कच्चे प्याज के कुछ स्वास्थ्य लाभएनीमिया ठीक
करे---------------------प्याज काटते वक्त आंखों से आंसू टपकते हैं,ऐसा
प्याज में मौजूद सल्फर की वजह से होता हैजो नाक के दृारा शरीर में प्रेवश करता है।
इससल्फर में एक तेल मौजूद होता हैजो कि एनीमिया को ठीक करने में सहायकहोता है।
खाना पकाते वक्त यही सल्फर जलजाता है, तो ऐसे में कच्चा प्याज खाइये।कब्ज दूर
करे----------------इसमें मौजूद रेशा पेट के अंदर के चिपके हुए भोजनको निकालता है
जिससे पेट साफ हो जाता है,तो यदि आपको कब्ज की शिकायत हैतो कच्चा
प्याज खाना शुरु कर दीजिये।गले की खराश मिटाए------------------------यदि आप सर्दी,
कफ
या खराश से पीडित हैंतो आप ताजे प्याज का रस पीजिये। इमसें गुडया फिर शहद मिलाया
जा सकता है।ब्लीडिंग समस्या दूर करे---------------------------नाक से खून बह रहा
हो तो कच्चा प्याज काटकर सूघ लीजिये। इसके अलावा यदि पाइल्सकी समस्या हो तो सफेद
प्याज खाना शुरु कर दें।मधुमेह करे कंट्रोल---------------------यदि प्याज को
कच्चा खाया जाए तो यह शरीरमें इंसुलिन उत्पन्न करेगा, तो यदि
आपडायबिटिक हैं तो इसे सलाद में खाना शुरु कर दें।दिल की
सुरक्षा-----------------कच्चा प्याज हाई ब्लड प्रेशर को नार्मल करता हैऔर बंद खून
की धमनियों को खोलता है जिससेदिल की कोई बीमारी नहीं होती।कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल
करे-----------------------इसमें मिथाइल सल्फाइड और अमीनो एसिडहोता है जो कि खराब
कोलेस्ट्रॉल को घटा करअच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढाता है।कैंसर सेल की ग्रोथ
रोके-------------------------प्याज में सल्फर तत्व अधिक होते हैं। सल्फर शरीरको
पेट, कोलोन, ब्रेस्ट, फेफडे और
प्रोस्टेट कैंसर सेबचाता है। साथ ही यह मूत्र पथ संक्रमणकी समस्या को भी खत्म करता
है।//
* अनुसंधानो में देखा गया हैं कि जो व्यक्ति सीघा
लिखते हैं वह भविष्य में गोते लगाने से वर्तमान में जीनेमें अधिक विश्वास करते
हैं। एसी लिखावट वाले यक्ति बडे आत्म-विश्वासी होते हैं, उनकी स्वतंत्र
सोच के कारण निर्णय लेने की क्षमता गजब कि होती हैं एवं तर्कशास्त्र में विशेष
रुचि रखते हैं।
* जिस व्यक्ति कि लिखावट का झुकाव दायीं तरफ होता
हैं वह व्यक्ति बहिर्मुखी होते हैं, जिस कारण, सामाजिक
प्रवृत्ति और व्यवहार कुशलता का विशेष गुण इनमें सरलता से देखने मिलजाता हैं। अपने
कार्यो की प्रशंसा की विशेष चाह रखते हैं। एसे व्यक्ति अधिक कर्मशील होने से अपनए
भविष्य को उज्ज्वल बनाने की चिंता के कारण व्यक्ति में सदा कुछ न कुछ क्रियात्मक
कार्य करते हुए आगे बढते रहने की इच्छा रहती हैं। भावनात्मक प्रवृत्ति के कारण
अन्य लोगों के प्रति संवेदनशील होते हैं तथा उनके बीच रहना भी पसंद करते हैं।
*जिस व्यक्ति कि लिखावट का झुकाव बायीं ओर होता
है वह व्यक्ति शांत स्वाभाव के होते हैं। उनमें अकेला जीवन बिताने कि इच्छा अधिक
रहती हैं। एसे व्यक्ति थोडे संवेदनशील होते हैं जिस वजह से लोग उन्हें डरपोक समझते
हैं। व्यक्ति अपनी सोच एवं परिस्थिओं के कारण व्यक्ति हमेशा अपने आपमें खोया रहता
हैं जिस्से वह सरलता से बाहर नहीं निकल पाते जिसके कारण आसानी से मित्र नहीं बना
पाते हैं।
*जिस व्यक्ति कि लिखावट बार-बार बदते रहते हैं
वह व्यक्ति अस्थिर मानसिकता वाले होते हैं। एसे व्यक्ति अधिक धन का अपव्यय करने
वाले, थोडे लापरवाह, हर जगह अपनी मर्जि चलाने वाले, जिद्दी
किस्म के होते हैं। लोग इन पर शीघ्र विश्वास नहीं कर पाते यदि कोइ कर ले तो उनका
विश्वार बरकरार रखने में भी यह असमर्थ होते हैं। मानसिक चिंता हर समय लगी रहती
हैं। इनका व्यवसाय या नौकरी में बार बार परिवर्तन होते रहते हैं।
/ कलश में क का अर्थ है जल और लश का तात्पर्य
सुशोभित करने से है यानी वह पात्र जो जल से सुशोभित होता है। हिंदू धर्म में कलश
को सुख-समृद्धि, वैभव
और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। इसलिए गृहप्रवेश या किसी भी तरह का पूजन
होने पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश एक विशेष आकार का बर्तन होता है, जो चौड़ा होने के साथ ही कुछ गोलाई लिए
होता है। मान्यताओं के अनुसार कलश के ऊपरी भाग में विष्णु , मध्य में शिव और तल यानी मूल में
ब्रह्मा का निवास होता है। इसलिए पूजन से पहले कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर कलश
रखा जाता है।
कलश में डाली जाती हैं ये चीजें
शास्त्रों में बिना जल के कलश को स्थापित करना
अशुभ माना गया है। इसी कारण कलश में पानी, पान के पत्ते, आम
के पत्ते, केसर, अक्षत, कुमकुम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है।
//कलश
है इनका प्रतीक
कलश का पवित्र जल इस बात का प्रतीक है कि हमारा
मन भी जल की तरह हमेशा ही स्वच्छ,
निर्मल और शीतल बना रहें। हमारा मन श्रद्धा, तरलता, संवेदना और सरलता से भरा रहे। यह क्रोध, लोभ, मोह-माया और घृणा आदि से कौसों दूर रहे। कलश पर लगाया जाने वाला
स्वस्तिक चिह्न हमारे जीवन की चार अवस्थाओं बाल्य, युवा, प्रौढ़
और वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलश के ऊपर नारियल रखा जाता है जो कि श्री गणेश का
प्रतीक है। सुपारी, पुष्प, दुर्वा आदि चीजें जीवन शक्ति को
दर्शाती हैं।//
जनेऊ पहनने के लाभ
पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका
यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी हो गई है। जनेऊ
पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात
ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर
कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की
आंतों से है, आंतों
पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा
मल-मूत्र विसर्जन के समय कान के पास ही एक नस से कुछ द्रव्य विसर्जित होता है।
जनेऊ उसके वेग को रोक देता है, जिससे
कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग,
रक्तचाप, हृदय
रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता
है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपना जनेऊ कान पर से तब तक नहीं उतार सकता जब तक वह
हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से
उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं
के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।