ध्यान
की विधियाँ:-
ध्यान की विधियाँ कौन-कौन सी हैं? ध्यान की अनेकानेक एवं अनंत विधियाँ
संसार में प्रचलित हैं. साधकों की सुविधा के लिए विभिन्न शास्त्रों व ग्रंथों से
प्रमाण लेकर ध्यान की विधियाँ बताते हैं जिनका अभ्यास करके साधक शीघ्रातिशीघ्र
ईश्वर साक्षात्कार को प्राप्त कर सकता है.
ध्यान
की विधियाँ :-
१. श्री कृष्ण अर्जुन संवाद :– भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
शुद्ध एवं एकांत स्थान पर कुशा आदि का आसन बिछाकर सुखासन में बैठें. अपने मन को
एकाग्र करें. मन व इन्द्रियों की क्रियाओं को अपने वश में करें, जिससे अंतःकरण शुद्ध हो. इसके लिए
शारीर, सर व गर्दन को
सीधा रखें और हिलाएं-दुलायें नहीं. आँखें बंद रखें व साथ ही जीभ को भी न हिलाएं.
अब अपनी आँख की पुतलियों को भी इधर-उधर नहीं हिलने दें और उन्हें एकदम सामने देखता
हुआ रखें. एकमात्र ईश्वर का स्मरण करते रहें. ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत
हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप
परमात्मा के दर्शन होते हैं.
विशेष :- ध्यान दें जब तक मन में विचार चलते
हैं तभी तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती रहती हैं. और जब तक आँख की पुतलियाँ
इधर-उधर चलती हैं तब तक हमारे मन में विचार उत्पन्न होते रहते हैं. जैसे ही हम मन
में चल रहे समस्त विचारों को रोक लेते हैं तो आँख की पुतलियाँ रुक जाती हैं. इसी
प्रकार यदि आँख की पुतलियों को रोक लें तो मन के विचार पूरी तरह रुक जाते हैं. और
मन व आँख की पुतलियों के रुकते ही आत्मा का प्रभाव ज्योति के रूप में दीख पड़ता
है.
– गीतोपदेश
अ. ६ श्लोक १२ से 15
भगवन शिव ने पार्वतीजी से कहा :- “एकांत स्थान पर सुखासन में बैठ जाएँ.
मन में ईश्वर का स्मरण करते रहें. अब तेजी से सांस अन्दर खींचकर फिर तेजी से पूरी
सांस बाहर छोड़कर रोक लें. श्वास इतनी जोर से बाहर छोड़ें कि इसकी आवाज पास बैठे
व्यक्ति को भी सुनाई दे.
इस प्रकार सांस बाहर छोड़ने से वह बहुत देर तक
बाहर रुकी रहती है. उस समय श्वास रुकने से मन भी रुक जाता है और आँखों की पुतलियाँ
भी रुक जाती हैं. साथ ही आज्ञा चक्र पर दबाव पड़ता है और वह खुल जाता है.
श्वास व मन के रुकने से अपने आप ही ध्यान होने
लगता है और आत्मा का प्रकाश दिखाई देने लगता है. यह विधि शीघ्र ही आज्ञा चक्र को
जाग्रत कर देती है.
३. शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :-
रात्रि में एकांत में बैठ जाएँ. आंखें बंद
करें. हाथों की अँगुलियों से आँखों की पुतलियों को दबाएँ. इस प्रकार दबाने से
तारे-सितारे दिखाई देंगे. कुछ देर दबाये रखें फिर धीरे-धीरे अँगुलियों का दबाव कम
करते हुए छोड़ दें तो आपको सूर्य के सामान तेजस्वी गोला दिखाई देगा. इसे तैजस
ब्रह्म कहते हैं.
इसे देखते रहने का अभ्यास करें. कुछ समय के
अभ्यास के बाद आप इसे खुली आँखों से भी आकाश में देख सकते हैं. इसके अभ्यास से
समस्त विकार नष्ट होते हैं, मन
शांत होता है और परमात्मा का बोध होता है.
– शिव
पुराण, उमा संहिता
४.शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :-
रात्रि में ध्वनिरहित, अंधकारयुक्त, एकांत स्थान पर बैठें. तर्जनी अंगुली
से दोनों कानों को बंद करें. आँखें बंद रखें. कुछ ही समय के अभ्यास से अग्नि
प्रेरित शब्द सुनाई देगा. इसे शब्द-ब्रह्म कहते हैं.
यह शब्द या ध्वनि नौ प्रकार की होती है. इसको
सुनने का अभ्यास करना शब्द-ब्रह्म का ध्यान करना है. इससे संध्या के बाद खाया हुआ
अन्न क्षण भर में ही पाच जाता है और संपूर्ण रोगों तथा ज्वर आदि बहुत से उपद्रवों
का शीघ्र ही नाश करता है.
यह शब्द ब्रह्म न ॐकार है, न मंत्र है, न बीज है, न अक्षर है. यह अनाहत नाद है (अनाहत
अर्थात बिना आघात के या बिना बजाये उत्पन्न होने वाला शब्द). इसका उच्चारण किये
बिना ही चिंतन होता है.
यह नौ प्रकार का होता है :-
१. घोष नाद :- यह आत्मशुद्धि करता है, सब रोगों का नाश करता है व मन को
वशीभूत करके अपनी और खींचता है.
२. कांस्य नाद :- यह प्राणियों की गति को
स्तंभित कर देता है. यह विष, भूत, ग्रह आदि सबको बांधता है.
३. श्रृंग नाद :- यह अभिचार से सम्बन्ध रखने
वाला है.
४. घंट नाद :- इसका उच्चारण साक्षात् शिव करते
हैं. यह संपूर्ण देवताओं को आकर्षित कर लेता है, महासिद्धियाँ देता है और कामनाएं पूर्ण करता है.
५. वीणा नाद :- इससे दूर दर्शन की शक्ति
प्राप्त होती है.
६. वंशी नाद :- इसके ध्यान से सम्पूर्ण तत्त्व
प्राप्त हो जाते हैं.
७. दुन्दुभी नाद :- इसके ध्यान से साधक जरा व
मृत्यु के कष्ट से छूट जाता है.
८. शंख नाद :- इसके ध्यान व अभ्यास से
इच्छानुसार रूप धारण करने की शक्ति प्राप्त होती है.
९. मेघनाद :- इसके चिंतन से कभी विपत्तियों का
सामना नहीं करना पड़ता.
इन सबको छोड़कर जो अन्य शब्द सुनाई देता है वह
तुंकार कहलाता है.
तुंकार का ध्यान करने से साक्षात् शिवत्व की
प्राप्ति होती है.– शिव
पुराण, उमा संहिता
५. भगवान श्री कृष्ण ने उद्धवजी से कहा :-
शुद्ध व एकांत में बैठकर अनन्य प्रेम से ईश्वर
का स्मरण करें और प्रार्थना करें कि ‘हे प्रभु! प्रसन्न होइए! मेरे शरीर में प्रवेश करके मुझे बंधनमुक्त
करें.’
इस प्रकार प्रेम और भक्तिपूर्वक ईश्वर का भजन
करने से वे भगवान भक्त के हृदय में आकर बैठ जाते हैं. भक्त को भगवान् का वह स्वरुप
अपने हृदय में कुछ-कुछ दिखाई देने लगता है. इस स्वरुप को सदा हृदय में देखने का
अभ्यास करना चाहिए.
इस प्रकार सगुण स्वरुप के ध्यान से भगवान हृदय
में विराजमान होते ही हृदय की सारी वासनाएं संस्कारों के साथ नष्ट हो जाती है और
जब उस भक्त को परमात्मा का साक्षात्कार होता है तो उसके हृदय कि गांठ टूट जाती है
और उसके सरे संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और कर्म-वासनाएं सर्वथा क्षीण हो जाती
हैं.
– श्रीमदभगवत
महापुराण, एकादश
स्कंध, अ. २०, श्लोक २७-३०
साधकों को ध्यान के दौरान कुछ एक जैसे एवं कुछ
अलग प्रकार के अनुभव होते हैं. अनेक साधकों के ध्यान में होने वाले अनुभव एकत्रित
कर यहाँ वर्णन कर रहे हैं ताकि नए साधक अपनी साधना में अपनी साधना में यदि उन
अनुभवों को अनुभव करते हों तो वे अपनी साधना की प्रगति, स्थिति व बाधाओं को ठीक प्रकार से जान
सकें और स्थिति व परिस्थिति के अनुरूप निर्णय ले सकें.
१. भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर
पहले काला और फिर नीला रंग दिखाई देता है. फिर पीले रंग की परिधि वाले नीला रंग
भरे हुए गोले एक के अन्दर एक विलीन होते हुए दिखाई देते हैं.
एक पीली परिधि वाला नीला गोला घूमता हुआ
धीरे-धीरे छोटा होता हुआ अदृश्य हो जाता है और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बड़ा गोला
दिखाई देने लगता है. इस प्रकार यह क्रम बहुत देर तक चलता रहता है.
साधक यह सोचता है यह क्या है, इसका अर्थ क्या है ? इस प्रकार दिखने वाला नीला रंग आज्ञा
चक्र का एवं जीवात्मा का रंग है. नीले रंग के रूप में जीवात्मा ही दिखाई पड़ती है.
पीला रंग आत्मा का प्रकाश है जो जीवात्मा के आत्मा के भीतर होने का संकेत है.
इस प्रकार के गोले दिखना आज्ञा चक्र के जाग्रत
होने का लक्षण है. इससे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्ष दिखने लगते है और
भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं. साथ ही हमारे मन
में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होता है जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से
संपन्न कर लेते हैं.
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