आ ब्रम्हन ब्राम्ह्नो ब्रह्म वर्चसी जायतामा राष्ट्रे रा जन्यः शुर इषव्यो s तिव्याधी महारथो जायताम दोग्ध्री धेनुर्वोधानाद्वानाशु; सप्ति पुरंधिर्योषा जिसनू रथेष्ठा;सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम निकामे निकामे न; पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्य्न्ताम योगक्षेमो न; कल्पताम !!
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- काव्य अनुबाद --
भारतवर्ष हमारा प्यारा अखिल विश्व से न्यारा ! सव साधन से रहे समुन्नत भगवन हे! देश हमारा !हो ब्राह्मण विद्वान् राष्ट्र में ब्रम्ह तेज व्रत धारी ! महारथी हो शुर धनुर्धर क्षत्रिय लक्ष्य प्रहारी !
गौवे भी अति मधुर दुग्ध की रहे वहाती धारा ! भारत में बलवान वृषभ हों बोझ उठाये भारी ! अश्व आशुगामी हो दुर्गम पथ में विचरणकारी ! जिनकी गति अवलोक लजाकर हो समीर भी हा रा !महिलाये हों सती सुन्दरी सद्गुन् वती सयानी ! रथारूढ़ भारत वीरो की करें विजय अगवानी ! जिनकी गुण गाथा से गुंजित दिग दिगंत हों सारा ! यज्ञ निरत भारत के सूत हों शुर सुकृत अवतारी !युवक यहाँ के सभ्य सुशिक्षित सौम्य सरल सुविचारी !जो होंगे इस धन्य राष्ट्र का भावी सुद्रढ़ सहारा ! समय समय पर आवश्यकतावस रस धन बरसाए !अन्नौष्ध में लगे प्रचुर फल और पक जाये ! योग हमारा क्षेम हमारा स्वत; सिद्ध हो सारा !भारत वर्ष हमारा प्यारा अखिल विश्व से न्यारा !!
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