शनिवार, 28 जनवरी 2017

नवग्रहो का सम्मान कर सुधारें अपना घर - जीवन



ज्योतिष के अनुसार नौ (९) आदतों से नवग्रहो का सम्मान कर सुधारें अपना घर - जीवन :🙏


१)👉::
अगर आपको कहीं पर भी थूकने की आदत है तो यह निश्चित है
कि आपको यश, सम्मान अगर मुश्किल से मिल भी जाता है तो कभी टिकेगा ही नहीं . wash basin में ही यह काम कर आया करें ! यश,मान-सम्मान में अभिवृध्दि होगी।

२)👉::
जिन लोगों को अपनी जूठी थाली या बर्तन वहीं उसी जगह पर छोड़ने की आदत होती है उनको सफलता कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती.!
बहुत मेहनत करनी पड़ती है और ऐसे लोग अच्छा नाम नहीं कमा पाते.! अगर आप अपने जूठे बर्तनों को उठाकर उनकी सही जगह पर रख आते हैं तो चन्द्रमा और शनि का आप सम्मान करते हैं ! इससे मानसिक शांति बढ़ कर अड़चनें दूर होती हैं।

३)👉::
जब भी हमारे घर पर कोई भी बाहर से आये, चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला, उसे स्वच्छ पानी ज़रुर पिलाएं !
ऐसा करने से हम राहु का सम्मान करते हैं.!
जो लोग बाहर से आने वाले लोगों को हमेशा स्वच्छ पानी पिलाते हैं उनके घर में कभी भी राहु का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.! अचानक आ पड़ने वाले कष्ट-संकट नहीं आते।
 
४)👉::
घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्यों जैसे ही होते हैं, उन्हें भी प्यार और थोड़ी देखभाल की जरुरत होती है.!
जिस घर में सुबह-शाम पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध, सूर्य और चन्द्रमा का सम्मान करते हुए परेशानियों का डटकर सामना कर पाने का सामर्थ्य आ पाता है ! परेशानियां दूर होकर सुकून आता है।
जो लोग नियमित रूप से पौधों को पानी देते हैं, उन लोगों को depression, anxiety जैसी परेशानियाँ नहीं पकड़ पातीं.!

५)👉::
जो लोग बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते, मोज़े इधर-उधर फैंक देते हैं, उन्हें उनके शत्रु बड़ा परेशान करते हैं.!
इससे बचने के लिए अपने चप्पल-जूते करीने से लगाकर रखें, आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी।

६)👉::
उन लोगों का राहु और शनि खराब होगा, जो लोग जब भी अपना बिस्तर छोड़ेंगे तो उनका बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा, सिलवटें ज्यादा होंगी, चादर कहीं, तकिया कहीं, कम्बल कहीं ?
उसपर ऐसे लोग अपने पुराने पहने हुए कपडे़ तक फैला कर रखते हैं ! ऐसे लोगों की पूरी दिनचर्या कभी भी व्यवस्थित नहीं रहती, जिसकी वजह से वे खुद भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं.!
इससे बचने के लिए उठते ही स्वयं अपना बिस्तर समेट दें.! जीवन आश्चर्यजनक रूप से सुंदर होता चला जायेगा।

७)👉::
पैरों की सफाई पर हम लोगों को हर वक्त ख़ास ध्यान देना चाहिए, जो कि हम में से बहुत सारे लोग भूल जाते हैं ! नहाते समय अपने पैरों को अच्छी तरह से धोयें, कभी भी बाहर से आयें तो पांच मिनट रुक कर मुँह और पैर धोयें.!
आप खुद यह पाएंगे कि आपका चिड़चिड़ापन कम होगा, दिमाग की शक्ति बढे़गी और क्रोध
धीरे-धीरे कम होने लगेगा.! आनंद बढ़ेगा।

८)👉::
रोज़ खाली हाथ घर लौटने पर धीरे-धीरे उस घर से लक्ष्मी चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं.!
इसके विपरीत घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर में बरकत बनी रहती है.!
उस घर में लक्ष्मी का वास होता जाता है.! हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है.!
ऐसे घर में सुख, समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है.!

९)👉..
जूठन बिल्कुल न छोड़ें । ठान लें । एकदम तय कर लें। पैसों की कभी कमी नहीं होगी।
अन्यथा नौ के नौ गृहों के खराब होने का खतरा सदैव मंडराता रहेगा। कभी कुछ कभी कुछ । करने के काम पड़े रह जायेंगे और समय व पैसा कहां जायेगा पता ही नहीं चलेगा।
🙏
अच्छी बातें बाँटने से दोगुनी तो होती ही हैं
- अच्छी बातों का महत्त्व समझने वालों में आपकी इज़्जत भी बढ़ती है🙏

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

👌🏻मृत्युभोज से ऊर्जा नष्ट होती है



                                            👌🏻मृत्युभोज से ऊर्जा नष्ट होती है


महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि .....मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों
और तन, मन, धन से सहयोग करें लेकिन......बारहवीं या तेरहवीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें।
महाभारत का युद्ध होने को था, अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया ।
दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े, तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि
🍁 ’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’  अर्थात् "जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए।
🍁 लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।"
🍁 हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है,
जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अन्त्येष्टि है।
इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया तो सत्रहवाँ संस्कार 'तेरहवीं का भोज' कहाँ से आ टपका।
किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है।
बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
लेकिन हमारे समाज का तो ईश्वर ही मालिक है। इसीलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती,
पं0 श्रीराम शर्मा,  /स्वामी विवेकानन्द
जैसे महान मनीषियों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से विरोध किया है।
जिस भोजन बनाने का कृत्य....रो रोकर हो रहा हो.... जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर....
आटा गूँथा जाता तो रोकर.... एवं पूड़ी बनाई जाती है तो रो रोकर.... यानि हर कृत्य आँसुओं से भीगा हुआ।
ऐसे आँसुओं से भीगे निकृष्ट भोजन अर्थात बारहवीं एवं तेरहवीं के भोज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर समाज को एक सही दिशा दें।
जानवरों से भी सीखें, जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा नहीं खाता है। जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव, जवान आदमी की मृत्यु पर हलुवा पूड़ी पकवान खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है।
इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता।
यदि आप इस बात से सहमत हों, तो आप आज से संकल्प लें कि आप किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करेंगे और मृत्युभोज प्रथा को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे
हमारे इस प्रयास से यह कुप्रथा धीरे धीरे एक दिन अवश्य ही पूर्णत: बंद हो जायेगी
🍁 सभी सम्मानित सदस्यों से परम आग्रह है कि
इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें। मृत्युभोज समाज में फैली कुरीति है व समाज के लिये अभिशाप है ।
🙏 मानव समाज हित में

दशा-महादशाओं का फल

          दशा-महादशाओं का फल



ज्योतिष में अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी दो प्रकार की महादशाएँ मान्य हैं। अष्टोत्तरी अर्थात 108 वर्षों में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं तथा विंशोत्तरी अर्थात 120 वर्ष में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं।
आजकल विंशोत्तरी महादशा प्रणाली ही गणना में है। इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह की दशाओं की अवधि अलग-अलग होती है। क्रमानुसार - सूर्य - 6 वर्ष, चंद्र-10 वर्ष, मंगल - 7 वर्ष, राहु - 18 वर्ष, गुरु - 16 वर्ष, शनि-19 वर्ष, बुध - 17 वर्ष, केतु - 7 वर्ष, शुक्र - 20 वर्ष
* जन्म के विचारानुसार जातक ने जिस ग्रह की महादशा में जन्म लिया है, उससे अगले क्रम में दशाएँ गिनी जाती हैं।
* सामान्यत: 6, 8, 12 के स्वामी के साथ उपस्थित ग्रह या 6, 8, 12 स्थान में उपस्थित ग्रहों की महादशा अच्छा फल नहीं देती है।
* केंद्र व त्रिकोण में स्थित ग्रहों की दशा-महादशा अच्छा फल देती है।
* शुभ ग्रह की महादशा में पाप ग्रहों की अंतर्दशा अशुभ फल देती है मगर पाप ग्रहों में शुभ ग्रह की अंतर्दशा मिला-जुला फल देती है।
* पाप ग्रहों की महादशा में पाप ग्रहों की अंतर्दशा या शुभ ग्रहों में शुभ ग्रह की अंतर्दशा अच्छा फल देती है।
ज्योतिष में अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी दो प्रकार की महादशाएँ मान्य हैं। अष्टोत्तरी अर्थात 108 वर्षों में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं तथा विंशोत्तरी अर्थात 120 वर्ष में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं।
भावानुसार फल -
* लग्नेश की महादशा - स्वास्थ्य अच्छा, धन-प्रतिष्ठा में वृद्धि
* धनेश की महादशा - अर्थ लाभ मगर शरीर कष्ट, स्त्री (पत्नी) को कष्ट
* तृतीयेश की महादशा - भाइयों के लिए परेशानी, लड़ाई-झगड़ा
* चतुर्थेश की महादशा - घर, वाहन सुख, प्रेम-स्नेह में वृद्धि
* पंचमेश की महादशा - धनलाभ, मान-प्रतिष्ठा देने वाली, संतान सुख, माता को कष्ट
* षष्ठेश की महादशा - रोग, शत्रु, भय, अपमान, संताप
* सप्तमेश की महादशा - जीवनसाथी को स्वास्थ्‍य कष्ट, चिंताकारक
* अष्टमेश की महादशा - कष्ट, हानि, मृत्यु भय
* नवमेश की महादशा - भाग्योदय, तीर्थयात्रा, प्रवास, माता को कष्ट
* दशमेश की महादशा - राज्य से लाभ, पद-प्रतिष्ठा प्राप्ति, धनागम, प्रभाव वृ‍द्धि, पिता को लाभ
* लाभेश की महादशा - धनलाभ, पुत्र प्राप्ति, यश में वृद्धि, पिता को कष्ट
* व्ययेश की महादशा - धनहानि, अपमान, पराजय, देह कष्ट, शत्रु पीड़ा
विशेष : अच्छे भावों के स्वामी केंद्र या ‍त्रिकोण में होने पर ही अच्छा प्रभाव दे पाते हैं। ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए पूजा व मंत्र जाप करना चाहिए।