शादी-विवाह न होने के बड़े कारण
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समय पर सभी काम बनते जाएं, ऐसा कहां होता है। ग्रह चाल में सभी फंसे हुए हैं। ग्रहों को समझने की जरूरत है। जैसे हम कोई बीमारी होने पर किसी अच्छे चिकित्सक के पास जाते हैं, वैसे ही किसी अच्छे ज्योतिषी से पहले ही अपनी जन्म कुंडली का अध्ययन करा लेना चाहिए।
क्योंकि कई दोष तब बहुत कष्ट देते हैं, जब उन दोष वाले भावों से संबंधित कोई काम होना होता है। मान लीजिए कि विवाह का ही प्रश्न बना हुआ है। सैकड़ों कुंडलियों के विश्लेषण पर सामने आया है कि विवाह के मामले में कई जातक सौभाग्यशाली नहीं होते। शादी-विवाह में विलंब के अलावा दांपत्य जीवन में भी परेशानियां बनी रहती है।
जन्म कुंडली में यदि कहीं भी शनि-सूर्य की युति है, एक-दूसरे पर दृष्टि है अथवा डिग्री (पांच डिग्री तक का दोनों में अंतर) में युति है तो ऐसे जातक में जैविक ऊर्जा की कमी होती है। ये दोनों आमने-सामने हों तो वैवाहिक जीवन के कारक शुक्र को खराब करते हैं।
इसका आशय यही है कि दांपत्य जीवन का अभाव पैदा करते हैं। देखा गया है कि ऐसे जातकों की शादी बहुत विंलब से होती है अथवा होती ही नहीं है और शादी बाद भी कष्ट बना रहता है।
यदि कुंडली में यह दोष है तो हमें सूर्य के प्रभाव को कम करना चाहिए, क्योंकि क्रूर ग्रह शनि के कोप का सामना सूर्य नहीं कर सकेगा। ऐसी स्थिति में सूर्य की शांति के लिए स्टील या चांदी के पात्र में शुद्ध जल भरकर और उसमें थोड़ी सी चीनी (शुगर) या शक्कर मिलाकर सूर्य देव का नियमित अर्घ्य देना चाहिए।
शनि की शांति के लिए छोटे उपाय काम नहीं करते और करते भी हैं तो लंबा समय ले लेते हैं, लिहाजा शनि के जाप करा लेने चाहिए। जब भी इन दोनों ग्रहों का अंतर-प्रत्यंतर आ रहा हो अथवा दोनों में कोई ग्रह इन पर से गोचर कर रहा हो, तब भी जाप करा लेने चाहिए।
इसी प्रकार शुक्र-मंगल की युति यदि लग्न या सप्तम में है तो भी विवाह में परेशानी रहती है। ऐसे जातक का विवाह होना न होना एक समान होता है।
यदि केतु सप्तमेश के साथ है अथवा सप्तम के उप स्वामी या उसके नक्षत्र स्वामी के साथ है तो भी विवाह में परेशानी रहती है। विवाह में विलंब का एक और सबसे बड़ा कारण है और वह है शनि-चंद्र का दोष। यह दोष अधिकांश लोगों में होता है और जिस भाव से संबंधित हो, उसको डेमेज कर देता है।
शादी के भाव से संबंधित होने पर कई रिश्ते आते हैं और जब थक जाएं तो शादी कराता है। चौबीस से छब्बीस साल की उम्र में शादी करा दे तो अगले दस साल तक परेशान रखता है अथवा बत्तीस साल की आयु के बाद शादी कराता है।
यह दोष यदि कैरियर से संबंधित हो जाए तो जातक बार-बार शून्य से शुरूआत करता है और फिर वहीं आ जाता है अथवा उसे नौकरी या कारोबार में लाभ न के बराबर होता है। विवाह के मामले में महिलाओं के लिए शुक्र और पुरुषों के लिए मंगल की स्थिति जरूर देख लेनी चाहिए। लिहाजा किसी सुयोग्य ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण कराने के बाद खराब ग्रहों की हमेशा शांति ही करानी चाहिए।
उनके लिए रत्न धारण नहीं करना चाहिए। रत्न शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ाने के लिए होते हैं और जाप-अनुष्ठान अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम करने के लिए।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि जन्म कुंडली के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए वैदिक पद्धति के अलावा कृष्णमूर्ति पद्धति के जानकार को भी कुंडली विश्लेषण करवायें क्योंकि कई बार सभी ग्रह कुंडली में ठीक नजर आते हैं, फिर भी शादी या कोई काम नहीं हो रहा होता है, ऐसे में कृष्णमूर्ति पद्धति में सूचकों या कारकों के माध्यम से पता चल जाता है कि वास्तव में वह काम होना भी है या नहीं।
🍁🍁🍁जय श्री राम🍁🍁
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समय पर सभी काम बनते जाएं, ऐसा कहां होता है। ग्रह चाल में सभी फंसे हुए हैं। ग्रहों को समझने की जरूरत है। जैसे हम कोई बीमारी होने पर किसी अच्छे चिकित्सक के पास जाते हैं, वैसे ही किसी अच्छे ज्योतिषी से पहले ही अपनी जन्म कुंडली का अध्ययन करा लेना चाहिए।
क्योंकि कई दोष तब बहुत कष्ट देते हैं, जब उन दोष वाले भावों से संबंधित कोई काम होना होता है। मान लीजिए कि विवाह का ही प्रश्न बना हुआ है। सैकड़ों कुंडलियों के विश्लेषण पर सामने आया है कि विवाह के मामले में कई जातक सौभाग्यशाली नहीं होते। शादी-विवाह में विलंब के अलावा दांपत्य जीवन में भी परेशानियां बनी रहती है।
जन्म कुंडली में यदि कहीं भी शनि-सूर्य की युति है, एक-दूसरे पर दृष्टि है अथवा डिग्री (पांच डिग्री तक का दोनों में अंतर) में युति है तो ऐसे जातक में जैविक ऊर्जा की कमी होती है। ये दोनों आमने-सामने हों तो वैवाहिक जीवन के कारक शुक्र को खराब करते हैं।
इसका आशय यही है कि दांपत्य जीवन का अभाव पैदा करते हैं। देखा गया है कि ऐसे जातकों की शादी बहुत विंलब से होती है अथवा होती ही नहीं है और शादी बाद भी कष्ट बना रहता है।
यदि कुंडली में यह दोष है तो हमें सूर्य के प्रभाव को कम करना चाहिए, क्योंकि क्रूर ग्रह शनि के कोप का सामना सूर्य नहीं कर सकेगा। ऐसी स्थिति में सूर्य की शांति के लिए स्टील या चांदी के पात्र में शुद्ध जल भरकर और उसमें थोड़ी सी चीनी (शुगर) या शक्कर मिलाकर सूर्य देव का नियमित अर्घ्य देना चाहिए।
शनि की शांति के लिए छोटे उपाय काम नहीं करते और करते भी हैं तो लंबा समय ले लेते हैं, लिहाजा शनि के जाप करा लेने चाहिए। जब भी इन दोनों ग्रहों का अंतर-प्रत्यंतर आ रहा हो अथवा दोनों में कोई ग्रह इन पर से गोचर कर रहा हो, तब भी जाप करा लेने चाहिए।
इसी प्रकार शुक्र-मंगल की युति यदि लग्न या सप्तम में है तो भी विवाह में परेशानी रहती है। ऐसे जातक का विवाह होना न होना एक समान होता है।
यदि केतु सप्तमेश के साथ है अथवा सप्तम के उप स्वामी या उसके नक्षत्र स्वामी के साथ है तो भी विवाह में परेशानी रहती है। विवाह में विलंब का एक और सबसे बड़ा कारण है और वह है शनि-चंद्र का दोष। यह दोष अधिकांश लोगों में होता है और जिस भाव से संबंधित हो, उसको डेमेज कर देता है।
शादी के भाव से संबंधित होने पर कई रिश्ते आते हैं और जब थक जाएं तो शादी कराता है। चौबीस से छब्बीस साल की उम्र में शादी करा दे तो अगले दस साल तक परेशान रखता है अथवा बत्तीस साल की आयु के बाद शादी कराता है।
यह दोष यदि कैरियर से संबंधित हो जाए तो जातक बार-बार शून्य से शुरूआत करता है और फिर वहीं आ जाता है अथवा उसे नौकरी या कारोबार में लाभ न के बराबर होता है। विवाह के मामले में महिलाओं के लिए शुक्र और पुरुषों के लिए मंगल की स्थिति जरूर देख लेनी चाहिए। लिहाजा किसी सुयोग्य ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण कराने के बाद खराब ग्रहों की हमेशा शांति ही करानी चाहिए।
उनके लिए रत्न धारण नहीं करना चाहिए। रत्न शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ाने के लिए होते हैं और जाप-अनुष्ठान अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम करने के लिए।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि जन्म कुंडली के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए वैदिक पद्धति के अलावा कृष्णमूर्ति पद्धति के जानकार को भी कुंडली विश्लेषण करवायें क्योंकि कई बार सभी ग्रह कुंडली में ठीक नजर आते हैं, फिर भी शादी या कोई काम नहीं हो रहा होता है, ऐसे में कृष्णमूर्ति पद्धति में सूचकों या कारकों के माध्यम से पता चल जाता है कि वास्तव में वह काम होना भी है या नहीं।
🍁🍁🍁जय श्री राम🍁🍁
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