#रत्न_कब_और_ग्रहो_की_कोनसी_स्थिति_में_पहने------------
नवग्रहों में जब कोई ग्रह विशेष
शुभ देने वाला कुंडली के अनुसार होता है तब उस ग्रह में बल होना जरूरी है ग्रह में
बल न होने की स्थिति में कोई भी ग्रह शुभ फल देने वाला होकर भी अपने पूरी तरह से
शुभ फल नही दे सकता है क्योंकि ग्रह के पास बल ही नही होगा तो वह ग्रह ज्यादा से
ज्यादा शुभ फल कहा से देगा।जो ग्रह जन्मकुंडली में योग होते है शुभ भाव पति केंद्र
त्रिकोण के स्वामी होते है विशेष रूप से इन्ही केंद्र त्रिकोण के स्वामी ग्रहो को
शुभ फल देने वाला माना जाता है और इन केंद्र त्रिकोण के स्वामी ग्रहो के रत्न पहने
की सलह कुंडली के अनुसार जातक को दी जाती है जब केंद्र त्रिकोण का स्वामी ग्रह
कमजोर, पीड़ित या अस्त
होता है।
नवग्रहों में हर एक ग्रह का रत्न होता है जैसे सूर्य के लिए माणिक, चंद्रमा के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, बृहस्पति के लिए पुखराज, शुक्र के लिए ओपल, जरकिन या हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए
लहसुनिया। यह सभी रत्न ग्रहो के बल को बढ़ाने के लिए पहने जाते है।अब बात आती है कि
रत्न कब और किन स्थितियों में पहनने चाहिए?, किसी भी ग्रह का रत्न पहनने से पहले उस कुंडली
में उस ग्रह की स्थिति की जाँच जरूर करा लेनी चाहिए तभी रत्न पहनना चाहिए वरना
ग्रह की बिना जाँच कराए रत्न पहनने से नुकसान भी हो सकता है।सामान्य रूप से जो
ग्रह केंद्र का स्वामी होकर कमजोर हो तब उस केंद्र के स्वामी ग्रह का रत्न पहना जा
सकता है वह भी तब जब केंद्र का स्वामी होने के साथ ऐसा ग्रह 3, 6, 8, 12 भाव का स्वामी न
हो।
लग्नेश पंचमेश नवमेश के रत्न पहनना सदैव शुभ होता है।लग्नेश पंचमेश नवमेश के
रत्न जातक को कभी नुकशान नही देते।लग्नेश पंचमेश नवमेश नीच नही होने चाहिए यदि यह
तीनो भावेश या कोई भी ग्रह नीच राशि का हो तब उस ग्रह का रत्न कभी नही पहनना चाहिए
भले ही वह ग्रह योगकारक क्यों न हो।इसी तरह कभी भी 6, 8, 12वे भाव के स्वामी के रत्न कभी नही पहनने चाहिए
क्योंकि यह भाव किसी न किसी तरह से दुःख और अशुभ सूचक है इस कारन इन भावेशों कइ
रत्न दुःख, दुर्भाग्य
की वृद्धि करते है जिस इनके रत्न किसी भी स्थिति में नही पहने जाते।
किसी भी ग्रह
का रत्न हो वह कुंडली के अनुसार जाँच पड़ताल कराकर ही पहनना चाहिए वरना असावधानी और
अज्ञानता से किसी भी ग्रह का रत्न पहनना लाभ कई जगह नुकसान दे सकता
है।अनुकूल/योगकारक ग्रहो के रत्न उन ग्रहो के बल में वृद्धि करके उन ग्रहो
सम्बंधित शुभ फल जातक को दिलाते है।जैसे नवम भाव के स्वामी ग्रह का रत्न पहनने से
जातक कइ भाग्य की वृद्धि, भाग्योउन्नति
में सहायता नवमेश के रत्न से मिलती है।इस तरह कुंडली कइ अनुसार सही ग्रह का रत्न
पहनना ही लाभ देता अन्य नही।
किसी भी ग्रह का विशेष फल उस ग्रह की महादशा अन्तर्दशा
या ग्रह जिन ग्रहो के साथ सम्बन्ध बनाया होता है उनकी महादशा-अन्तर्दशा में मिलता
है।
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