आप सभी लोगों को हिन्दू नव बर्ष , नवरात्रि व राम नवमी पर्व की हार्दिक
शुभकामनायें|
#मित्रों-----जय श्री राधे कृष्ण
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
गोविन्द नाम लेकर, गोपाल नाम लेकर, ही प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
श्रीगंगा जी का तट हो, यमुना का वंशीवट
हो ।
मेरा सावरा निकट हो, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
श्रीवृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख मुख
में तुलसीदल हो ।
विष्णु चरण का जल हो, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
संमक्ष सावरा खड़ा हो, मुरली का सुर
भरा हो ।
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
सर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पे काली
लट हो ।
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
केसर तिलक हो आला, मुख चन्द्र सा
उजाला ।
डालूं गले में माला, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
कानों जड़ाऊ बाली, लटके लटी हों
काली ।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
पीताम्बरी कसी हो, होठों पे कुछ
हंसी हो ।
छवि यह ही मन बसी हो, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
पंचरंगी कांछ्नी हो, पट पीट से तनी
हो ।
मेरी बात सब बनी हो, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
पग धो तृषा मिटाऊँ, तुलसी का पत्र
पाऊं ।
सर चरण राज लगाऊँ, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
कान्हा अवश्य आना, राधा को साथ
लाना ।
दर्शन मुझे दिखाना, जब प्राण तन से निकले
।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
जब कंठ प्राण आवे, कोई रोग न सतावे
।
यम दरस न दिखावे, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
मेरे प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले
मुख से ।
बच जाऊँ घोर दुःख से, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम! भूल
जाना ।
मुरली की धुन सुनाना, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
एक दास की है अर्जी, खुद गरज की है
गरजी ।
आगे तुम्हारी मर्जी, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
सुधि होवे ना ही तन की, तैयारी हो गमन
की ।
लकड़ी हो ब्रज के वन की, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
यह नेक सी अरज है, मानों तो क्या
हरज है ।
कुछ आपका फरज है, जब प्राण तन से
निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
गोविन्द नाम लेकर, गोपाल नाम लेकर, ही प्राण तन से
निकले ।।
☆⭐☆ jαι ѕняєє кяιѕниα
☆⭐☆ Զเधे Զเधे
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