जाने रहस्य। "लव-कुश जन्म कथा"
के समय
"निर्जला
एकादशी का वर्णन"
माता सीता (शक्ति)
वनदेवी के रुप में बाल्मिकजी आश्रम में रह
रही
गर्भवती सीताजी के जब प्रसव का समय आया...
तब आदिशक्तियोगमाया ....
(दाईं) बन बाल्मिक
आश्रम में आ गई और पूरे आश्रम में ही योगमाया का पहरा आरम्भ हो गया।
यह पावन दिन
"ज्येष्ठ-शुक्ल-एकादशी" यानि
"निर्जला-एकादशी"
नाम से जाना जाता है।
"क्योंकि
सीताजी ने प्रसव-पीडा महसूस होते ही
जल का भी त्याग कर दिया था"
इसीलिए यह दिन "निर्जला-एकादशी"
कहलाता है
योगमाया ने "आया-रुप" में आते
ही
आश्रम में सीताजी की सभी सेविकाओं को
सीता-कुटी से बाहर निकाल अन्दर से दरवाजा
बन्द कर दिया
योगमाया के प्रभाव से ही सीताजी भी अचेत
हो गई थी
तीखी गर्मी में दिन के 12 बजने वाले थे...
तभी सीताजी के गर्भ से एक यक्ष-शिशु ने
जन्म लिया
सीताजी के नवजात-शिशु को यक्ष-योनि में
देखते ही योगमाया ने उस बालक को एक कपडे में लपेट लिया और धीरे से
दरवाजा खोल आकाश-मार्ग की ओर उड चली।
जब आश्रम की सेविकाओं ने दाईं को बच्चे
सहित आकाश की ओर भागते देखा...तो वे रोती-चिखती चिल्लाती बाल्मिकजी के पास पहुँची
और जोर जोर से रोते हुए...नवजात शिशु के गायब होने की खबर देने लगी।
तब बाल्मिकजी ने उन सेविकाओं को डाँटते
हुए चुप करा दिया कि बच्चा तो मेरे पास है..फिर बेमतलब का
शौर, रोना धोना किसलिए।
बाल्मिकजी को भय था कि सेविकाओं के तीखे
रुदन क्रन्दन का शौर...बाल्मिक आश्रम के बाहर शत्रुघ्न की सेना के पडाव तक
पहुँचेगा तो
खबर अयोध्यापति राम तक भी पहुँचेगी
सभी सेविकाएँ डर से सकपका चुप हो, अपने अन्य कामों में लग गई।
लेकिन बाल्मिकजी चिन्तित हो उठे
सेविकाओं को तो डाँट कर चुप करा
दिया..लेकिन जब सीताजी अपने बालक को माँगेगी, तब क्या होगा?
इस प्रकार चिन्तित बाल्मिकजी ने भी तुरन्त
ही
योगसमाधि धारण कर आदिशक्तियोगमाया का
ध्यान लगाया
और ध्यान-समाधि के दौरान ही योगमाया की
देवकृपा से
बाल्मिकजी की हथेली में दो बून्दें अमृत
की आ छलकी
बाल्मिकजी ने भी तुरन्त ही पास में रखे
घास के बने
दो खिलौनों पर मन्त्रोंचार सहित उन अमृत
की बून्दों का प्रयोग किया और योगमाया के प्रभाव से
वे दोनों खिलौने भी जिवित शिशु रुप में
बदल गए।
तभी बाल्मिकजी फुरती से उठे...दोनों शिशुओं
को बगल में थामें सीताजी कुटी की ओर दौडते गए तथा दोनों शिशुओं को
सीताजी की बगल में लिटाते हुए..
तुरन्त उल्टे पाँव भागते हुए अपनी कुटी
में आ गए।
जैसे शिशु सीताजी की बगल में गए, उसी पल योगमाया का पहरा भी खत्म हुआ और
दोनों नवजात शिशु रोने लगे
उन लाडले कुमारों के रुदन से सीताजी को
होश आया और
अपनी गोद में दो शिशुओं को देख गदगद् हो
उठी
महर्षि बाल्मिक आज्ञा से ही शत्रुघ्न ने
दोनों बच्चों का नामकरण संस्कार पूरा कराते हुए हीरे-मोतियों की माला से
बच्चों का अभिनन्दन किया और
बाल्मिकजी ने उन बच्चों को लव और कुश नाम
से पुकारा।
लेकिन शत्रुघ्न भी बनदेवी रुपी सीताजी को
पहचान नहीं पाया।
सिया
बर राम चन्द्र की जय
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