हिन्दू नववर्ष नवसंवत् के बाद भारत का पहला
खग्रास चन्द्र ग्रहण चैत्र शुक्ल पूर्णिमा शनिवार, 4 अप्रैल 2015 को लगभग देश के सभी हिस्सों में ग्रस्तोदय
खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा। ग्रस्तोदय (ग्रस्त उदय) मतलब जिस समय ग्रहण होगा, सूर्यास्त हो गया होगा और चन्द्र उदय
के समय ग्रहण होगा। जबकि खंडग्रास का मतलब है ग्रहण पूर्ण न दिखकर एक भाग में
ग्रहण लगा हुआ दिखाई देगा। देश में जिन स्थानों पर चन्द्रोदय शाम 7 बजकर 15 मिनट बाद होगा, वहां
ग्रहण दिखाई नहीं देगा, क्योंकि
ग्रहण शाम 7.15 तक
खत्म हो जाएगा।
भारतीय समयानुसार भूमंडल में चन्द्र ग्रहण का
स्पर्श मोक्षादि समय निम्नानुसार होगा-
ग्रहण स्पर्श- दोपहर 3 बजकर 45 मिनट
सम्मिलन- सायं 5 बजकर 24
मिनट
ग्रहण मध्य- सायं 5 बजकर 30 मिनट
उन्नमिलन- सायं 5 बजकर 36
मिनट
मोक्ष (समाप्ति)- सायं 7 बजकर 18 मिनट
पर्वकाल- 3 घंटा 30
मिनट
ग्रहण स्पर्श होने से मोक्ष होने तक के समय को
पर्वकाल कहा जाता है। अगर हम इंदौर,
उज्जैन की बात करें तो इंदौर और उज्जैन में चन्द्रोदय शाम 6 बजकर 38 मिनट और 6 बजकर 40 मिनट
पर होगा इसलिए इंदौर में शाम 6 बजकर
38 मिनट और उज्जैन
में 6 बजकर 40 मिनट ग्रस्तोदित चन्द्र ग्रहण दिखाई
देगा चूंकि शाम 7 बजकर
15 मिनट तक ग्रहण
मोक्ष (समाप्ति) का समय है इसलिए करीब 37 मिनट तक ग्रहण दिखाई देता रहेगा।कहां-कहां
दिखाई देगा ग्रहण- भारत के अलावा ग्रहण मध्य-पूर्वी एशिया, चीन, जापान, पूर्वी
रूस, हिन्द व प्रशांत
महासागर, उत्तरी और
दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में ग्रहण दिखाई देगा।
सूतक में क्या न करें- जब ग्रहण होता है तो
सूतक पालन का विधान होता है। शास्त्र अनुसार चन्द्र ग्रहण होने पर ग्रहण से पूर्व
9 घंटे सूतक माना जाता है। लोगों को चन्द्रोदय के समय से पूर्व 9 घंटे से सूतक
मानना चाहिए, जैसे
इंदौर में 6 बजकर 38 मिनट से चन्द्रोदय होगा इसलिए सूतक सुबह 9.38 से प्रारंभ हो
जाएगा।
1. सूतक काल में धार्मिक जनों को भोजन, शयन, मैथुन, गीत-संगीत, नृत्य, मनोविनोद, मूर्ति
स्पर्श आदि सांसारिक सुखों का त्याग करना चाहिए।
2. गर्भवती स्त्रियों को चाकू, कैंची या नुकीली वस्तुओं से बचना चाहिए
तथा सब्जी आदि न काटें। वृद्ध, बाल, रोगी और गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण से
4 घंटे पूर्व तक सात्विक भोजन करने की अनुमति दी गई है।
गर्भवती स्त्री के लिए खास बात है कि उन्हें
ग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योंकि
उसके दुष्प्रभाव से गर्भस्थ शिशु अंगहीन हो सकता है, गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है। मान्यता है कि इसके लिए गर्भवती के
उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है जिससे कि राहु-केतु उसका
स्पर्श न करें ताकि कोई दुष्प्रभाव न पड़े।
3. चन्द्र ग्रहण के समय भोजन निषिद्ध माना गया
है। शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के दौरान खाद्य पदार्थों, जल, भक्ष्य पदार्थ आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर भोज्य पदार्थों
को दूषित कर देते हैं जिससे विभिन्न रोग होने की आशंका रहती है। ग्रहण के समय
मनुष्य के पेट की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है। सूतक काल में किया गया भोजन अपच, अजीर्ण जैसी अनेक शिकायतें पैदा कर
शारीरिक या मानसिक हानि पहुंचा सकता है।
4. ग्रहण के समय इत्र, खुशबू, तेल लगाना, मालिश
या उबटन किया गया तो व्यक्ति को चर्म या कुष्ठ रोग हो सकता है। ग्रहण के समय
निद्रा और आलस्य से रोगी बनते हैं।
5. ग्रहण के दिन फूल-पत्ती या लकड़ी नहीं
तोड़ना चाहिए। बाल संवारना और गीले वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए। दंत धावन न करें अन्यथा
मुख में रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
शास्त्रों
की मानें तो...
स्कंद पुराण- ग्रहण के समय सूतक काल में अन्न
खाने से 12 वर्षों का एकत्र किया हुआ सभी पुण्यों का नाश हो जाता है।
देवी भागवत- ग्रहण के अवसर पर भोजन करने वाला
मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है,
उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है।क्या करें ग्रहण
के समय- ग्रहण का समय तांत्रिक और मांत्रिकों के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है।
यह मंत्र और तंत्र सिद्धियों के लिए सबसे शक्तिशाली अवसर होता है।
1. ग्रहण के समय सिद्धि तुरंत मिलती है इसलिए
तंत्र-मंत्र सिद्धि की अपेक्षा वाले लोगों को तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए प्रयास
करना चाहिए।
2. जबकि आमजनों को चाहिए कि जिस समय ग्रहण का
सूतक प्रारंभ होगा, सारे
सांसारिक कार्य बंद हो जाते हैं ऐसे में बिना मूर्ति स्पर्श किए भगवान का ध्यान, जाप, भजन और मंत्र सिद्धि करना चाहिए।
3. ग्रहण समाप्ति के बाद धार्मिक जनों को चाहिए
कि गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा आदि पवित्र नदियों या पवित्र सरोवर के जल में जो कपड़े ग्रहण
के समय पहने थे उन्हीं कपड़ों को पहनकर स्नान करें। स्नान के बाद शुद्ध चन्द्रमा के
दर्शन करें और पूजा-आरती करें, पश्चात
सात्विक भोजन करें। इन नियमों का पालन जहां भी ग्रहण दिखाई देगा, वहां किया जाना चाहिए। ऐसी जगह जहां
बादल के कारण ग्रहण दिखाई न दे,
तो भी नियमों का पालन करना चाहिए।
4. भगवान वेदव्यास के अनुसार चन्द्र ग्रहण में
किया गया पुण्य कर्म 1 लाख गुना और सूर्य ग्रहण में 10 लाख गुना फलदायी होता है।
ग्रहण के समय गंगाजल पास में होने से ग्रहण का शुभ फल 1 करोड़ गुना फलदायी होता
है।
किसी भी ग्रहण का प्रभाव ग्रहण के दिन से आगामी
6 माह तक पड़ता
है।
मेदिनीय ज्योतिष के अनुसार जानते हैं क्या होगा
ग्रहण का प्रभाव-
हस्त नक्षत्र-
चन्द्र ग्रहण कन्या राशि के हस्त नक्षत्र होने
से व्यापारी, मालवाहक
ट्रक, सैन्य वाहन, व्यापारिक वस्तुओं, चना, चावल, सूत, रुई, छिल्के वाले धान्य में तेजी के योग बनेंगे। चने और आंवला संग्रहण में
लाभ होगा जबकि शिक्षक और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए पीड़ाकारक होगा।
कन्या राशि-
चन्द्र ग्रहण कन्या राशि में होने के कारण कृषक
के लिए कष्टप्रद, स्त्रियों
को गर्भपीड़ा, जनता
में पेट रोग होंगे जबकि कवि, गायक, लेखक, विद्वजनों के लिए कष्टकारी होगा।
ग्रहण फल- शनिवार को चन्द्र ग्रहण होने से
आगामी दिनों में लोहा, सीमेंट, काला वस्त्र, तिलहन में तेजी के योग हैं। चोरों का
उपद्रव बढ़ेगा और मंत्रियों को कष्ट होने का योग है।
चैत्र मास ग्रहण फल-
चैत्र मास में ग्रहण होने से लेखकों, चित्रकारों, कलाकार, फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, गृह निर्माण करने वाले, फिल्मों में काम करने वाले, मॉडलिंग करने वाले और प्रजा को कष्ट का
सामना करना पड़ेगा।
ग्रहण स्थिति का फल- चन्द्र ग्रहण के समय कन्या
राशि में स्थित चन्द्रमा पर सूर्य,
बुध और गुरु की दृष्टि होने से शहद, घी, तेल, पीतल, सोना, सोयाबीन, हल्दी, पीले वस्त्र आदि पीली वस्तुओं में तेजी आएगी, साथ ही यह ग्रहण शासक वर्ग के लिए है
लेकिन गुरु की दृष्टि से होने से अशुभ फलों में कमी आएगी।चन्द्र ग्रहण कन्या राशि
के हस्त नक्षत्र में होने से हस्त नक्षत्र, कन्या राशि, कन्या
लग्न और रेवती नक्षत्र मीन राशि मीन लग्न वालों के लिए विशेष अशुभप्रद होगा।
ग्रहण और राशियों पर फल
मेष- शुभ फल, रोग, सुख, व्यापार वृद्धि।
वृषभ- मिश्रित फल, पद-प्रतिष्ठा में रुकावट, अपयश।
मिथुन- अशुभ, अत्यधिक मेहनत से सफलता।
कर्क- शुभ फल, लाभ, आर्थिक
पक्ष मजबूत।
सिंह- मिश्रित फल, हानि, परिवार में शुभ संदेश।
कन्या- अशुभ फल, पीड़ा, तनाव।
तुला- अशुभ फल, व्यय, नकारात्मक
विचार, हताशा।
वृश्चिक- शुभ फल, लाभ, उन्नति
धनु- मिश्रित, क्षति की आशंका।
मकर- मिश्रित फल, चिंता।
कुम्भ- मिश्रित फल, कष्ट के बाद सुख।
मीन- अशुभ फल, पीड़ा, दांपत्य
कष्ट।
सूर्य एवं चन्द्रग्रहण क्यों पड़ते हैं? सर्वविदित हैं। इसका महत्व वैज्ञानिक
दृष्टि से अत्यंत अधिक है तथा तंत्र सिद्धि के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है।
सूतक लगने की वजह से मूर्ति स्पर्श की मनाही है अत: पूजन नहीं होता। जप-पाठ तथा
हवन ग्रहण काल में किए जाते हैं। जिन मंत्रों को लाखों जप करने के बाद सिद्धि नहीं
मिलती, केवल इस काल में
जपने पर सिद्ध हो जाते हैं।दीक्षा के लिए भी सर्वोत्तम काल माना जाता है। कई ग्रह
किसी विशेष स्थान पर दिखते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार वहां ही उनका महत्व है
तथा जहां नहीं दिखते, वहां
उनका कोई महत्व नहीं है।
शनिवार, 4 अप्रैल 2015 को (चैत्र अमावस्या) खग्रास चन्द्रग्रहण है। इसी दिन
श्री हनुमान जयंती भी है। यह ग्रहण एशिया में भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका में दिखाई
देगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें