गायत्री
¶ ब्रह्म का अथर्व गान ¶
गायत्री मंत्र हर कोई जानता ही है पर मूल ज्ञान
और बोध से सब दूर है
मन्त्र को रट्टा मारके उसका जप या रटण करना
उसका होम हवन अनुष्ठान करना एक फेशन हो गया है
कोई पूछे भाई गायत्री क्यूँ करनी चाहिए उसके
पास चव्वनी जितनी समज होती है बात मानो पंडितो की तरह कर रहा होगा
इसका महाविज्ञान कोई कम ही जानता होगा और उसका
मूल स्वरुप क्या है उसकी पहचान करोड़ो में से किसी एक को होगी
विश्वामित्र रचित एक त्रिपदा को जपना और उसको
एक युनिवर्सल मन्त्र बना देना उसके पीछे का रहस्य क्या?
क्यों यह मन्त्र इतना विशेष है ?
लोग सुबह सीडी में या पेन ड्राइव या फिर अलारम
या रींग टोन में बजा देते है
इनको पता भी नहीं की इसका अर्थ क्या होता है
किसी वैज्ञानिक ने एक अविष्कार कर दिया फिर वो
अविष्कार घर के एक कोने में पड़ा होगा
जैसे मोबाइल टीवी ac बनाने वाले ने
मेहनत का निचोड़ कर दिया पर भोगने वाले को यह पता ही नहीं की इसकी कीमत वो
वैज्ञानिक के लिए कितनी रही होगी
थोडा गायत्री के बारे में जान लेते है
की यह ब्रह्मांडीय उर्जा को गायत्री का नाम
क्यों दिया गया है
नाम में अर्थ को खोजो
भाषा में प्रयोजन को
और लय में उर्जा को खोजो
जब इसका अविष्कार हुआ या उपनिषदों ने कुछ
संज्ञा दी इस मन्त्र की तो यह मन्त्र के कुछ रहस्य खुले
आज के युग में उसे प्रोग्राम कहते है
गायत्री वो परब्रह्म की वाणी का इस जगत में
किया हुआ प्रोग्रामिंग है
यह मनुष्य को उसको क्या करना है और वो खुद के
साथ क्या कर सकता है वो समजाता है
इक सामान्य मनुष्य एक देवता और देवता से परे
कैसे बन सकता है
एक ब्रह्मांड को सर्जन और प्रकृति को अपने
आज्ञा से कैसे साध सकता है यह गायत्री समजाती है
यह सिर्फ गायत्री का संक्षिप्त विवरण है
अब गायत्री को समजे
गायन्तं जायते इति गायत्री
जो हम गा सकते है जो वो परमात्मा भी गा रहा है
जब हमारा गान और परमात्मा के सुर का मिश्रण
होता है तब गायत्री का प्रागट्य होता है
क्यूंकि अव्यक्त का व्याप्त वाणी से ही होता है
और उसे सामगान यानि बोध रूपी ज्ञान कहते है
शतपथ ब्राह्मण यही केहता है
गर्या स्तत्रे तस्मात् गायत्री नाम
जो प्राणों की रक्षा करता है कितने साधक
कुंडलिनी योग करते है किन्तु जब तक अथर्व का गान का स्पर्श साधक की चेतसिक सत्ता
पर नहीं होता तब तक साधक में सुशुप्त पड़ा ज्ञान और विज्ञानमय शरीर प्रगट नहीं होता
वो परम पुरुष की जाग्रति हेतु गान आवश्यक है यह
पुरुष और कोई नहीं तुम्हारे भीतर का आत्मन है
पर पुरुष गहरी नींद में है और ब्रह्म का बिज है
जब तक अनुसन्धान गायत्री से नहीं होगा वो ब्राह्मण नहीं हो पायेगा
उपनयन या जनोई धारण कर लेने से ब्रह्म तत्व की
प्राप्ति नहीं होगी
इसके चरण गायत्री मन्त्र में ही बताये गए है की
ब्राह्मण को कैसे जीना है और उसका परम लक्ष्य क्या है
गातारं जायते यस्मात् गायत्री तेन गीयते
जो खुद के गान की रक्षा करती है जो अपनी वाणी
की रक्षा करती है
विश्वामित्र ही क्यों?
ब्रह्मज्ञान और ब्रह्मवाणी किसी स्वार्थी को
नहीं मिल सकती जो सबका मित्र है सब में समभाव परमात्मा की चेतना शक्ति को देखता है
जो पुरे विश्व का मित्र है
उसे यह गान समज आएगा जिसे गायत्री कह्ते है
भू भुव स्व: का
वामन से विराट होने का
इस हेतु से परब्रह्म अपनि वाणी की खुद ही रक्षा
करते है की कोई अस्वथामा जैसा वापस दुरूपयोग न कर सके
त्रिगम गमत्री इति गायत्री
जो गान अनहत है अनहद है सायं प्रात: मध्यान का
साक्षी है
जो अकर्ता है द्रष्टा है वो भेद जान सकता है की
ब्रह्मांड का गान अचलित है वो गुंजन हर जगह समान है
गायत्री यही समजाती है की इश्वर सब जगह है उसको
भीतर स्थिर करो और वो त्रिपदा को त्रिसंध्या अंतर्गत त्रिकुट पर स्थिर करना बताया
गया है
जो आदि मध्य और अंत का भी अंत है और उसका भी
साक्षी है वो परब्रह्म गायत्री के माध्यम से यह मृत्यु लोक को जीवित रखता है
जिससे सूर्य अपनी सविता शक्ति को कार्यरत रखता
है
गायत्री का एक पद सृष्टि का आरम्भ है दूसरा
नियमन और तीसरा प्रलय है
भुत भविष्य वर्तमान
आत्मा साक्षी और द्रष्टा
फिर भी गान को अपने भीतर स्थिर कर अपने अनेक
अंशो को पोषित करने का काम परब्रह्म करता है
एक और सर्जन है और दूसरी और विसर्जन
जो पंचमुख से भी वो मापा नहीं जाता
पांच मुख पंच तत्व है और दस आयुध मानुष को धर्म
में कैसे चलना है वो दिखाते है
गायत्री का ब्रह्मास्त्र एक परब्रह्म की शक्ति
जितना है ऐसे अनेको ब्रह्मास्त्र एक होते है तब पारब्रह्म की सत्ता बनती है जहा
करोड़ो सूर्य का तेज साधक को बूंद में मिल जाता है
यह परमात्मा का आदिम विज्ञानं है जिससे वो
सृष्टि का नियमन करते है और वो ही नियमन ऋषियो और वेदों ने
मनुष्य को दिया है किन्तु भौतिक साधको ने
रास्ते को लक्ष्य बना दिया
रास्ता छोड़ने पर ही मंजिल मिलेगी
भौतिक वादियों ने उसे व्यापार में डाल दिया है
जो सर्वथा गलत है
गाया: प्राणा त्रयान्ते रक्ष्यन्ते येन वद्
गायत्री
जिसके गान मात्र से देवताओ की स्तुति हो जाती
है
यह गान से ही देवताओ की उत्त्पति हुई है
अथर्वा से सब कोई उपजा है
यह साधक को गुरुदीक्षा से प्राप्त होता है
गायत्री को सम्यकता से धारण करने वाले साधक की
स्तुति तो देवता स्वयम करते है
गायतो मुखाद् उदयपदिती गायत्री
परमात्मा से मुख से निकलने वाला प्रथम गीत वो
गायत्री है
यह गान अभी तक चल रहा है इसके सुर मन्द्र तार
और मध्य होते है मन्द्र में उत्त्पति होती है मध्यमे नियमन और तार सप्तक में लय
यह गान ही सरस्वती और संगीत की जननी है
यह गान की प्राप्ति हेतु जो यत्न करना है उसका
मार्ग दिखाते हुए विश्वामित्र ने गायत्री के मन्त्र के प्रोग्राम की रचना की
और प्रोग्राम वो मन्त्र है उसका आयुध मनुष्य तन
है और उसकी विद्युत शक्ति गान है
।। ब्रह्मास्त्र विद्या अंतर्गत गायत्री सम्यक
विधान ।।
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