वेद को ईश्वर का निस्वास कहा जाता है !वेद से ही समस्त जगत का निर्माण हुआ है ! अत; भारतीय संस्कृति में वेद की अनुपम महिमा है ! जैसे इश्वर अनादि अपौरुषेय है वैसे ही वेद भी अनादि अपौरुषेय है ! वेद को देव पितर व मनुष्यों का सनातन चक्षु कहा गया है ! शव्द ही ब्रम्ह है ! वेद का अंत नही है !अनंता वै वेदा:! वेद व्यास जी ने वेद के ४ भाग किये है !
ऋग्वेद , युजुर्वेद , सामवेद व अथर्व वेद के नाम से लोक में विख्यात है ! वेदों की अनेको शाखाये है !क्रमश; 21, १०१, १००० व ९ शाखाये पूर्व में थी ! इस समय मात्र १२ ही शाखाये उपलव्ध है !
भगवान ऋग्वेद श्वेत वर्ण वाले है ! दो भुजाये व गर्दभ के समान मुख है !अक्षमाला से समन्वित सौम्य स्वभाव प्रसन्न सदा अध्धयन में रत रहते है !
भगवान यजुर्वेद वकरीके समान मुख वाले पीत वर्ण अक्षमाला व वज्र धारण करते है ! ऐश्वर्य व मंगल प्रदान करते है !
भगवान सामवेद नीलकमल वर्ण के समान अश्व मुख अक्षमाला व श ख धारण करते है !
उज्वल वर्ण वन्दर मुख अक्षमाला व खट्वांग धारित यजन कर्म प्रिय भगवान अथर्व वेद विद्दय मान कहे गए है ! अद्वतीय परमेश्वर रूप में उन्हें महाविष्णु कहा जाता है ! विष्णु के विविध रूप कर्म है ! जगत स्रष्टा है !
इदम विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा निदधे पदम ! समुढमस्य पा ग्व सुरे स्वाहा !!
सर्व व्यापी परमात्मा ईश्वर विष्णु ने इस जगत को धारण किया है वे ही पहले भुमि दुसरे अन्तरिक्ष और तीसरे द्युलोक में तिन पदों को स्थापित करते है !सर्वत्र व्याप्त है इनमे समस्त विश्व व्याप्त है !हम उनके निमित्त हवी प्रदान करे !
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यI व हो रात्रे पार्श्वे नक्षत्रानी रूप मस्विनौ व्यात्तम ! इष्णन्नीषIणIमुम म इष!ण सर्व लोकं म इषIण !
सम्रद्धि और सौन्दर्य तुम्हारी पत्नी के रूप में है दिन रात अगल बगल है अनन्त नक्षत्र तुमहारे रूप है !द्यावा प्रथ्वी मुख है! इकक्षा करते
समय परलोक की इक्क्षा करो मै सर्व लोकात्मक हो जाऊ -ऐसी इक्छा करो ,ऐसी इक्छा करो !
ऋग्वेद , युजुर्वेद , सामवेद व अथर्व वेद के नाम से लोक में विख्यात है ! वेदों की अनेको शाखाये है !क्रमश; 21, १०१, १००० व ९ शाखाये पूर्व में थी ! इस समय मात्र १२ ही शाखाये उपलव्ध है !
भगवान ऋग्वेद श्वेत वर्ण वाले है ! दो भुजाये व गर्दभ के समान मुख है !अक्षमाला से समन्वित सौम्य स्वभाव प्रसन्न सदा अध्धयन में रत रहते है !
भगवान यजुर्वेद वकरीके समान मुख वाले पीत वर्ण अक्षमाला व वज्र धारण करते है ! ऐश्वर्य व मंगल प्रदान करते है !
भगवान सामवेद नीलकमल वर्ण के समान अश्व मुख अक्षमाला व श ख धारण करते है !
उज्वल वर्ण वन्दर मुख अक्षमाला व खट्वांग धारित यजन कर्म प्रिय भगवान अथर्व वेद विद्दय मान कहे गए है ! अद्वतीय परमेश्वर रूप में उन्हें महाविष्णु कहा जाता है ! विष्णु के विविध रूप कर्म है ! जगत स्रष्टा है !
इदम विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा निदधे पदम ! समुढमस्य पा ग्व सुरे स्वाहा !!
सर्व व्यापी परमात्मा ईश्वर विष्णु ने इस जगत को धारण किया है वे ही पहले भुमि दुसरे अन्तरिक्ष और तीसरे द्युलोक में तिन पदों को स्थापित करते है !सर्वत्र व्याप्त है इनमे समस्त विश्व व्याप्त है !हम उनके निमित्त हवी प्रदान करे !
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यI व हो रात्रे पार्श्वे नक्षत्रानी रूप मस्विनौ व्यात्तम ! इष्णन्नीषIणIमुम म इष!ण सर्व लोकं म इषIण !
सम्रद्धि और सौन्दर्य तुम्हारी पत्नी के रूप में है दिन रात अगल बगल है अनन्त नक्षत्र तुमहारे रूप है !द्यावा प्रथ्वी मुख है! इकक्षा करते
समय परलोक की इक्क्षा करो मै सर्व लोकात्मक हो जाऊ -ऐसी इक्छा करो ,ऐसी इक्छा करो !
बहुत खुब । वेद महिमा ।
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