सोमवती अमावस्या कथा
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सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएँ
प्रचलित हैं। परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना
जाता है।
एक साहूकार के सात बेटे और सात ही बहुओं के साथ
एक बेटी भी थी. साहूकार के घर रोज एक जोगी आता था जिसे साहूकार की बहू भिक्षा देती
थी. उस जोगी को जब साहूकार की बेटी भिक्षा देने आती तो वह उससे भिक्षा नहीं लेता
था और कहता कि तेरे भाग्य में सुहाग की जगह दुहाग लिखा है. लड़की को उस जोगी की यह
बात बहुत बुरी लगती और एक दिन वह अपनी माँ से रोते-रोते जोगी की बात बताती है.
सारी बात सुनकर माँ कहती है कि कल जब जोगी आएगा तब मैं सुनती हूँ कि वह क्या कहता
है और क्यूँ कहता है?
अगले दिन फिर जोगी आता है तो साहूकारनी छिपकर
बैठ जाती है और लड़की को भिक्षा देने भेजती है. जोगी उससे भिक्षा नहीं लेता और फिर
वही बात दोहराता है कि तेरे भाग्य में सुहाग की बजाय दुहाग लिखा है. लड़की की माँ
बाहर निकल कर आती है और जोगी से कहती है कि एक तो हम तुझे भिक्षा देते हैं और तू
हमें गाली देता है! जोगी कहता है कि मैं गाली नहीं दे रहा हूँ जो बात सच है वही कह
रहा हूँ. इसके भाग्य में जो लिखा है मैं वही सच आपको बता रहा हूँ.
सारी बातें सुनने पर लड़की की माँ कहती है कि
जब तुझे सारी बात पता है तो इससे बचने का उपाय भी पता होगा वह बता? जोगी
कहता है कि सात समंदर पार एक धोबन रहती है जिसका नाम सोना है. वह सोमवती अमावस्या
का व्रत करती है, अगर वह आकर इसे फल दे दे तब ही इसका दुहाग टल
सकता है अन्यथा विवाह के समय सर्प काटने से इसके पति की मृत्यु हो जाएगी. सारी बात
सुनकर माँ रोने लगी और सोना धोबिन की तलाश में निकल गई.
चलते-चलते रास्ते में तेज धूप पड़ रही थी जिससे
बचने के लिए वह एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गई. उसी वृक्ष पर एक गरुड़ के बच्चे
अपने घोसलें में थे. एक साँप आया और गरुड़ के बच्चों को खाने के लिए लपका लेकिन
साहूकारनी ने उस साँप को मारकर बच्चों की रक्षा की. कुछ देर बाद गरुड़नी आई और सब
जगह खून देखकर साहूकारनी को चोंच से मारने लगी. साहूकारनी बोली कि एक तो मैंने
तेरे बच्चों को साँप से बचाया और तू मुझे ही मार रही है. सारी बातें जानने पर
गरुंड़नी बोली कि तूने मेरे बच्चों की रक्षा की है इसलिए माँग जो चाहती है.
साहूकारनी गरुड़नी से कहती है कि मुझे सात
समंदर पार सोना धोबिन के यहाँ छोड़ दो और गरुड़नी ने वैसा ही किया. साहूकारनी वहाँ
पहुंच तो गई लेकिन सोचने लगी कि इसे कैसे मनाऊं? सोना धोबिन की
भी सात बहुएँ थी लेकिन घर के काम को करने के लिए सदा आपस में ही लड़ती-झगड़ती रहती
थी. रात को जब सब सो जाते तो साहूकारनी आती और चुपके से सारा काम कर उजाला होने से
पहले चली भी जाती. सारी बहुएँ भी आपस में यही सोचती कि कौन सी बहू है जो सारा काम
कर देती है लेकिन एक-दूसरे से पूछने की हिम्मत किसी की भी नहीं होती.
काम करने की बात सोना धोबिन ने भी देखी कि आजकल
बहुएँ लड़ती भी नहीं है और काम भी सारा हो जाता है. सोना धोबिन ने सारी बहुओं को
बुलाया और पूछा कि आजकल तुम लड़ती भी नहीं हो और घर का सारा काम कौन करता है?
बहुएँ
सास से झूठ कहती हैं कि लड़ाई करने से क्या फायदा इसलिए हम मिलकर काम कर लेती हैं.
सोना धोबिन को अपनी बहुओं की बात पर विश्वास नहीं होता और वह रात में जागकर वह
स्वयं सच देखना चाहती है कि कौन काम करता है!
रात होने पर सोना धोबिन छिपकर बैठ जाती है कि
देखूँ कौन सी बहू काम करती है. रात हुई तो वह देखती है कि एक औरत चुपके से घर में
घुस रही है. वह देखती है कि उसने घर का सारा काम कर दिया है और जाने की तैयारी में
है. जैसे ही साहूकारनी जाने लगती है तो सोना धोबिन उसे रोकती है और पूछती है कि
तुम कौन हो़? और क्या चाहती हो? साहूकारनी कहती
है कि पहले तुम वचन भरो तब बताऊँगी. वह वचन भरती है तब साहूकारनी कहती है कि मेरी
बेटी के भाग्य में दुहाग लिखा है लेकिन तुम सोमवती अमावस्या करती हो तो मेरे साथ
चलकर उसे सुहाग दे दो.
सोना धोबिन वचन से बँधी थी तो वह साहूकारनी के
साथ चलने को तैयार हो जाती है. जाते हुए सोना धोबिन अपने बेटों व बहुओं से कहती है
कि मैं इस औरत के साथ इसकी बेटी को सुहाग देने जा रही हूँ लेकिन अगर मेरे पीछे से
तुम्हारे पिताजी मर जाएँ तो उन्हें तेल के कूपे में डालकर रख देना. धोबिन
साहूकारनी के घर पहुँच जाती है. साहूकरनी अपनी बेटी का विवाह करती है तो फेरों के
समय सोना धोबिन कच्चा करवा, दूध तथा तार लेकर बैठ जाती है. कुछ समय
बाद साँप आया और दूल्हे को डसने लगा तो सोना धोबिन ने करवा आगे कर तार से साँप को
बाँध दिया और साँप मर गया. अब सोना धोबिन ने लड़की को सुहाग दिया और कहा कि जितनी
अमावस्याएँ मैने की हैं उन सभी का फल साहूकार की इस लड़की को मिलेगा. अब आगे जो
अमावस्याएँ मैं करुँगी उनका फल मेरे पति व बेटों को मिलेगा.
सभी लोग सोमवती अमावस्या की जय-जयकार करने लगे.
सोना धोबिन अपने घर वापिस जाने को तैयार हुई तो साहूकारनी ने कहा कि तुमने मेरे
जमाई को जीवनदान दिया है इसलिए तुम जो चाहो माँग लो. सोना धोबिन बोली कि मुझे कुछ
नहीं चाहिए और वह चली गई. रास्ते में चलते हुए फिर से सोमवती अमावस्या आ गई उसने
पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर कहानी कही, व्रत रखा और पीपल के पेड़ की 108
बार परिक्रमा की.
पीपल के पेड़ की पूजा के बाद वह घर जाती है तो
देखती है कि उसका पति मरा पड़ा है. अब रास्ते में जो सोमवती अमावस्या उसने की थी
उसका फल अपने पति को दे दिया जिसके प्रभाव से वह पुन: जीवित हो गया. सब कहने लगे
कि तूने ऎसा क्या किया जो तेरा पति जिन्दा हो गया? वह कहती है कि
मैंने तो ऎसा कुछ नहीं किया है बस रास्ते में सोमवती अमावस्या आ गई थी जिसका मैने
व्रत किया, कहानी कही और पीपल के वृक्ष की 108
बार परिक्रमा की.
अब सारी नगरी में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि हर
कोई सोमवती अमावस्या करेगा, पूजा करेगा, व्रत रखेगा,
कहानी
कहेगा और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करेगा. हे सोमवती
अमावस्या ! जैसा आपने साहूकार की बेटी का सुहाग दिया वैसे ही सबका देना।
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