नारायण कहते हैं- "जम्बूद्वीप में नौ वर्ष हैं। उन नावों वर्षों में
आदिपुरुष नारायण सम्पूर्ण लोकों पर अनुग्रह करने की दृष्टि से देवी सहित
निवास करते हैं। इलावृतवर्ष में भगवान श्रीहरि रुद्र रूप में विराजमान हैं।
ब्रह्मा के नेत्र से इनका पदुर्भाव हुआ है। इनकी प्रेयसी प्रिय सदा साथ
रहती हैं। उनके क्षेत्र में दूसरा पुरुष नहीं जा सकता और न घूम ही सकता है।
यदि कोई पुरुष वहाँ चला भी जाये तो तुरंत भवानी के श्राप से स्त्री रूप
प्राप्त कर लेता है। यहाँ भगवान रुद्र नित्य संकर्षण की उपासना
करते हैं। इन संकर्षण को भगवान विष्णु की तामस प्रकृति वाली चौथी मूर्ति
कहा जाता है। ये रुद्रदेव अजन्मा हैं तथा इनका मन सदैव शांत रहता है।
ऐसे ही भद्राश्ववर्ष में भद्रश्रवा अपने कुल के प्रधान प्रधान सेवकों के साथ भगवान विष्णु के हयग्रीव स्वरूप की आराधना करते हैं।
हरिवर्ष में भगवान विष्णु नृसिंह रूप से रहते हैं। पापों को नष्ट कर देना इनका स्वभाव है। भक्तों पर ये अहेतुक कृपा रखते हैं। इस प्रदेश में दावनश्रेष्ठ प्रहलाद सदा उनकी आराधना और वंदना करते हैं।
केतुमालवर्ष में भगवान श्रीहरि कामदेव रूप से विराजते हैं। वहाँ के अधिकारी पुरुष इन्हें सदा सम्मान देते हैं। इस वर्ष की अधीश्वरी समुद्रतनया लक्ष्मी हैं। ये भगवती लक्ष्मी उत्तम स्त्रोतों से सदा श्रीहरि की उपासना करती हैं।
रम्यकवर्ष में भगवान विष्णु मत्स्य रूप से रहते हैं। उनका यह स्वरूप देवताओं द्वारा वंदित है। यहाँ मनुजी निरंतर उनका स्तवन करते हैं।
हिरण्यमयवर्ष में योगेश्वर भगवान विष्णु कश्यप रूप धारण करके विराजते हैं। अर्यमा के द्वारा इनकी स्तुति व उपासना होती है।
उत्तरकुरुवर्ष में भगवान विष्णु बारह रूप धरकर विराजते हैं। इन भगवान बारह की पृथ्वी देवी निरंतर सेवा करती हैं।
किमपुरुषवर्ष में भगवान दशरथनंदन राम के रूप में विराजमान होते है। वे सदा सीता के साथ वहाँ निवास करते हैं। जहाँ भक्तश्रेष्ठ हनुमान उनकी उपासना करते हैं।
इस भारतवर्ष में मैं आदिपुरुष हूँ और तुम (नारद) मेरी उपासना करते हो।
-देवीभागवत पुराण, अष्टमस्कन्ध
हरिवर्ष में भगवान विष्णु नृसिंह रूप से रहते हैं। पापों को नष्ट कर देना इनका स्वभाव है। भक्तों पर ये अहेतुक कृपा रखते हैं। इस प्रदेश में दावनश्रेष्ठ प्रहलाद सदा उनकी आराधना और वंदना करते हैं।
केतुमालवर्ष में भगवान श्रीहरि कामदेव रूप से विराजते हैं। वहाँ के अधिकारी पुरुष इन्हें सदा सम्मान देते हैं। इस वर्ष की अधीश्वरी समुद्रतनया लक्ष्मी हैं। ये भगवती लक्ष्मी उत्तम स्त्रोतों से सदा श्रीहरि की उपासना करती हैं।
रम्यकवर्ष में भगवान विष्णु मत्स्य रूप से रहते हैं। उनका यह स्वरूप देवताओं द्वारा वंदित है। यहाँ मनुजी निरंतर उनका स्तवन करते हैं।
हिरण्यमयवर्ष में योगेश्वर भगवान विष्णु कश्यप रूप धारण करके विराजते हैं। अर्यमा के द्वारा इनकी स्तुति व उपासना होती है।
उत्तरकुरुवर्ष में भगवान विष्णु बारह रूप धरकर विराजते हैं। इन भगवान बारह की पृथ्वी देवी निरंतर सेवा करती हैं।
किमपुरुषवर्ष में भगवान दशरथनंदन राम के रूप में विराजमान होते है। वे सदा सीता के साथ वहाँ निवास करते हैं। जहाँ भक्तश्रेष्ठ हनुमान उनकी उपासना करते हैं।
इस भारतवर्ष में मैं आदिपुरुष हूँ और तुम (नारद) मेरी उपासना करते हो।
-देवीभागवत पुराण, अष्टमस्कन्ध
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