नवरात्र में सृष्टि के मूल 'कन्याÓ पूजन का विधान
शीतला
माता पुजा (बासोड़ा) विशेष
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इस
वर्ष बासोड़ा (शीतलाष्टमी) सोमवार ( २० मार्च, २०१७) को मनाया जाएगा। इससे पहले रविवार को
घरों में विभिन्न पकवान बनाए जाएंगे। शीतलाष्टमी पर शीतला माता के भोग के लिए पुए, पापड़ी, राबड़ी, लापसी और गुलगुले सहित विभिन्न
पकवान तैयार किए जाएंगे।
सोमवार
को महिलाएं शीतला माता की पूजा-अर्चना कर उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाकर
परिजनों की सुख-समृद्धि की कामना करें।
भारतीय
संस्कृति में जितने भी पर्व-उत्सव मनाए जाते हैं। उनका संबंध ऋतु, स्वास्थ्य, सद्भाव और भाईचारे से है। होली के
बाद मौसम का मिजाज बदलने लगता है और गर्मी भी धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर आ जाती है।
बासोड़ा मूलतः इसी अवधारणा से जुड़ा पर्व है।
इस
दिन ठंडे पकवान खाए जाते हैं। राजस्थान में बाजरे की रोटी, छाछ, दही का सेवन शुरू हो जाता है ताकि
गर्मी के मौसम और लू से बचाव हो सके। शीतला माता के पूजन के बाद उनके जल से आंखें
धोई जाती हैं। यह हमारी संस्कृति में नेत्र सुरक्षा और खासतौर से गर्मियों में
आंखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है।
शीतला
माता का पूजन करने से सकारात्मकता का संचार होता है। मस्तक पर तिलक लगाने का मतलब
है अपने दिमाग को ठंडा रखो। जल्दबाजी से काम न लो। विवेक और समझदारी से ही फैसला
लो। क्रोध,
तनाव और
चिंता को पीछे छोड़कर वर्तमान को संवारो।
बासोड़ा
के दिन नए मटके, दही जमाने
के कुल्हड़,
हाथ से
चलने वाले पंखे लाने व दान करने का भी प्रचलन है। यह परंपरा बताती है कि हमारे
पूर्वज ऋतु परिवर्तन को स्वास्थ्य के साथ ही परोपकार, सद्भाव से भी जोड़कर रखते थे। यह
प्रचलन तब से है जब कूलर, फ्रीज, एसी जैसे उपकरणों का आविष्कार भी
नहीं हुआ था।
पूजा
विधि👉 इस दिन सुबह एक थाली में राबड़ी, रोटी, चावल, दही, चीनी, मूंग की दाल, बाजरे की खिचड़ी, चुटकी भर हल्दी, जल, रोली, मोली, चावल, दीपक, धूपबत्ती और दक्षिणा आदि सामग्री
से मां शीतला का पूजन करना चाहिए। पूजन किया हुआ जल सबको आंखों से लगाना चाहिए ।।
वासंतिक नवरात्र इस बार आठ दिन का, 29
मार्च से होगा शुरू
नवरात्र
व्रत का पारन दशमी तिथि अर्थात उदया तिथि के अनुसार छह अप्रैल को किया जाएगा।
नवरात्र नवमी तिथि पांच मई को दोपहर 12.51 बजे तक है। अत: हवन इसके पूर्व ही कर लेना
चाहिए।
वाराणसी
(जेएनएन)। भारतीय नववर्ष के प्रथम दिन से प्रारंभ होने वाला वासंतिक नवरात्र इस
बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 29 मार्च से प्रारंभ हो रहा है जो पांच अप्रैल
रामनवमी तक चलेगा। वासंतिक नवरात्र आठ दिन का होगा तथा द्वितीया तिथि की क्षय होगी।
नवरात्र
व्रत का पारन दशमी तिथि अर्थात उदया तिथि के अनुसार छह अप्रैल को किया जाएगा।
नवरात्र नवमी तिथि पांच मई को दोपहर 12.51 बजे तक है। अत: हवन इसके पूर्व ही कर लेना
चाहिए।
श्री पं. द्विवेदी के अनुसार इस बार 22 मार्च को को मां जगदंबा का आगमन
नौका पर हो रहा है जिसका फल सर्व कल्याण व मंगलकारी है। वहीं गमन भी 22 मार्च को हाथी पर हो रहा है। यह
भी बड़ा ही शुभ है। अर्थात इस बार बारिश के अच्छे संकेत हैं। सब मिलाकर माता का
आगमन व गमन दोनों बुधवार को हो रहा है जो अतिशुभ योग है। ऐसा कम ही देखने को मिलता
है।
नवरात्र
में घट स्थापन का मुहूर्त 29 मार्च को सुबह 5.30 बजे से 6.30 के मध्य श्रेयस्कर है। चूंकि इस
बार के नवरात्र में प्रतिपदा तिथि सुबह 6.33 बजे तक ही है। इसके बाद अनुदया द्वितीया तिथि
लग जाएगी। शास्त्रों के अनुसार घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में ही होना चाहिए।
प्रतिपदा
तिथि विशेष पर अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सुबह स्नानादि कर्म के पश्चात हाथ
में जल,
पुष्प और
अक्षत लेकर संकल्प के साथ ब्रह्माजी का आह्वान कर आचमन पाद्य, अघ्र्य स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य से पूजन करना
चाहिए। पूजन के उपरांत नवीन पंचांग से उस वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनादीप आदि का संवत्सर निवास और
फलादीप आदि के फल श्रवण करना चहिए। निवास स्थान पर ध्वजा, पताका तोरण आदि सुशोभित लगाकर घट
स्थापन कर व्रत का संकल्प लेकर गणपति तथा मात्रिका पूजन करना चाहिए। फिर वरूण का
पूजन कर माता भगवती का आह्वïान करना चाहिए। उसके बाद नवग्र्रह पूजन, षोडश मात्रिका की स्थापना करनी
चाहिए। इसके बाद माता दुर्गा का विधिवत पूजन-अर्चन करना चाहिए। नवरात्रि में कन्या
पूजन का भी विशेष महत्व है।
पूजा-पाठ करते समय इसलिए ढकते हैं सिर
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हर धर्म में पूजा-पाठ करते वक्त सिर को ढकने का प्रावधान है। फिर चाहे मंदिर हो, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च…कहीं पर कपड़े से ढककर तो कहीं पर टोपी लगाकर सिर को ढक लिया जाता है।
1. आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी जैसे रोगों को जन्म देती है। इसलिए इन सब से बचने के लिए औरतें और पुरुष अपना सिर ढक लेते हैं।
2. साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्न सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है।
3. यह भी मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए।
4. इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।
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हर धर्म में पूजा-पाठ करते वक्त सिर को ढकने का प्रावधान है। फिर चाहे मंदिर हो, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च…कहीं पर कपड़े से ढककर तो कहीं पर टोपी लगाकर सिर को ढक लिया जाता है।
1. आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी जैसे रोगों को जन्म देती है। इसलिए इन सब से बचने के लिए औरतें और पुरुष अपना सिर ढक लेते हैं।
2. साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्न सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है।
3. यह भी मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए।
4. इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।
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