बुधवार, 1 अप्रैल 2015

भगवती स्तोत्रम्---दुर्गा आपद्उद्धार स्तोत्र

दुर्गा आपद्उद्धार स्तोत्र

 नमस्ते शरण्ये,शिवे,शानुकम्पे,
नमस्ते जगद्वयापिकेविश्वरूपे,
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्द्ये,
नमस्ते जगत तारिणीत्राहि दुर्गे।।
नमस्ते जगद्चिन्त्यमानस्वरूपे,
नमस्ते महायोगिनी,ज्ञानरूपे,
नमस्ते,नमस्ते सदानंदरूपे,
नमस्ते जगद्तारिणीत्राहि दुर्गे।।
 अनाथस्यदीनस्य तृष्णातुरस्य,
भयार्तस्यभीतस्यवृद्धस्यजंतु,
त्वमेकागतिर्देवीनिस्तारकर्तरी,
नमस्तेजगद्तारिणीत्राही दुर्गे।।
अरण्ये,रणे,दारूणे,शत्रुमध्ये,
अनले सागरे प्रांतरे राजगेहे,
त्वमेकागतिर्देवी निस्तारनौका,
नमस्ते जगद्तारिणीत्राहि दुर्गे।।
अपारे,महादुस्तरेत्यन्तघोरे,
विपद्सागरे मज्जताम्देहभाजं,
त्वमेकागतिर्देवी,निस्तारहेतु,
नमस्ते जगद्तारिणीत्राहि दुर्गे।।
नमश्चण्डिके,चण्डदुर्दण्डलीला,
समुद्घण्डिताशेषशत्रु,
त्वमेकागतिर्देवीनिस्तार्बिजं,
नमस्तेजगद्तारिणीत्राहि दुर्गे।।
त्वमेवाघ्भवध्रुतासत्यवादि,
नजथाजिताक्रोधनाक्रोधनिष्ठा,
इडापिंड्गलात्वं सुषुम्ना च नाडि,
नमस्तेजगद्तारिणीत्राही दुर्गे।।
 नमोदेवी दुर्गे शिवेभीमनादे,
सरस्वत्यरून्ध्त्यमोघस्वरूपे,
विभूतिशचिकालरात्रीसतित्वं,
नमस्ते जगद्तारिणीत्राहि दुर्गे।।

                   ।। भगवती स्तोत्रम्।।

जय भगवति देवि नमो वरदे, जयपापविनाशिनी बहुफलदे।
जयशुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे।।1।।
जयचन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे,जय अन्धकदैत्यविशोषकरे।।2।।
जय महिषविमर्दिनी शूलकरे,जय लोकसमस्तकपापहरे।
जयदेवि पितामहविष्णुनते,जय भास्करशक्रशिरोवनते।।3।।
जय षण्मुखसायुधईशनुते,जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे,जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे।।4।।
जय देवि समस्तशरीरधरे,जय नाकविदर्शिनी दुख हरे।
जय व्याधिविनाशिनी मोक्षकरे,जय वांछितदायिनी सिद्धिवरे।।5।।
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं यः पठेन्नियतःशुचिः।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा।।6।।

हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट प्रदान करने वाली और अनंत फलों को प्रदान करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो! हे शुम्भ-निशुम्भ के मुण्डों को धारण करनेवाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों को पीड़ा हरनेवाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता/करती हूं।।1।।

हे सूर्य-चंद्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान दैदीप्यमान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुर का शोषण करने वाली देवी तुम्हारी जय हो, जय हो।।2।।

हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।3।।

सशस्त्र शंकर और कार्तिकेयजी द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलनेवाली गंगारूपिणी देवी! तुम्हारी जय हो। दुख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।4।।

हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दुख हारिणी हो। हे व्याधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवांछित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।।5।।

माता के कोई भी भक्त,

जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं।।6।।

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