काल भैरव मंत्र के फायदे
भगवान शिव के स्वरूप काल भैरव की
उपासना जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर करती है। भैरवाष्टमी के दिन
तंत्र-मंत्रों का प्रयोग कर आप अपने व्यापार, जीवन में आने वाली कठिनाइयों, शत्रु पक्ष से होने वाली दिक्कतों, बाधा, मुकदमें में जीत आदि के लिए काल भैरव की उपासना का लाभ मिलता है। इसका
वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है कि भैरव उपासना से जीवन की हर मुश्किल आसान हो
जाती है। इस लेख में हम आपको आगे बताएंगे काल भैरव की उपासना के लिए मंत्र और
साधना के लाभ।
रुके हुए काम के लिए मंत्र
अलग-अलग कार्य सिद्धि के लिए
भैरव उपासना के कई मंत्र है। यदि आपका कोई काम रुका हुआ है तो kओम ब्रह्म काल
भैरवाय फटl मंत्र का जप करें। यदि आपको या
आपकी संतान को किसी भय और बाधा से छुटकारा पाना है तो kओम भयहरणं च भैरव:l मंत्र का जप आपको 24 घंटे के अंदर लाभ देगा।
मुकदमे में जीत के लिए मंत्र
यदि आप कोर्ट कचहरी के चक्कर
लगाकर परेशान हैं और आपके मामले में सालो-साल बाद भी कोई हल नहीं निकल रहा तो kऊं हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।l मंत्र से काल भैरव की साधना
करें। इस मंत्र की कम से कम 11 मात्रा करने से तुरंत लाभ
प्राप्त होगा।
भैरव उपासना के लिए दिन
भैरव की उपासना के लिए उपयुक्त
दिन रविवार माना गया है।आप मंगलवार और शनिवार को भी पूजा कर सकते हैं। अर्ध
रात्रि (रात12 बजे) के समय की गई भैरव उपासना विशेष फल
प्रदान करने वाली होती है।
वर्तमान में भैरव की उपासना बटुक
भैरव और काल भैरव के रूप में प्रचलित है। तंत्र साधना में भैरव के आठ स्वरूप की
उपासना की बात कही गई है। ये रूप असितांग भैरव, रुद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव संहार भैरव। कालिका पुराण में भी भैरव को शिवजी का गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता
है। यहां भी भैरव के आठ रूप को पूजनीय माना गया है।
भैरव की उत्पत्ति
शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष
मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को दोपहर में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति
हुई थी। इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार अंधकासुर दैत्य अपनी सीमाएं पार कर रहा था। यहां तक कि एक बार
घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव के ऊपर हमला करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके
संहार के लिए लिए शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई।
पूजन विधि
भैरव उपासना के लिए एक चौमुखा
मिट्टी या पीतल का दीपक लें। इसमें सरसों के तेल का चौमुखा चिराग जलाएं। उपासक का
मुंह पूजन करते समय पूरब में होना चाहिए। साथ ही उपासक को लाल रंग के आसान पर
बैठना चाहिए। भैरव का आह्वान कर स्फटिक की माला से भैरव मंत्र का जप करें। जप पूरा
होने के बाद भोग लगाए और आरती करके प्रसाद बांट दें।
भैरव साधना क्यों
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