यदि लग्न में राहू और ७वें भाव में केतू हो तो राहु जातक को जीवन भर किसी
ना किसी प्रकार का मानसिक कष्ट बना रहता है और केतु के कारन जातक अपने जीवन
साथी को धोखा देने का प्रयास कर सकता है।
यदि २ भाव में राहू हो और ८वें भाव में केतू हो तो राहु के कारन जातक की मृत्यु और धन हानी जीवन में अचानक होती है और केतु के कारन जातक को मरने के बाद शांति मिलती है तथा जीवन में एक से अधिक बार धन लाभ होता है। यदि ३ भाव में राहू और ९वें भाव में केतू हो तो जातक को ४० से ४२ साल की उम्र तक खूब परिश्रम करने के बाद ही जीवन यापन हो पाता है उसके बाद सफलताएं मिलने लगती है।
यदि ४ भाव में राहू और १०वें भाव में केतू हो तो जातक निश्चित ही राजनीती में प्रवेश करेगा और सफलता प्राप्त करेगा किन्तु फिर अचानक ही पतन होने लगेगा।. यदि ५ भाव में राहू तथा केतु ११वें भाव में हो तो राहु के कारन जातक को बड़ी संतान से विशेष कष्ट होगा, साथ ही आय प्राप्ति में भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है और केतु के कारन जातक अपनी प्रेमिका को धोखा देता है या धोखे का शिकार हो जाता है (ये जरूरी नहीं कि धोखा देने वाली प्रेमिका ही हो किसी से भी धोखे का शिकार होना पड़ता है)।
यदि ६वें स्थान में राहु और १२वें में केतु हो तो राहु के कारन जातक शत्रुओ को नष्ट कर देता है। छठे भाव का राहु मनुष्य का बल बुद्धि पराक्रम और अन्तःकरण स्थिर रहता है। ऐसे जातक को अपने चाचा मामा आदि से सुख की प्राप्ति नहीं होती है और केतु के कारन जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की मिजाज होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु तथा शत्रुओ पर विजय पाने वाला होता है। जातक परस्त्रीगामी होता है। इन्हे अपने जीवन काल में मुकदमों का सामना करना पड़ता है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं।
यदि ७ भाव में राहू तथा लग्न में केतू हो तो राहु के कारन जातक मतिभृम का शिकार होता है तथा अपनी उम्र से बड़ी अथवा अपने समाज से अलग स्त्रियों का दीवाना होता है तथा उसका दाम्पत्य जीवन शर्मनाक हो सकता है और केतकेतु के कारन सदा ही किसी ना किसी प्रकार मानसिक कष्ट बना रहता है।
यदि राहू ८ भाव में तथा केतु धन भाव में हो तो राहु के कारन जातक को अचानक धन लाभ होता है, किन्तु इस धन से जातक सुख शान्ति से दूर होता चला जाता है , साथ ही अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं के कारण मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर रहता है। यदि किसी स्त्री की कुंडली में ८वें भाव में राहू हो तो उस स्त्री का विवाह बहुत सोच समझकर करना चाहिए, इस राहू के कारण जातिका के पति को शादी के पश्चात् अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है या मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर होना पड़ता है और केतु के कारन जातक राजभीरू, विरोधी होता है।
यदि ९ भाव में राहू तथा सहज भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक दुःसाहसी होता है जिससे वह सदा ही अनावश्यक मुसीबतों में फंसता रहता है। इस जातक का भग्योदय ३६ से ४२ वर्ष की आयु में होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
यदि १०वें भाव में राहु और सुख भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक समाज में किसी न किसी रूप में जाना जाता है। ऐसा जातक राजनीति में माहिर होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
यदि ११वें भाव में राहु और ५वें भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक अपने भाई बहनो में या तो बड़ा या सबसे छोटा होता है। जिस मनुष्य के लाभ स्थान में राहु है तो वैसे जातक को धन की कमी नही होती है। वह अभिमानी तथा सेवको को साथ लेकर चलने वाला होता है। उसे एक पुत्र संतति अवश्य होता है। उसे राजाओ से मान और सुख प्राप्त होता है। इस स्थान में राहु मनुष्य को बहुत बड़ा आदमी नही बनने देता है। ऐसा जातक अपने इन्द्रियों को दमन करने वाला होता है और केतु के कारन जातक कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
यदि १२वें भाव में राहु और ६वें स्थान में केतु हो तो राहु के कारन जातक जितना भी काम करेगा उसे उतना नहीं मिलता है बल्कि उसके काम बिगड़ते रहते है। उसे नेत्र रोग तथा पैर में जख्म जरूर होता है। ऐसा मनुष्य झगड़ा करने वाला तथा इधर उधर घूमने वाला होता है। यह व्यक्ति अपने पैतृक निवास को छोड़कर अन्यत्र रहता है। इसे देर रात तक नींद नही आती है और केतु के कारन जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
जिस भाव में केतू किसी स्वग्रही ग्रह के साथ बैठता है उसके अच्छे या बुरे फल को चार गुना बड़ा देता है , जैसे-यदि 2 रे भाव में कोई स्वग्रही ग्रह है और उसके साथ केतू होगा तो जातक बड़ा परिवार वाला और बड़ा धनवान होगा।
यदि २ भाव में राहू हो और ८वें भाव में केतू हो तो राहु के कारन जातक की मृत्यु और धन हानी जीवन में अचानक होती है और केतु के कारन जातक को मरने के बाद शांति मिलती है तथा जीवन में एक से अधिक बार धन लाभ होता है। यदि ३ भाव में राहू और ९वें भाव में केतू हो तो जातक को ४० से ४२ साल की उम्र तक खूब परिश्रम करने के बाद ही जीवन यापन हो पाता है उसके बाद सफलताएं मिलने लगती है।
यदि ४ भाव में राहू और १०वें भाव में केतू हो तो जातक निश्चित ही राजनीती में प्रवेश करेगा और सफलता प्राप्त करेगा किन्तु फिर अचानक ही पतन होने लगेगा।. यदि ५ भाव में राहू तथा केतु ११वें भाव में हो तो राहु के कारन जातक को बड़ी संतान से विशेष कष्ट होगा, साथ ही आय प्राप्ति में भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है और केतु के कारन जातक अपनी प्रेमिका को धोखा देता है या धोखे का शिकार हो जाता है (ये जरूरी नहीं कि धोखा देने वाली प्रेमिका ही हो किसी से भी धोखे का शिकार होना पड़ता है)।
यदि ६वें स्थान में राहु और १२वें में केतु हो तो राहु के कारन जातक शत्रुओ को नष्ट कर देता है। छठे भाव का राहु मनुष्य का बल बुद्धि पराक्रम और अन्तःकरण स्थिर रहता है। ऐसे जातक को अपने चाचा मामा आदि से सुख की प्राप्ति नहीं होती है और केतु के कारन जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की मिजाज होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु तथा शत्रुओ पर विजय पाने वाला होता है। जातक परस्त्रीगामी होता है। इन्हे अपने जीवन काल में मुकदमों का सामना करना पड़ता है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं।
यदि ७ भाव में राहू तथा लग्न में केतू हो तो राहु के कारन जातक मतिभृम का शिकार होता है तथा अपनी उम्र से बड़ी अथवा अपने समाज से अलग स्त्रियों का दीवाना होता है तथा उसका दाम्पत्य जीवन शर्मनाक हो सकता है और केतकेतु के कारन सदा ही किसी ना किसी प्रकार मानसिक कष्ट बना रहता है।
यदि राहू ८ भाव में तथा केतु धन भाव में हो तो राहु के कारन जातक को अचानक धन लाभ होता है, किन्तु इस धन से जातक सुख शान्ति से दूर होता चला जाता है , साथ ही अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं के कारण मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर रहता है। यदि किसी स्त्री की कुंडली में ८वें भाव में राहू हो तो उस स्त्री का विवाह बहुत सोच समझकर करना चाहिए, इस राहू के कारण जातिका के पति को शादी के पश्चात् अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है या मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर होना पड़ता है और केतु के कारन जातक राजभीरू, विरोधी होता है।
यदि ९ भाव में राहू तथा सहज भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक दुःसाहसी होता है जिससे वह सदा ही अनावश्यक मुसीबतों में फंसता रहता है। इस जातक का भग्योदय ३६ से ४२ वर्ष की आयु में होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
यदि १०वें भाव में राहु और सुख भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक समाज में किसी न किसी रूप में जाना जाता है। ऐसा जातक राजनीति में माहिर होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
यदि ११वें भाव में राहु और ५वें भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक अपने भाई बहनो में या तो बड़ा या सबसे छोटा होता है। जिस मनुष्य के लाभ स्थान में राहु है तो वैसे जातक को धन की कमी नही होती है। वह अभिमानी तथा सेवको को साथ लेकर चलने वाला होता है। उसे एक पुत्र संतति अवश्य होता है। उसे राजाओ से मान और सुख प्राप्त होता है। इस स्थान में राहु मनुष्य को बहुत बड़ा आदमी नही बनने देता है। ऐसा जातक अपने इन्द्रियों को दमन करने वाला होता है और केतु के कारन जातक कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
यदि १२वें भाव में राहु और ६वें स्थान में केतु हो तो राहु के कारन जातक जितना भी काम करेगा उसे उतना नहीं मिलता है बल्कि उसके काम बिगड़ते रहते है। उसे नेत्र रोग तथा पैर में जख्म जरूर होता है। ऐसा मनुष्य झगड़ा करने वाला तथा इधर उधर घूमने वाला होता है। यह व्यक्ति अपने पैतृक निवास को छोड़कर अन्यत्र रहता है। इसे देर रात तक नींद नही आती है और केतु के कारन जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
जिस भाव में केतू किसी स्वग्रही ग्रह के साथ बैठता है उसके अच्छे या बुरे फल को चार गुना बड़ा देता है , जैसे-यदि 2 रे भाव में कोई स्वग्रही ग्रह है और उसके साथ केतू होगा तो जातक बड़ा परिवार वाला और बड़ा धनवान होगा।