गुरुवार, 11 मई 2017

---क्या खूब लिखा है -उद्बोधन



बड़ा कठिन दौर है शिवा राणा के इस देश में।

ये कौन घूम रहेे हैं रहनुमाओ के भेस में।
इनके पास इंसानी जानों की क्या कीमत है?
नित नित मारे जा जवानों की क्या कीमत है?
इन्हें क्या मालूम नही कितना जहर है हवाओ में?
क्या मालूम नहीं कितनी धुंध है फिज़ाओ में?
इन्हें क्या दिखता नही नित नित घटता जल ।
इन्हें क्या दिखता नही धूँ धूँ जलता थल।
बस लुभाते है लोगो को हल्के सस्ते वादों में।
क्यों एक मजबूत राष्ट्र नही है इनके नेक इरादों में।
जिन हाथो को काम चाहिए वो लोग भिखारी बन रहे।
कर्ज़ा माफी मुफ्त का राशन सब महामारी बन रहे।
आज अलीगढ़ के ताले ,फ़िरोज़ की चूडी रो गई।
चाइना के फाटकों के आगे, शिवाकाशी खो गई।
ये बेरहम सवाल है इसको तुम यू ही मत टालो।
जिन हाथो को काम चाहिए उनमे तुम रोटी मत डालो।
वरना एक दिन देश का स्वाभिमान मर जायेगा।
फिर वतन पर मिटने वाला जन्म नही ले पायेगा ।
बहुत बड़ा लौह इरादा होना बहुत जरूरी है।
कुछ कहना तो नही चाहता पर कहना अब मजबूरी है।
देश को अब आज़ाद कर दो लोक लुभावन नारो से।
चाहे वोट नही मिले तुम भिड़ जाओ गद्दारों से।
लोह पुरुष तुम, युग पुरुष हो इतना काम दिखा जाओ।
काम और स्वाभिमान के दीपक नए जला जाओ।
भीख बाटना बन्द करो और उद्यमिता का नारा दो।
स्वाभिमान जगा हर दिल को, हिंदुस्तान हमारा दो।
उस शिक्षा को नष्ट कर दो जो आतंकवाद उगाती है।
उस प्रणाली को फेक उखाड़ो जो नक्सलवाद जगाती है।
अब पत्तो को मत सींचो ,अब जड़ों पर चोट करो।
जनता से कह दो ,चाहे न करो चाहे वोट करो।



-----क्या खूब लिखा है -
*आहिस्ता चल जिंदगी,अभी*
*कई कर्ज चुकाना बाकी है*
*कुछ दर्द मिटाना बाकी है*
*कुछ फर्ज निभाना बाकी है*
*रफ़्तार में तेरे चलने से*
*कुछ रूठ गए कुछ छूट गए*
*रूठों को मनाना बाकी है*
*रोतों को हँसाना बाकी है*
*कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए*
*कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए*
*उन टूटे -छूटे रिश्तों के*
*जख्मों को मिटाना बाकी है*
*कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं*
*कुछ काम भी और जरूरी हैं*
*जीवन की उलझ पहेली को*
*पूरा सुलझाना बाकी है*
*जब साँसों को थम जाना है*
*फिर क्या खोना ,क्या पाना है*
*पर मन के जिद्दी बच्चे को*
*यह बात बताना बाकी है*
*आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी*
*कई कर्ज चुकाना बाकी है*
*कुछ दर्द मिटाना बाकी है*
*कुछ फर्ज निभाना बाकी है !*

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