया था उसने
अग्नि देव को आदेश दिया की जैसे ही भगवान शंकर व माँ पार्वती की ऊर्जा तुम्हारे
पास आए उसे तुरंत कृतिका नामक सृष्टि की पृथ्वी पर ले जाना तथा वहाँ पर जहां भी छह
ब्रहम कमल एक साथ लगे हो उसमे उस ऊर्जा को छह भाग करके उन छह ब्रह्म कमल मे डाल
देना इससे यह बालक एक वर्ष मे ही उत्पन्न हो जाएगा । अगनी देव ने ऐसा ही किया ।
इससे महादेव क्रोधित हो गये परंतु पार्वती व उस ऊर्जा की रक्षा को ध्यान मे रखकर
शांत रहे । उधर कृतिका नामक सृष्टि की पृथ्वी मे उपस्थित आदि शक्ति का प्रकृतिक
रूप छह वर्णिकाओं का रूप धारण कर उन छहों ब्रह्म कमल को संरक्षित करने लगा तथा एक
वर्ष के पश्चात उसमे से छह बालक उत्पन्न हुये । इन बालको को स्कन्द नाम से
वर्णिकाओं ने संबोधित करा ।
इधर एक वर्ष बाद जब पार्वती समाधि से बाहर
निकली तो अत्यधिक क्रोधित थी उन्होने अग्निदेव को शाप दिया की अग्निदेव तुमने हम
दोनों से छल किया है इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूँ की पृथ्वी पर वेदों के द्वारा
तुम्हारी पुजा करने वाले धीरे धीरे समाप्त हो जाएगे और वह मूरति पूजक बन जाएगे और
जो मूर्ति पूजक नहीं बनेंगे वह असुर प्रवृति के होकर राक्षसो सा आचरण करेंगे तथा
जिस तरकसूर के वध के लिए तुमने यह कृत्य किया है उस बालक का संरक्षण अब महादेव छह
वर्ष के पश्चात ही लेंगे तथा बालक के आठवे वर्ष मे आने पर ही वह तारकासुर का वध
करेगा । सबके द्वारा क्षमा मांगने पर माता पार्वती ने कलयुग के अंतिम चरण मे इस
शाप से मुक्ति होने का वरदान दिया ।
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